कर्मयोगी
हर रात मै देखता
आसमां में एक कोने
पर ठहरे हुये तारे को
और मोन लेकिन
आँखों की भाषा मे
बाया कर देता
अपने सारे दुःख ।
और कर देता
खुशियों का इज़हार ।
बदले में वो भी
अपनी टिमटीमाहट मे
दे देता जवाब ।
एक रात पाया मैंने
उस कोने को खाली ।
घिर गया में अवसाद में
किसे कहूंगा दुःख
किससे करूँगा इज़हार खुशियों का ।
अगले ही पल था
दिल में खयाल
दुनिया तो नशवर है ।
इस तारे की तरह होगी
सभी की समाप्ति।
अब मेरा दुःख
ख़त्म हो चूका था ।
और खुशिया उदासीन ।
और सुख दुःख से परे
मैं बन गया कर्मयोगी
***