परिचय-

          प्रसव अर्थात बच्चे को जन्म देना एक बहुत ही मुश्किल प्रकिया है। इसके बारे में गर्भवती स्त्री या दूसरी स्त्रियों को पूरी जानकारी होना बहुत ही जरूरी है। गर्भवती स्त्री का प्रसव घर में होना चाहिए या कि अस्पताल में इसका फैसला काफी सोच-समझकर करना चाहिए। वैसे तो गर्भवती स्त्री का प्रसव किसी अस्पताल, प्रसूति-केंद्र आदि में ही कराना सबसे अच्छा रहता है लेकिन अगर गर्भकाल में किसी तरह के कॉम्पलीकेशन (जटिलताएं) न हो तो प्रसव घर पर ही कराया जा सकता है। गांवों में तो आज भी प्रसव घर पर ही कुशल दाई को बुलाकर करा दिया जाता है।
जानकारी-

          सामान्य अवस्था में गर्भवती स्त्री का प्रसव घर पर ही करा लेना चाहिए। प्रसव के समय और उसके बाद गर्भवती स्त्री की देखभाल के लिए घर पर किसी समझदार महिला या दाई (नर्स) का रहना बहुत जरूरी है। एक बात का और ध्यान रखना जरूरी है कि जिस कमरे में स्त्री का प्रसव कराना हो वह कमरा बिल्कुल साफ और हवादार होना चाहिए।

          घर पर प्रसव कराने के लिए जरूरी चीजें दाई या नर्स आदि से पूछकर प्रसव का समय आने से लगभग 2 सप्ताह पहले ही मंगाकर रख लेनी चाहिए जैसे-

    एक बिल्कुल साफ चादर (पलंग पर बिछाने के लिए),
    2 बड़े साफ तौलिए,
    एक डिटॉल की शीशी,
    साबुन,
    एक बड़ा पैन,
    लगभग 2 दर्जन सेनिटरी पैड,
    साफ रूई,
    2 चिलमची,
    स्टोव,
    थर्मामीटर,
    साफ देगची,
    मोटा धागा,.
    तेज ब्लेड,
    कैंची।

प्रसव के समय आने वाली परेशानियां-

          गर्भवती होने के बाद स्त्री अक्सर एक बात को लेकर चिंताग्रस्त रहती है कि प्रसव के समय उसे कितना ज्यादा कष्ट होगा और वह सहेगी कैसे। लेकिन एक तरह से यह सोचना बेकार है क्योंकि प्रकृति ने बच्चे को जन्म देने के लिए स्त्री को सक्षम और मजबूत बनाया है इसलिए प्रसव के समय का कष्ट उतना ही ज्यादा होता है जितना एक स्त्री सहन कर सकती है। पर फिर भी गर्भवती स्त्री को प्रसव के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना पड़ता है।

          आधुनिक विज्ञान में तो डाक्टरी सहायता ने प्रसव को और भी ज्यादा आसान बना दिया है जिससे स्त्री प्रसव के समय होने वाले कष्ट को आसानी से सह लें। इसके लिए जरूरी है कि स्त्री प्रसव की मुश्किल क्रिया को अच्छी तरह से समझ लें।

इसी के चलते प्रसव को 3 भागों में बांटा गया है-

    प्रसव (बच्चे को जन्म देने से पहले) पूर्व गर्भाशय में बच्चे की स्थिति।
    प्रसव के लक्षण।
    प्रसव की क्रिया और बच्चे का जन्म।

प्रसव पूर्व गर्भाशय में बच्चे की स्थिति-

          गर्भाशय में बच्चा एक खास प्रकार से रहता है। गर्भ में बच्चे का सिर आगे की ओर तथा ठोड़ी छाती की तरफ झुकी होती है। उसकी दोनों बाहें आपस में इस तरह से जुड़ी रहती है कि बायां हाथ दाएं कंधे पर और दायां हाथ बाएं कंधे पर रहता है। बच्चे के पैर अंदर की ओर मुड़े होते हैं और दोनों टांगें घुटने से मुड़ी रहती है। गर्भाशय में बच्चे की यह सामान्य अवस्था है।

गर्भाशय में बच्चे के लेटने की तीन अवस्थाएं होती है-

    पहली अवस्था में बच्चा गर्भाशय की लंबाई के साथ लेटा होता है। बच्चे की यह सामान्य अवस्था लगभग 98 प्रतिशत तक पाई जाती है।
    दूसरी अवस्था में बच्चा गर्भाशय में तिरछा लेटा होता है और प्रसव से पहले सीधा हो जाता है।
    तीसरी अवस्था में बच्चा गर्भाशय की चौड़ाई के साथ लेटा होता है। इस अवस्था में बच्चे के लेटने पर प्रसव के दौरान स्त्री का ऑप्रेशन करके बच्चे का जन्म कराया जाता है।

