तीव्र जलती है तृषा अब भीम विक्रम और उद्यम

भूल अपना, श्वास लेता बार-बार विश्राम शमदम

खोल मुख निज जीभ लटका अग्रकेसरचलित केशरि

पास के गज भी न उठ कर मारता है अब मृगेश्वर

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!

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