परिचय-

          हमारे समाज में एक कहावत प्रचलित है 'छोटा परिवार सुखी परिवार'। लेकिन यह कहावत तभी सार्थक होती है जब पति-पत्नी परिवार नियोजन सम्बन्धी पूरी जानकारी रखते हों।

        महिलाओं के गर्भधारण का समय, स्वास्थ्य, सही समय, शारीरिक रोग, दो बच्चों के बीच में अन्तर, बच्चे का लालन-पालन तथा परिवार की खुशियों के लिए यह अधिक आवश्यक है कि स्त्रियों को परिवार नियोजन से संबन्धित पूरी जानकारी होनी चाहिए। वर्तमान समय में पति-पत्नी को परिवार नियोजन की विधियों को जानना तथा उसमें से किसी एक तरीके को अपनाना चाहिए।

        परिवार नियोजन के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है। यहां पर परिवार नियोजन की कुछ विधियों का निम्नलिखित तरीके से उल्लेख किया गया है।

हारमौनल खाने की गोलियां-

    संयुक्त गोली (इस्ट्रोन व प्रोजेस्ट्रोन युक्त गोलियां)।
    प्रोजेस्ट्रोन युक्त गोलियां।
    प्रोजेस्ट्रोन युक्त टीके।
    प्रोजेस्ट्रोन युक्त गर्भाशय में प्रयोग करने की चीजें।

संयुक्त गोली-

        परिवार नियोजन सम्बंधी चीजों में आज भी संयुक्त गोली का अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है। इसे ओ.सी. (Oral Contraception) कहते हैं। इस एक-एक गोली को 21 दिन या 28 दिनों तक सेवन करते हैं। 21  दिन या 28 दिन तक सेवन करने के बाद इस गोली का सेवन बन्द कर दिया जाता है तथा आने वाले सात दिनों के अन्दर स्त्री को माहवारी हो जाती है। इस प्रकार इस गोली द्वारा गर्भाशय में अण्डे बनने की कार्यक्षमता को हार्मोन विधि द्वारा रोका जा सकता है। प्रोजेस्ट्रोन के द्वारा गर्भाशय के मुंह पर चिकना पदार्थ जिसे 'सारवाईकल म्यूकस' कहते हैं, वह इस प्रकार हो जाते हैं कि शुक्राणु उसे भेदकर अन्दर नहीं जा पाते। इस कारण से स्त्री गर्भधारण नहीं कर पाती है।

          वर्तमान समय में इस प्रकार की अनेकों गोलियां मार्केट में उपलब्ध हैं परन्तु हमारा प्रमुख उद्देश्य कम हार्मोन्स का प्रयोग करके अधिक लाभ उठाना है, जिससे स्त्री को समय पर माहवारी हो तथा गोली के कारण अन्य हानियां न हों।     

          ऐसी महिलाएं जिनका वजन सामान्य है उनको 30 मिलीग्राम इस्ट्रोजन तथा जिनका वजन तथा आयु अधिक है उन्हें 20 मिलीग्राम इस्ट्रोजन का प्रयोग करना चाहिए। 50 मिलीग्राम इस्ट्रोजन की गोलियां उन महिलाओं को खानी चाहिए जिनकी कार्यक्षमता अधिक होती है परन्तु उसका कुप्रभाव शरीर पर अधिक पड़ता है।

गोली का कुप्रभाव-

          परिवार नियोजन सम्बन्धी हार्मोनल गोलियों (ओ.सी.) का नियमित सेवन करने से शरीर में मोटापा, रक्त धमनियों में खून का जमना, मांसपेशियों तक रक्त का न पहुंचना, शरीर में अधिक मात्रा में वसा का इकट्ठा होना, अधिक रक्तचाप, नसों का कमजोर होना, माहवारी में अधिक रक्तस्राव होना, दिल कच्चा होना, उल्टी होना, स्तनों में दर्द, सिर दर्द, अनियमित मासिक स्राव, चेहरे पर दानों का अधिक होना, मानसिक दबाव, सेक्स में रुचि न होना तथा मधुमेह के रोगियों में दवा का कम असर होना आदि विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं।    

