रवि प्रभा से लुप्त शिर-मणि-प्रभा जिसकी फणिधर

लोल जिहव, अधिर मारुत पी रहा, आलीढ़

सूर्य्य ताप तपा हुआ विष अग्नि झुलसा आर्त्त कातर

त॓षाकुल मण्डूक कुल को मारता है अब न विषधर

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!

Comments
हमारे टेलिग्राम ग्रुप से जुड़े। यहाँ आप अन्य रचनाकरों से मिल सकते है। telegram channel