ए मुसाफिर
बढ़ते कदमो को ना ,
रुकने दे ए मुसाफिर ।
चाहे रास्ता कठीन हो ,
चाहे मन्जिल दूर हो ।
हजारों आये मुश्किले ,
इनसे मुकाबले को मजबूत हो।
चाहे ना मीले रास्ते में
एक सच्चा हमदर्द।
चाहे तुजे दुनिया
कहती रहे काफ़िर ।
बढ़ते कदमो को ना
रुकने दे अ मुसाफिर...............
तेरे रास्ते में आएगी
तेज आंधीय भी।
तुजे डराना चाहेगी
ये कडकडाती बिजलिया भी ।
तुजे रोकने की कोशिश
भी करेंगे तेरे दुश्मन।
तुझे वापस मुड़ने को
भी कहेगा तेरा मन ।
हर आती मुश्किल के सामने
सीना तान के होज हाजिर ।
बढ़ते कदमो को ना
रुकने दे ए मुसाफिर ................
घनघोर अँधेरा भी
रोकेगा तेरा रास्ता ।
हो सकता है जानवरों से
भी पड़े तेरा वास्ता।
इस अंधेरे में तेरा साया
भी तुजे डरायेगा ।
ऐसे वक्त मेंतेरा डर भी
तुजे पिछे हटाना चाहेंगा ।
ऐसे में तु मन के चोर को मार
और पीछे ना फिर
बड़ते कदमो को ना
रुकने दे ए मुसाफिर .............
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