जैसे ही गौतम गर्भस्थ हुए उसी क्षण
बत्तीस प्रकार की दैविक घटनाएँ घटित हुई थी जिनमें
भूचालच; दस हज़ार लोकों में अचानक
रोशनी का फैलाव और नरक की अग्नि का
शमन उल्लेखनीय हैं।
दस महीनों के बाद लुम्बिनी के एक उपवन
में गौतम का जन्म हुआ। कहा जाता है,
शिशु के जन्म चार महाब्रह्मों द्वारा
बिधायी गयी स्वर्ण-जाल में हुआ था तथा दैवी-बारिश
में उनका स्नान हुआ था। जन्म लेने के साथ ही शिशु ने
सात पग बढाए थे और सिंहनाद करते हुए
स्वयं का परिचय लोक नाथ के रुप में दिया था। जिस दिन गौतम का जन्म हुआ था उसी दिन
बोधि-वृक्ष; राहुलमाता (यशोधरा); अश्व;
सारथी धन्न; उनका हाथी और सात प्रकार के बहुमूल्य कोश
भी उत्पन्न हुए थे।