          इस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन से मिलकर बनी हुई गोली को संयुक्त गोली कहा जा सकता है। यह अपनी कार्यक्षमता में प्रमुख भूमिका निभाती है। स्त्रियों को गोली को नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। संयुक्त गोली के सेवन के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि लगभग एक सप्ताह तक गोली का सेवन नियमित रूप से हो। कभी-कभी गोली के सेवन के बाद उल्टी होने या दस्त होने से गोली का पूरा प्रभाव स्त्रियों के शरीर पर नहीं होता है। टी.बी. का रोग तथा दौरे पड़ने की दवा के साथ सेवन करने से इस गोली का प्रभाव शरीर पर कम होता है।

          ऐसी स्त्रियां जो खाने की गोली द्वारा परिवार नियोजन करती हैं, उन्हें समय-समय पर वजन, ब्लडप्रेशर, स्तन की जांच तथा भग से लिए पानी की जांच करनी चाहिए। इससे कैंसर के बारे में जानकारी मिलती है। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब भी हमारे शरीर का कोई बड़ा ऑपरेशन होने वाला हो तो उससे लगभग 4 सप्ताह पहले ही इन गोलियों का सेवन करना बन्द कर देना चाहिए।

प्रोजेस्ट्रोन युक्त गोली :

        यह गोलियां प्रोजेस्ट्रोन युक्त हार्मोन्स से बनी होती है। इसमें इस्ट्रोजन नहीं होता है। इस कारण इसको मिनी गोली कहते हैं। इन गोलियों में प्रोजेस्ट्रोन की मात्रा बहुत कम होती है। इन गोलियों को उन्हीं स्त्रियों को देना उचित होता है जिनके लिए इस्ट्रोजन हार्मोन्स हानिकारक होता है, जिनकी आयु 35 वर्ष से अधिक है, जो स्त्रियां सिगरेट अधिक मात्रा में पीती हैं या जिनका ब्लडप्रेशर अधिक होता है। जिन स्त्रियों को मधुमेह का रोग है या जो बच्चे को स्तनपान कराती हैं, इन गोलियों का प्रयोग उन्हीं स्त्रियों के लिए लाभदायक होता है।

गर्भ में इंप्लांट रखना-

          लिवोनोर जेस्ट्रल नामक 'टी' के आकार की प्लास्टिक की नलिका को गर्भ में डाल दिया जाता है। इस दवा के प्रभाव के परिणामस्वरूप गर्भाशय की दीवार पर भ्रूण पनप नहीं पाता है। इसका प्रभाव गर्भाशय पर लगभग 3 वर्षो तक बना रहता है। जब इसे गर्भ से निकाल दिया जाता है तो इसके निकलते ही स्त्री गर्भधारण कर लेती हैं।   

इन्ट्रायूटाराईन कोनट्रासेपटिव डिवाइस (आई.यू.सी.डी.)-

          यह एक छोटी 'टी' के आकार की नलिका होती है, जिस पर कापर की तार लिपटी होती है। 'टी' का आकार मुड़ने वाला तथा लचीला होता है जो आसानी से गर्भ में डाला जा सकता है। कापर की तार तथा उसके प्रभाव के कारण यह लगभग 5 वर्ष तक गर्भ ठहरने से रोकता है।

          पुराने समय में परिवार नियोजन के परीक्षण के लिए एक वैज्ञानिक ने ऊंटनी के गर्भ में छोटे-छोटे गोल तथा चिकने पत्थर डाल दिये और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि जब तक यह पत्थर ऊंटनी के गर्भ में थे तब तक उस ऊंटनी को गर्भधारण नहीं हुआ था। इसी निष्कर्ष को ध्यान में रखकर आई.यू.सी.डी. का अविष्कार कर परिवार नियोजन में सफलता प्राप्त हुई।

