परिचय-
गर्भावस्था में प्रत्येक स्त्री का वजन उनके रहन-सहन और भोजन पर निर्भर करता है। ऐसा भी होता है कि एक ही स्त्री का वजन अलग-अलग गर्भावस्था में अलग-अलग होता है। इसलिए गर्भावस्था में वजन के लिए कोई नियम आदि नहीं है। प्राचीन काल में गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों का वजन 10 किलोग्राम तक बढ़ना ठीक माना जाता था। वर्तमान समय में गर्भावस्था के दौरान 12 किलोग्राम तक वजन को बढ़ना अच्छा माना जाता है।
यदि किसी स्त्री का वजन गर्भधारण से पहले कम है तथा गर्भावस्था में बढ़ जाता है तो यह सामान्य बात है। लेकिन जिस स्त्री का वजन पहले ही काफी अधिक है तथा गर्भावस्था के दौरान और अधिक बढ़ जाता है तो यह उस स्त्री के लिए हानिकारक होता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपना वजन चैक कराते रहना चाहिए। कुछ महिलाएं पहले तो अपना वजन अधिक बढ़ा लेती हैं। गर्भावस्था के दौरान जब उनका वजन अधिक बढ़ जाता है तो वे अपना वजन कम करने के लिए भोजन बहुत ही कम मात्रा में करती हैं। ऐसा करना गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। इस कारण गर्भावस्था में वजन को ध्यान में रखते हुए भोजन करना चाहिए। गर्भावस्था की अवधि के दौरान यह बात विशेष तौर पर ध्यान रखनी चाहिए कि उनके अन्दर एक बच्चा भी पनप रहा है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान सन्तुलित और एक नियमित समय पर भोजन करना मां और गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए अति आवश्यक होता है।
गर्भधारण के बाद महिलाओं का वजन लगभग 12-13 किलो के आस-पास बढ़ता है। यदि किसी महिला के जुड़वां बच्चे हों तो उसका वजन 18 किलो तक बढ़ सकता है। गर्भाशय में बच्चे का वजन तीन किलो से सवा तीन किलो तक होता है। भारतीय बच्चे का औसत वजन दो किलो 750 ग्राम होता है। बाकी वजन महिलाओं के शरीर के अन्य भागों जैसे स्तनों का भारीपन, वसा का जमाव, गर्भाशय के आकार में वृद्धि, ओवल का वजन, एमनीओटिक द्रव का वजन, स्त्री के शरीर में रक्त की अधिक मात्रा तथा शरीर में द्रव का जमाव मुख्य होता है। इनका वजन 5 किलो के लगभग रहता है। बच्चे के चारों तरफ एमनीओटिक द्रव होता है जिसका वजन एक किलो के लगभग होता है। बच्चेदानी के बढ़ने के कारण इसका वजन भी एक किलो होता है। महिलाओं के शरीर में अन्य परिवर्तन होते रहते हैं जैसे- स्तनों का वजन भी एक किलो के लगभग बढ़ता है। बाकी वजन शरीर में चर्बी के जमाव का होता है जो स्त्रियों के कमर कूल्हे और जांघों पर होती है।
गर्भावस्था में महिलाओं का बढ़ा हुआ वजन-
बाकी वजन स्त्रियों के शरीर के वसा और द्रव का होता है।
यहां पर यह बताया जा रहा है कि गर्भावस्था में स्त्रियों का वजन हर महीने कितना बढ़ना चाहिए-
गर्भावस्था के प्रारम्भ में 1 महीने से 3 महीने तक स्त्री का वजन नहीं बढ़ना चाहिए। 3 से 5 महीने के दौरान स्त्री का वजन 25 प्रतिशत तक बढ़ना चाहिए। इसके बाद 6 महीने तक 25 प्रतिशत, 6 से साढे़ सात महीने तक 25 प्रतिशत तथा साढे़ सात से 9 महीने तक 25 प्रतिशत वजन बढ़ना चाहिए। नौवें महीने से प्रसव होने तक स्त्री का वजन नहीं बढ़ता चाहिए।