प्रसव के लक्षण-

          सामान्य तौर पर गर्भ ठहरने के 280 दिनों के बाद बच्चे का जन्म होता है लेकिन किसी-किसी मामले में बच्चा 1-2 सप्ताह पहले ही जन्म ले लेता है।  

          प्रसव का पहला लक्षण दर्द उठना है। प्रसव के दौरान थोड़े-थोड़े समय के बाद बार-बार दर्द उठता रहता है। दर्द के साथ गर्भद्वार से स्राव भी होता है जो खून के साथ आता है। प्रसव के समय गर्भवती स्त्री की बार-बार मूत्र त्याग करने की इच्छा होती रहती है। इस प्रकार की स्थितियां पैदा होते ही गर्भवती स्त्री को तुरंत अस्पताल आदि में ले जाना चाहिए नहीं तो दाई तो घर पर बुला लेना चाहिए।

          गर्भवती स्त्री को चाहिए कि प्रसव से पहले वह स्नान और शौच आदि कामों से निपट लें। अस्पताल में भी प्रसव कराने से पहले गर्भवती स्त्री को एनिमा देकर मलत्याग द्वारा उसकी आंतों को खाली करा दिया जाता है। प्रसव से कुछ दिन पहले जननांगों पर उग रहे बालों को काटकर साफ कर लेना चाहिए।

प्रसव की क्रिया-

प्रसव की क्रिया को तीन अवस्थाओं में बांटा गया है-

पहली अवस्था-

          जैसे-जैसे गर्भवती स्त्री को प्रसव का दर्द उठता है वैसे-वैसे ही गर्भाशय का तंग मुंह धीरे-धीरे करके बड़ा होने लगता है। इस तरह गर्भद्वार चौड़ा होकर गर्भाशय की वस्तिगुहा में मिल जाता है जिससे बच्चा आसानी से वहां से बाहर निकल पाता है।

          इस अवस्था को खत्म होने में लगभग 5 से लेकर 20 घंटे तक लग सकते हैं। पहले प्रसव के समय यह अवस्था अपेक्षा से कहीं ज्यादा बड़ी होती है। इसमें बच्चे के चारों ओर लिपटी (एम्निओटिक) झिल्ली फट जाती है। इस अवस्था में प्रसव का दर्द 2-3 मिनट के बाद उठता रहता है। इस अवस्था में गर्भवती स्त्री के ब्लडप्रेशर, हृदय की गति (दिल की धड़कन), बच्चे की हृदय गति (दिल की धड़कन), शरीर का तापमान, गर्भाशय के मुंह का फैलाव आदि की जांच की जाती है। अगर गर्भाशय का संकोचन कम होता है और गर्भाशय के मुंह का फैलाव पूरी तरह नहीं है तो डाक्टर गर्भवती स्त्री की नसों में एक इंजेक्शन लगाता है। इस अवस्था के अंत में गर्भ का मुंह पूरी तरह से खुल जाता है और बच्चा नीचे की तरफ बढ़ने लगता है। एम्निओटिक झिल्ली के फटने से एम्निओटिक द्रव्य का बच्चे के ऊपर दबाव पड़ता है जिससे वह नीचे की तरफ होता जाता है।

दूसरी अवस्था-

          इस दूसरी अवस्था में जब गर्भ का मुंह पूरी तरह से खुल जाता है तो गर्भाशय के दबाव से बच्चे का सिर स्त्री की हृदय में आ जाता है। ऐसे में दर्द उठने के साथ-साथ गर्भवती स्त्री को बच्चे को नीचे की ओर धकेलने की इच्छा होती है। बच्चे पर लगातार दबाव पड़ने से उसकी कमर झुक जाती है। ऐसे में कम से कम खुले गर्भद्वार से बच्चे का सिर निकल जाता है। जैसे ही स्त्री की बच्चे को धक्का देने की इच्छा होती है वैसे ही डाक्टर उसे हर बार दर्द उठने पर धक्का लगाने को बोलता है। इसके लिए स्त्री को अपनी सांस रोककर मलत्याग करने की क्रिया की तरह जोर लगाना चाहिए। दर्द उठने के साथ स्त्री जितनी ताकत के साथ जोर लगाती है बच्चा उतनी ही आसानी से पैदा होता है। लेकिन स्त्री को एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि धक्का सिर्फ दर्द उठने पर ही लगाना है।  

