दोहा
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥२१॥
चौपाला
ब्रह्मसुखहि अनुभवहिं अनूपा । अकथ अनामय नाम न रूपा ॥
जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ । नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ ॥
साधक नाम जपहिं लय लाएँ । होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ ॥
जपहिं नामु जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी ॥
राम भगत जग चारि प्रकारा । सुकृती चारिउ अनघ उदारा ॥
चहू चतुर कहुँ नाम अधारा । ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पिआरा ॥
चहुँ जुग चहुँ श्रुति ना प्रभाऊ । कलि बिसेषि नहिं आन उपाऊ ॥
दोहा
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन ।
नाम सुप्रेम पियूष हद तिन्हहुँ किए मन मीन ॥२२॥
चौपाला
मोरें मत बड़ नामु दुहू तें । किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें ॥
प्रोढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की । कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की ॥
एकु दारुगत देखिअ एकू । पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू ॥
उभय अगम जुग सुगम नाम तें । कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें ॥
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी । सत चेतन धन आनँद रासी ॥
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी । सकल जीव जग दीन दुखारी ॥
नाम निरूपन नाम जतन तें । सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें ॥
दोहा
निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ॥२३॥
चौपाला
नामु सप्रेम जपत अनयासा । भगत होहिं मुद मंगल बासा ॥
राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की । सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी ॥
सहित दोष दुख दास दुरासा । दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा ॥
भंजेउ राम आपु भव चापू । भव भय भंजन नाम प्रतापू ॥
दंडक बनु प्रभु कीन्ह सुहावन । जन मन अमित नाम किए पावन ॥
निसिचर निकर दले रघुनंदन । नामु सकल कलि कलुष निकंदन ॥
दोहा
सबरी गीध सुसेवकनि सुगति दीन्हि रघुनाथ ।
नाम उधारे अमित खल बेद बिदित गुन गाथ ॥२४॥
चौपाला
नाम गरीब अनेक नेवाजे । लोक बेद बर बिरिद बिराजे ॥
राम भालु कपि कटकु बटोरा । सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ॥
नामु लेत भवसिंधु सुखाहीं । करहु बिचारु सुजन मन माहीं ॥
राम सकुल रन रावनु मारा । सीय सहित निज पुर पगु धारा ॥
राजा रामु अवध रजधानी । गावत गुन सुर मुनि बर बानी ॥
सेवक सुमिरत नामु सप्रीती । बिनु श्रम प्रबल मोह दलु जीती ॥
फिरत सनेहँ मगन सुख अपनें । नाम प्रसाद सोच नहिं सपनें ॥
दोहा
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि ।
रामचरित सत कोटि महँ लिय महेस जियँ जानि ॥२५॥
मासपारायण , पहला विश्राम
चौपाला
सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी । नाम प्रसाद ब्रह्मसुख भोगी ॥
नारद जानेउ नाम प्रतापू । जग प्रिय हरि हरि हर प्रिय आपू ॥
नामु जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू । भगत सिरोमनि भे प्रहलादू ॥
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ । पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ॥
सुमिरि पवनसुत पावन नामू । अपने बस करि राखे रामू ॥
अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ । भए मुकुत हरि नाम प्रभाऊ ॥
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई । रामु न सकहिं नाम गुन गाई ॥
दोहा
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥२६॥
चौपाला
बेद पुरान संत मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥
ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें । द्वापर परितोषत प्रभु पूजें ॥
कलि केवल मल मूल मलीना । पाप पयोनिधि जन जन मीना ॥
नाम कामतरु काल कराला । सुमिरत समन सकल जग जाला ॥
राम नाम कलि अभिमत दाता । हित परलोक लोक पितु माता ॥
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू । राम नाम अवलंबन एकू ॥
कालनेमि कलि कपट निधानू । नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥
दोहा
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल ।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥२७॥
चौपाला
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा । करउँ नाइ रघुनाथहि माथा ॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती । जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती ॥
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो । निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो ॥
लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं । बिनय सुनत पहिचानत प्रीती ॥
गनी गरीब ग्रामनर नागर । पंडित मूढ़ मलीन उजागर ॥
सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी । नृपहि सराहत सब नर नारी ॥
साधु सुजान सुसील नृपाला । ईस अंस भव परम कृपाला ॥
सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी । भनिति भगति नति गति पहिचानी ॥
यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ । जान सिरोमनि कोसलराऊ ॥
रीझत राम सनेह निसोतें । को जग मंद मलिनमति मोतें ॥
दोहा
सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु ।
उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु ॥२८ (क )॥
हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास ।
साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥२८ (ख )॥
चौपाला
समुझि सहम मोहि अपडर अपनें । सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें ॥
सुनि अवलोकि सुचित चख चाही । भगति मोरि मति स्वामि सराही ॥
कहत नसाइ होइ हियँ नीकी । रीझत राम जानि जन जी की ॥
रहति न प्रभु चित चूक किए की । करत सुरति सय बार हिए की ॥
जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली । फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली ॥
सोइ करतूति बिभीषन केरी । सपनेहुँ सो न राम हियँ हेरी ॥
ते भरतहि भेंटत सनमाने । राजसभाँ रघुबीर बखाने ॥
दोहा
प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान ।
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान ॥२९ (क )॥
राम निकाईं रावरी है सबही को नीक ।
जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥२९ (ख )॥
एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ ।
बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ ॥२९ (ग )॥
चौपाला
कहिहउँ सोइ संबाद बखानी । सुनहुँ सकल सज्जन सुखु मानी ॥
संभु कीन्ह यह चरित सुहावा । बहुरि कृपा करि उमहि सुनावा ॥
सोइ सिव कागभुसुंडिहि दीन्हा । राम भगत अधिकारी चीन्हा ॥
तेहि सन जागबलिक पुनि पावा । तिन्ह पुनि भरद्वाज प्रति गावा ॥
ते श्रोता बकता समसीला । सवँदरसी जानहिं हरिलीला ॥
जानहिं तीनि काल निज ग्याना । करतल गत आमलक समाना ॥
औरउ जे हरिभगत सुजाना । कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना ॥
दोहा
मै पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत ।
समुझी नहि तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत ॥३० (क )॥
श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़ ।
किमि समुझौं मै जीव जड़ कलि मल ग्रसित बिमूढ़ ॥३० (ख )॥
चौपाला
भाषाबद्ध करबि मैं सोई । मोरें मन प्रबोध जेहिं होई ॥
जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें । तस कहिहउँ हियँ हरि के प्रेरें ॥
निज संदेह मोह भ्रम हरनी । करउँ कथा भव सरिता तरनी ॥
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि । रामकथा कलि कलुष बिभंजनि ॥
रामकथा कलि पंनग भरनी । पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी ॥
रामकथा कलि कामद गाई । सुजन सजीवनि मूरि सुहाई ॥
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि । भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि ॥
असुर सेन सम नरक निकंदिनि । साधु बिबुध कुल हित गिरिनंदिनि ॥
संत समाज पयोधि रमा सी । बिस्व भार भर अचल छमा सी ॥
जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी । जीवन मुकुति हेतु जनु कासी ॥
रामहि प्रिय पावनि तुलसी सी । तुलसिदास हित हियँ हुलसी सी ॥
सिवप्रय मेकल सैल सुता सी । सकल सिद्धि सुख संपति रासी ॥
सदगुन सुरगन अंब अदिति सी । रघुबर भगति प्रेम परमिति सी ॥