लो प्रिये! मुक श्री मनोरम

देखते जो तृप्त होकर

देखते करुबक मदिर नव

मंजरी का रूप क्षण भर

कामशर में व्यथित होते

कुसुम से बर दीप्त किंशुक

राशि नव ज्वाला शिखा-सी

लो कि अब सुखमय विकंपित

मलय से,आरक्त चंचल

रक्त वसना नववधु सी

वसुमती दिखती सुनिर्मल

प्रिये मधु आया सुकोमल!
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