          बच्चे का सिर बाहर आते ही डाक्टर द्वारा उसके आंख, नाक, कान और मुंह के स्राव को साफ कर दिया जाता है। बच्चे के जन्म लेते ही डाक्टर उसे पैरों के बल उल्टा करके उसके स्राव को साफ कर देते हैं। जन्म लेने के कुछ पलों के बाद जब बच्चा पहली बार सांस लेता है तो उसका रंग लाल या गुलाबी सा हो जाता है। इसके साथ ही बच्चा रोता और चिल्लाता है। इसके बाद बच्चे की गर्भनाल को काटकर बच्चे को पूरी तरह से बाहर निकाल लिया जाता है।

          बच्चे के जन्म लेने के बाद गर्भनाल गीली और लिसलिसी होती है। उसको काटने के लिए हमेशा तेज ब्लेड को ही प्रयोग में लाया जाता है। जब बच्चे की सांस सामान्य हो जाती हो तो उसे मां के पैरों के पास लेटाकर गर्भनाल को 2 जगह से बांधकर किसी मजबूत धागे से बांध दिया जाता है और फिर गर्भनाल को बीच में से काट दिया जाता है।  

तीसरी अवस्था-

          इस तीसरी अवस्था में गर्भनाल को खींचकर गर्भाशय से अपरा को अलग कर लिया जाता है। इसमें इस बात का ध्यान रखना जरूरी होता है कि अपरा और झिल्लियां पूरी तरह से बाहर निकल आए क्योंकि अगर अपरा का कोई भी भाग अंदर रह जाता है तो स्त्री को काफी ज्यादा रक्तस्राव होता है। इस काम में 5 से 15 मिनट तक लग जाते हैं। साधारण प्रसव के दौरान स्त्री का लगभग 250 से 300 मिलीलीटर तक रक्तस्राव हो जाता है।

असामान्य प्रसव-

    अगर प्रसव की क्रिया पूरी तरह से संपन्न न हो और उसमें किसी तरह की रुकावट पैदा हो जाए या औजारों अर्थात ऑप्रेशन की जरूरत पड़ जाए तो उसे असामान्य प्रसव कहा जाता है। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे-
    बच्चा गर्भाशय में गलत अवस्था में लेटा हो।
    बच्चे के निकलने के हिसाब से गर्भाशय का मुंह छोटा पड़ जाए।
    अपरा नीचे के भाग में मौजूद हो।
    बच्चे के जन्म लेने के दौरान पहले उसका सिर बाहर आने की बजाय उसके शरीर का कोई और अंग पहले बाहर आ जाने की वजह से रुकावट पैदा हो जाए।
    प्रसूता स्त्री को टॉक्सीमिया हो जाए।
    श्रोणिमेखला सिकुड़ा हुआ या विकृत हो।

फोरसैप द्वारा बच्चे का जन्म-

          प्रसव के सामान्य रूप से होने की स्थिति में डाक्टर बच्चे को पैदा करने के लिए एक औजार को प्रयोग में लाते हैं जिसे ’प्रसव संडासी’ या आबस्टेटिकल फोरसैप कहते हैं। जब प्रसव की दूसरी अवस्था में बच्चे का सिर किसी कारणवश स्त्री की योनि में ही फंस जाता है तो बच्चे के सिर को फोरसैप द्वारा पकड़कर बाहर खींच लिया जाता है। इसमें किसी तरह का कष्ट नहीं होता है।

बच्चे का जन्म सिर के बल न होना-

          सामान्य अवस्था में लगभग 98 प्रतिशत बच्चों का जन्म सिर के बल होता है। सिर्फ 2 प्रतिशत बच्चे ही इस तरह के होते हैं जिनका जन्म पैरों या नितंबों के बल होता है।

          गर्भ ठहरने के लगभग 7 महीनों तक बच्चा गर्भाशय में इस तरह से रहता है कि उसके नितंब नीचे की तरफ रहते हैं लेकिन नौंवें महीने से पहले वह अचानक इस प्रकार घूम जाता है कि उसका सिर गर्भाशय के मुंह की ओर हो जाता है। लगभग 3-4 प्रतिशत बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता। इसलिए उनको औजारों के द्वारा जन्म दिया जाता है।

सीजेरियन सैक्शन-

          सीजेरियन सैक्शन एक ऑप्रेशन है जिसमें गर्भवती स्त्री के पेड़ू ओर गर्भाशय में चीरा लगाकर बच्चे का जन्म कराया जाता है। प्रसव में अचानक किसी तरह की रुकावट आने के कारण इस ऑप्रेशन को किया जाता है। वैसे इस तरह के ऑप्रेशन के करने की मुख्य वजह श्रोणिमेखला का तंग या खराब होना है। एक बार सीजेरियन ऑप्रेशन के बाद दुबारा सामान्य प्रसव भी हो सकता है।

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