गर्भधारण करने के बाद स्त्री के विभिन्न भागों का बढ़ा हुआ वजन प्रतिशत में-
गर्भावस्था के दौरान हर सप्ताह स्त्री का वजन प्रतिशत में-
समय के अनुसार गर्भ में बच्चे का बढ़ना-
गर्भ में बच्चे की अनुमानित आयु और वजन-
गर्भावस्था में स्त्री के बढ़ते वजन द्वारा बच्चे का संभावित वजन निकालना-
गर्भावस्था में मां के लिए जिंक लेना अनिवार्य होता है। इसके उपयोग से बच्चे की हडि्डयां शक्तिशाली बनती हैं। इसकी कमी से बच्चा कमजोर और छोटा होता है।
वे स्त्रियां जो अधिक नमक, मसाले व चर्बी युक्त भोजन का सेवन करती हैं। उनका अपने वजन पर कोई नियन्त्रण नहीं होता है। गर्भावस्था में अधिक वजन बढ़ने से स्त्री को दौरे भी पड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में स्त्री और बच्चे दोनों को ही खतरा हो सकता है।
अक्सर यह देखा गया है कि बच्चे के गर्भ में आने पर स्त्रियों को जी मिचलाना, उल्टी होना तथा कमजोरी आदि की शिकायत हो जाती है। यह परेशानी शुरुआती 3 महीने तक रहती है। इसके कारण स्त्रियों का शरीर कमजोर हो जाता है। बच्चे पर भी इसका प्रभाव पड़ने से बच्चा कमजोर हो जाता है। यह अवस्था तभी पैदा होती है जब स्त्री को उल्टियां अधिक आ रही हो। ऐसी स्थिति में जलेबी, सूजी की लपसी या मीठा गर्म दलिया आदि लेने से लाभ होता है।
स्त्री का वजन यदि समय-समय पर नहीं बढ़ता तो बच्चा कमजोर भी हो सकता है। इसी के साथ-साथ बच्चेदानी की मांसपेशियां भी कमजोर हो सकती है। ऐसी अवस्था में बच्चे के जन्म के समय बच्चेदानी के कमजोर दबाव के कारण बच्चे के जन्म में कठिनाई आ सकती है और प्रसव के लिए कभी-कभी ऑपरेशन करना भी पड़ सकता है।
बच्चे का जन्म होने के बाद स्त्री के शरीर में वसा का वजन लगभग 5 किलोग्राम होता है। यह वसा मां के दूध पिलाने पर धीरे-धीरे कम हो जाती है। जो स्त्रियां बच्चे को कम मात्रा में दूध पिलाती हैं या नौकरी पर जाती हैं या जिनके स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध नहीं होता है। उन स्त्रियों के शरीर से वसा कम नहीं होती। ऐसी अवस्था में उनके लिए व्यायाम करना लाभकारी रहता है।
गर्भावस्था में स्त्रियों का वजन अधिक होने का कारण-
गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों को समय-समय पर अपना वजन जांच कराते रहना चाहिए। स्त्रियों को अपने वजन को सामान्य मात्रा में बनाये रखना चाहिए। पति को अपनी पत्नी को चर्बी युक्त भोजन करने से रोकना चाहिए। अधिक वजन वाली स्त्रियों को कार्बोहाइड्रेट, चीनी और अन्य मीठे पदार्थ कम मात्रा में खाने चाहिए। पनीर का सेवन करने से वजन अधिक मात्रा में बढ़ता है, इस कारण इसका प्रयोग कम मात्रा में करना चाहिए। दूध में भी चिकनाई अधिक होती है। इसलिए बिना चिकनाई वाला दूध सेवन करना चाहिए। मदिरा का प्रयोग हानिकारक होता है तथा इसमें कैलोरी भी अधिक होती है। द्रव पदार्थों का अधिक मात्रा में उपयोग करना चाहिए। चाय और काफीका अधिक मात्रा में सेवन करना हानिकारक होता है।
अधिक घी युक्त भोजन, गाढ़ा रसेदार भोजन, क्रीमयुक्त भोजन हानिकारक होता है। गर्भावस्था में सादा और सन्तुलित भोजन ही लाभकारी होता है।
