प्रिये ! आई शरद लो वर!

चटुल शफरी सुभग काञ्ची-सी मनोरम दीखती है

हंस श्रेणी धवल बैठी निकट मुक्ताहार-सी है

वे नितंबों से सुमांसल पुलिन विस्तृत है रुचिर-तर

एक प्रमदा-सी नदी होती प्रवाहित मन्द-मंथर

प्रिये ! आई शरद लो वर!
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel