की वफ़ा हमसे तो ग़ैर उसे जफ़ा कहते हैं
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं

आज हम अपनी परीशानी-ए-ख़ातिर[1] उनसे
कहने जाते तो हैं, पर देखिए क्या कहते हैं

अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो
जो मै-ओ-नग़्मा[2] को अ़न्दोहरूबा[3] कहते हैं

दिल में आ जाए है होती है जो फ़ुर्सत ग़म से
और फिर कौन-से नाले को रसा[4] कहते हैं

है परे सरहदे-इदराक[5] से अपना मस्जूद[6]
क़िबले[7] को अहल-ए-नज़र क़िबलानुमा[8] कहते हैं

पाए-अफ़गार[9] पे जब से तुझे रहम आया है
ख़ार-ए-रह[10] को तेरे हम मेहर-गिया[11] कहते हैं

इक शरर दिल में है उससे कोई घबरायेगा क्या
आग मतलूब है हमको जो हवा कहते हैं

देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत[12] क्या रंग
उसकी हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं

वहशत-ओ-शेफ़्ता अब मर्सिया कहवें शायद
मर गया ग़ालिब-ए-आशुफ़्ता-नवा[13] कहते हैं

शब्दार्थ:
  1. मन की परेशानी
  2. शराब और संगीत
  3. दुःख-दर्द हरने वाला
  4. प्रभावित करने वाला
  5. समझ की सीमा
  6. सिजदे का पात्र
  7. काबा
  8. दिग्दर्शक यंत्र
  9. पांव के घाव
  10. मार्ग का कांटा
  11. एक प्रकार की घास
  12. घमण्ड
  13. दुःखपूर्ण काव्य कहने वाला ग़ालिब
Comments
हमारे टेलिग्राम ग्रुप से जुड़े। यहाँ आप अन्य रचनाकरों से मिल सकते है। telegram channel