कुप्रभाव-

          आई.यू.सी.डी. का प्रयोग करने के कुछ समय बाद इसके कुप्रभाव भी सामने आते हैं जैसे- मासिकस्राव का अधिक होना, कूल्हे में दर्द, सूजन, गर्भ अधिक समय बाद ठहरना, गर्भ का नलों में चले जाना, अपने आप नलिका का बाहर निकल आना तथा नलिका का गर्भ से हटकर बाहर चला जाना आदि इसके प्रमुख कुप्रभाव होते हैं। इसलिए एक ऐसी स्त्री, जिसकी उम्र कम हो तथा जिसके कोई सन्तान न हो, उसे इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

वेजाईनल डाईफ्राम (रबड़ की टोपी)-

        यह एक छोटी रबड़ की टोपीनुमा आकार की एक वस्तु होती है जिसे ऐसी क्रीम के साथ अन्दर लगाया जाता है जिस क्रीम के द्वारा शुक्राणु समाप्त होते हैं। इस टोपी को सरवाईकल मार्ग द्वारा सरविक्स के ऊपर चढ़ा देते हैं। इस बात का विशेष रूप में ध्यान रखना चाहिए कि जब भी कभी इस टोपी को बाहर निकालना हो  तो ऐसी अवस्था में स्त्री को 6 घंटे पहले तक संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए वरना वह गर्भधारण कर सकती हैं।

फीमेल कण्डोम (स्त्री कण्डोम)-

          स्त्री कण्डोम रबड़ की थैली के आकार का होता है। इस थैली रूपी कण्डोम को योनि में क्रीम द्वारा लगाया जाता है। जिसके द्वारा शुक्राणु योनि में नहीं पहुंच पाते हैं।

क्रीम द्वारा परिवार नियोजन-

          योनि में पेसरी के सहारे क्रीम को अन्दर तक इस प्रकार डाला जाता है कि संभोग के बाद शुक्राणु क्रीम के प्रभाव के द्वारा वहीं पर नष्ट हो जाएं। कुछ क्रीम झाग पैदा करने वाली होती हैं। इस झाग से शुक्राणु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।

रिद्म की विधि (सुरक्षित समय)-

          स्त्री के शरीर का तापमान अण्डे बनने के बाद पहले से अधिक होता चला जाता है जिससे पता चलता है कि स्त्री में अण्डेदानी से अण्डा बनना शुरू हो गया है। यदि इस तापमान को माहवारी के पहले दिन से लिया जाए तो पता चलता है कि शरीर का तापमान 7-8 दिनों तक एक समान रहता है। लगभग 14 दिनों बाद तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। यह अण्डेदानी से अण्डे के बनने के समय को दर्शाता है। इस कारण नौवें दिन से 19 दिन के बीच संभोग क्रिया नहीं करनी चाहिए।

          यदि किसी महिला ने सेक्स क्रिया के समय कोई भी परिवार नियोजन की विधि नहीं अपनायी है तो ऐसी दशा में सेक्स क्रिया के तुरन्त बाद आई.यू.सी.डी का प्रयोग पहले 5 दिनों तक करना चाहिए। ऐसा करने से गर्भधारण नहीं होगा।

पुरुषों द्वारा परिवार नियोजन की विधि-

क्वाईटस इनट्रपटस (वीर्य को संभोग के समय योनि में न छोड़ना)-

          परिवार नियोजन की इस विधि द्वारा शुक्राणुओं का योनि में रह जाने का खतरा बना होता है जिसके कारण गर्भधारण होने की संभावना अधिक रहती है।

पुरुष कण्डोम-

          पुरुष कण्डोम एक रबड़ की पतली झिल्ली और टोपी के समान होता है। संभोग क्रिया के समय पुरुष अपने लिंग पर चढ़ा लेता है। संभोग क्रिया के बाद पुरुष का वीर्य इसी कण्डोम में एकत्र हो जाता है। पुरुष कण्डोम परिवार नियोजन का सस्ता और सरल साधन है।

नसबन्दी-

          नसबंदी एक छोटा सा ऑप्रेशन होता है जिसमें वीर्य को अंडकोष से ले जाने वाली नली (वासडिफ्रेंस) को सुन्न करके काट दिया जाता है तथा इसके दोनों किनारों को मोड़कर बांध दिया जाता है। परिवार नियोजन में नसबंदी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

