प्यास से आकुल फुलाये वक्त्र नथुने उठा कर मुख

रक्त जिह्व सफेन चंचल गिरि-गुहा से निकल उन्मुख

ढ़ूंढने जल चल पड़ा महिषी-समूह अधिर होकर

धूलि उड़ती है खुरों के घात से रूँद ऊष्ण सत्वर

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel