परिचय-

        सामान्यत: बच्चे के बढ़ने और पैदा होने का समय 9 महीने का होता है। इस समय को 3-3 महीनों के अनुसार 3 भागों में बांटा जा सकता है। इन भागों को सामान्य रूप से प्रथम, द्वितीय और तृतीस त्रिमास कहा जाता है।

पहला त्रिमास-

        गर्भधारण के बाद बच्चे के प्रथम त्रिमास का समय 1 से 3 महीने का होता है। इस अवधि के दौरान बच्चा पूर्ण रूप में बन जाता है। बच्चे के शरीर और अंगों को स्त्री महसूस कर सकती है तथा उसके अंगों को मशीनों की सहायता से देखा जा सकता है। प्रथम त्रिमास के समय बच्चे की लम्बाई 3.5 सेमी होती है। बच्चे के चारों ओर एक पानी की थैली होती है, जिसे एमनीओटिक सैक कहा जाता है। इस थैली में लगभग 100 सी.सी एमनिओटिक द्रव भरा रहता है। गर्भाशय में बच्चा इसी द्रव के अन्दर घूमा करता है परन्तु बच्चे के घूमने की क्रिया को मां महसूस नहीं कर पाती है। इसी समय बच्चे का चेहरा बनता है। बच्चे की आंखें बन्द होती हैं तथा उसके दोनों कानों को सिर के दोनों तरफ देखा जा सकता है। बच्चे की नाभि एक कोर्ड से जुड़ी होती हैं, जिसे नाभि की रक्तवाहिनियां कहते हैं। इसके द्वारा बच्चे को मां के खून से भोजन मिलता है तथा बच्चे का विकास होता रहता है। एमनीओटिक सैक में एमनीओटिक द्रव होता है जो लगातार बनता रहता है और थैली की दीवारों से रिसकर थैली में ही इकट्ठा होता रहता है।

        गर्भ में बच्चा एमनीओटिक द्रव को मुंह से पीता है। यह द्रव बच्चे के पेट से होता हुआ बच्चे के मूत्र द्वारा बाहर निकल जाता है। गर्भ में बच्चे का मूत्र किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता है तथा इसमें किसी भी प्रकार कीटाणु नहीं होते हैं। इस प्रकार यह मूत्र एमनीओटिक सैक में ही रहता है।

दूसरा त्रिमास-

        गर्भ में बच्चे के दूसरा त्रिमास का समय 3 महीने से 6 महीने के बीच का होता है। इस समय के अन्त तक बच्चे की लम्बाई लगभग 35 सेमी और वजन लगभग एक किलोग्राम तक हो जाता है। इस अवधि के दौरान बच्चे का हिलना, हाथ-पैर चलाना, अंगूठे को मुंह तक लाना, अंगुलियों का विकास तथा नाखूनों के ऊपर के किनारे आदि अंगों का विकास होता है। इस समय बच्चे की आंखे बन्द रहती हैं तथा आंखों की पलकें, भौहें और उसके बालों का विकास इसी त्रिमास में होता है। बच्चे की त्वचा चिकनी होती है और उस पर एक सफेद रंग की परत-सी दिखाई पड़ती है जिसे वर्निक्स कहते हैं। यह चिकना पदार्थ स्वयं बच्चे के शरीर की त्वचा से निकलता है जो एक परत सी बना लेता है। गर्भ में नवजात शिशु एमनीओटिक द्रव में घूमता रहता है। इस द्रव का लगभग एक तिहाई भाग प्रतिदिन मां के रक्त के संचार द्वारा बच्चे के शरीर में जाता है तथा उतना ही नया द्रव बनकर तैयार हो जाता है।

        गर्भ में शिशु एमनीओटिक द्रव का सेवन करता है तथा सेवन किया एमनीओटिक द्रव बच्चे के पेट से होते हुए मूत्र के द्वारा बाहर निकल जाता है। बच्चे का मूत्र किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता है तथा बच्चे के मूत्र में किसी भी प्रकार के कीटाणु नहीं होते हैं। इस प्रकार यह मूत्र एमनीओटिक सैक में रहता है।

तीसरा त्रिमास-

        तीसरे त्रिमास का समय 6 से 9 महीने के बीच का होता है। इस समय के दौरान गर्भ में बच्चे का विकास पूर्ण रूप से हो जाता है। बच्चे का विकास होकर बच्चा मां की पसलियों तक पहुंच जाता है और बच्चे का हिलना-डुलना पहले से कम हो जाता है। इस समय बच्चे को प्रोटीन, कैल्शियम, लौह, वसा आदि की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है जिसे बच्चा मां के शरीर से लेता रहता है। बच्चे की शरीर की हडि्डयों का विकास कैल्शियम से होता है। प्रोटीन से बच्चे के शरीर की मांसपेशियों का, लौह से रक्त तथा वसा से शरीर का निर्माण होता है। गर्भावस्था के 7 महीने के पूरा होने बाद बच्चे के मस्तिष्क का विकास प्रारम्भ होता है। बच्चे के मस्तिष्क में अनेक प्रकार के केन्द्र होते हैं जो बच्चे के शरीर की कार्यक्षमता को बनाये रखते हैं।

        बच्चे में सांस लेने के केन्द्र मस्तिष्क में विकसित हो जाते हैं। इसलिए सात महीने का पैदा हुआ बच्चा जीवित बच सकता है। लेकिन ऐसे लगभग 10 प्रतिशत बच्चों के जीवन को खतरा बना रहता है। गर्भावस्था के 8 महीने पूरे होने पर बच्चे का लगभग सम्पूर्ण विकास हो जाता है।

        इस अवधि के दौरान बच्चे के जीवन को लगभग 5 प्रतिशत खतरा बना रहता है। बच्चे के सिर पर बालों का आना, आंखों का खुलना, पूरे नाखूनों का आना आदि के विकास के साथ-साथ बच्चे का सिर नीचे आकर मां के कूल्हे की हड्डी में जाकर जम जाता है जिसे बच्चे के सिर का जमना कहते हैं। यह लगभग 34 से 36 सप्ताह के बीच होता है। बच्चे के नीचे आ जाने से मां को सांस लेने में परेशानी नहीं होती है।

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