नसबन्दी का कुप्रभाव-

          इस विधि द्वारा यदि कोई शुक्राणु नलिका में पहले से हो तो वह शुक्राणु अण्डे से मिलकर भ्रूण पैदा कर सकता है। कभी-कभी ऑपरेशन के बाद रक्त का जमाव तथा ऑपरेशन के स्थान इन्फेक्शन हो जाता है। लगभग 5 प्रतिशत लोगों के मन में मानसिक दबाव के कारण यह धारणा है कि इस ऑपरेशन को कराने से पुरुष की सेक्स करने की इच्छा में कमजोरी आ जाती है।

स्त्री में परिवार नियोजन सम्बंधी ऑपरेशन-

          परिवार नियोजन ऑपरेशन के लिए स्त्री के नीचे पेट में दूरबीन की सहायता से या शल्य चिकित्सा द्वारा नलों (फिलोपियन ट्यूब) को क्लीप से बांध दिया जाता है। इस विधि द्वारा शुक्राणु अण्डेदानी तक नहीं पहुंच पाते तथा स्त्री गर्भधारण नहीं कर पाती है। परिवार नियोजन के लिए यह एक सुरक्षित विधि है परन्तु इसमें भी लगभग 2 प्रतिशत असफलता मिलती है। आवश्यकता पड़ने पर इसे दुबारा खोला जा सकता है।

        परिवार नियोजन के सम्बंध में जो भी चीजें अपनाई जाती है। वह कहीं न कहीं अपने कार्यों को पूरा करने में सफल नहीं हो पाती है। इसके चार प्रमुख कारण हैं-

अण्डे बनने के समय का निर्धारित न होना-

          महिलाओं में माहवारी (मासिक स्राव) आने के पहले दिन, दसवें दिन या ग्यारहवें दिन के बाद अण्डेदानी से अण्डा बनता है। यही अण्डा शुक्राणु से मिलकर गर्भधारण करता है। महिलाओं में अण्डे बनने का समय निर्धारित न होने कारण कभी-कभी गर्भधारण करने की संभावना बन जाती है।

अधिक उम्र का परिवार नियोजन की विभिन्न विधियों पर प्रभाव-

          जैसे-जैसे स्त्री-पुरुष की आयु बढ़ती जाती है वैसे-वैसे परिवार नियोजन के लिए अपनाई विधियों का प्रभाव कम होता चला जाता है।

परिवार नियोजन सम्बन्धी वस्तु का सही प्रयोग न करना-

          परिवार नियोजन संबंधी ज्यादातर चीजों का प्रयोग स्त्री को ही करना पड़ता है। इनमें से कभी-कभी अगर स्त्री किसी चीज को भूल जाती हैं जैसे- डाईफ्राम का भूल जाना, गोली का सेवन न करना, तो उसके गर्भधारण करने की संभावना पैदा हो जाती है ।

परिवार नियोजन सम्बन्धित किसी भी चीज का लगातार प्रयोग करते रहना-

          परिवार नियोजन सम्बन्धी चीजों का जरूरत से ज्यादा तथा अधिक समय तक प्रयोग करने से वस्तु की कार्यक्षमता कमजोर होती चली जाती है तथा उसके परिणाम सही नहीं मिलते हैं।

          निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा परिवार नियोजन सम्बन्धी गोलियों और अन्य तरीकों को प्रयोग सफल न होना प्रतिशत में दर्शाया गया है-

विधि                                                              असफलता प्रतिशत में

(एक वर्ष में)

1. खाने वाली गोलियां  

    50 मिग्रा. इस्ट्रोजन                                      0.16
    30 मिग्रा. इस्ट्रोजन                                      0.27
    प्रोजेस्ट्रोन की गोलियां                                    1.2

      2. आई.यू.सी.डी.                                                            1.5

      3. डाइफ्राम                                                                   1.9

      4. कण्डोम                                                                    3.6

      5. संभोग के समय वीर्य को बाहर निकालना                       6.7

      6. केमिकल और क्रीम आदि का उपयोग                            11.9

      7. अण्डे के बनने के समय में परिवर्तन                              15.5

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