मेरा साथी जाम
जब बेवफा बनकर
तुम ने मुझे बहकाया ।
न जाने क्यों , साथी मुझे
यह जैम ही नजर आया ।
तुम्हारी बेवफाई भुलाने को
इस कदर जाम पर जाम पीता गया ।
पता नहीं मै मयखाने में
या मयखाना मेरे अन्दर जीता गया ।
कमबख्त फिर भी , हर सांस
तुम्हारा नाम लेती रही ।
तुम्हारी बेवफाई मेरी मोहब्बत ,
से बगावत करती रही ।
जीती मोहब्बत मेरी ,
हारी तेरी बेवफाई ।
ए बेवफा आज फिर
तु मेरे आंगन में है आई ।
जा मेने तुझे है
आज ठुकराया ।
और उस गम के साथी जाम को ,
अपना है बनाया ।