प्रसव में भोजन-
आज के समय में भी बहुत से लोगों का मानना है कि यदि प्रसव के समय स्त्रियों को घी का सेवन कराया जाए तो उसकी चिकनाई से बच्चे का जन्म शीघ्र ही हो जाता है। इसी कारण दूध में घी या बादाम का तेल डालकर स्त्रियों को दिया जाता है जिससे प्रसव के दर्द के समय बच्चे का जन्म शीघ्र ही सके। परन्तु यह मान्यता गलत है क्योंकि भोजन तो पेट में जाता है और उसका प्रसव से कोई संबंध नहीं है।
प्रसव के समय स्त्री के लिए सादा भोजन ही लाभकारी होता है जैसे- बिस्कुट, डबलरोटी, रोटी आदि। उसके लिए अधिक भोजन या पीने वाली वस्तुएं हानिकारक हो सकती है। पेट अधिक भरा होने से प्रसव के समय जोर लगाने में कठिनाई आती है और उल्टी भी हो सकती है। प्रसव के समय कभी-कभी डॉक्टर स्त्री को बेहोश करता है तो बेहोशी के समय उसका खाली पेट होना ही लाभदायक होता है। यदि बेहोशी में उल्टी आ जाए तो फेफड़ों में जाने का डर रहता है। इसके कारण सांस नलिका में रुकावट आ सकती है तथा स्त्रियों को कई बार निमोनिया की शिकायत भी हो सकती है। इसलिए थोड़ी मात्रा में भोजन और द्रव पदार्थों का सेवन ही लाभकारी होता है।
गर्भवती स्त्री को ऐसा भोजन करना चाहिए जो शीघ्र ही शरीर को ताकत दे और जल्दी से पच सके जैसे- ग्लूकोस के बिस्कुट, थोडे़ पानी में ग्लूकोस या मिश्री, शहद, पोहे, मुरमुरे या फिर डबलरोटी जिस पर जैम आदि लगाई गई हो। उसे कोला, शर्बत, नींबू, पानी, चाय, काफी आदि देना हानिकारक होता है।
अपने वजन को एक-सा बनाये रखना-
यदि सामान्य अवस्था में स्त्री का स्वास्थ्य और वजन सही है तो गर्भावस्था के दौरान उसका वजन 10 से 12 किलोग्राम तक बढ़ सकता है।
यदि स्त्री का वजन पहले से अधिक है तो गर्भावस्था के दौरान उसका वजन 7.5 किलो से 10 किलो के बीच ही बढ़ना ठीक होता है। यदि उसका वजन पहले से ही 8 किलो अधिक है तो गर्भावस्था में वजन केवल 6.5 किलोग्राम ही बढ़ना उचित होता है। कमजोर स्त्रियों का गर्भावस्था के समय वजन लगभग 15 किलो तक बढ़ सकता है। कमजोर स्त्रियों में इतने वजन का बढ़ना किसी भी प्रकार से हानिकारक नहीं होता है।
गर्भावस्था के दौरान यदि स्त्री का वजन 3 महीने नहीं बढ़ा हो तो इस बात को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। लेकिन 3 महीनों के बाद उसका वजन अवश्य ही बढ़ना चाहिए। गर्भाधारण के 3 महीने बाद स्त्री का प्रति सप्ताह लगभग 400 ग्राम वजन बढ़ना चाहिए परन्तु जिन स्त्रियों का वजन अधिक है उनका वजन प्रति सप्ताह 300 ग्राम ही बढ़ना ठीक होता है। शारीरिक रूप से कमजोर स्त्री का वजन 800 ग्राम तक भी बढ़ सकता है।
यदि स्त्री का वजन गर्भावस्था के 3 महीने बाद भी नहीं बढ़ रहा हो तो उसे 300 कैलोरी वाला भोजन प्रतिदिन सेवन करना चाहिए। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि अधिक खाने से वजन अधिक बढ़ता है।
इसके साथ ही गर्भ में बच्चे का वजन भी काफी बढ़ जाता है तथा प्रसव के समय इस प्रकार मोटे बच्चे को पैदा करने में मां और बच्चे दोनों को हानि हो सकती है तथा प्रसव के समय ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।