गीता की प्रमुख बातें और मुख्य मंतव्यों के विवेचन के सिलसिले में ही हमने जो 'गीता का धर्म और मार्क्सवाद' का स्वतंत्र रूप से विचार किया है उसका कारण तो बताई चुके हैं। उस लंबे विवेचन से भी उसके स्वतंत्र निरूपण की आवश्यकता का पता लोगों को लग जाता है। अतएव हमें फिर उसी साधारण मार्ग पर आ जाना और गीता की बची-बचाई प्रमुख बातों पर कुछ विशेष प्रकाश डाल देना है। बेशक, अब जिन बातों का विवेचन हम करेंगे वह भी अहमियत तथा महत्त्व रखती हैं और गीता में उनका भी अपना स्थान है। मगर यह ठीक है कि उन्हें वैसी महत्ता मिल नहीं सकती जो अब तक कही गई गीताधर्म की बातों को मिली है। आगे वाली बातों में भी कुछ मौलिक जरूर हैं। मगर उनका जिक्र किसी न किसी रूप में पहले आ चुका है। फलत: यहाँ उनका कुछ विस्तार मात्र कर दिया है। हाँ, जो नई हैं उनकी विशेषता यही है कि गीता ने उन्हें नए ढंग से रखा है और इस तरह उन पर अपनी मुहर लगा दी है।

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