ब्रह्मलोक के एक देव और एक देवी का जन्म एक बार मनुष्य योनि में हुआ। देव-पुत्र का नाम दुकुलक तथा देव-पुत्री का नाम पारिका था। दोनों के माता-पिता में पारिवारिक मित्रता थी अत: जब दोनों बड़े हुए तो परिवार वालों ने उनका विवाह करा दिया।
चूँकि दोनों सत्व देव-लोक-वासी थे अत: विवाहोपरान्त भी दोनों में कोई शारीरिक सम्बन्ध नहीं हुआ। फिर भी देव लोक के राजा सक्क (शक्र ; इन्द्र) की प्रेरणा से दुकुलक ने एक दिन पारिका की नाभि का स्पर्श किया। परिणामत: पारिका ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम साम रखा गया।
एक दिन पति-पत्नी जब एक वन में घूम रहे थे तो तेज वर्षा आरम्भ हुई। उन्होंने एक पेड़ के नीचे शरण ली और बारिश से अपने बचाव करना चाहा। किन्तु उनके शरीर और वस्र से रिसते पानी से एक भयंकर विषधर साँप भीगने लगा जो उनके पैरों के नीचे चीटियों के एक बिल में निवास का रहा था। वृद्ध साँप ने तब एक भयंकर उच्छ्वास छोड़ा। उसके उच्छ्वास में विद्यमान विष-कण और पानी जब उन दोनों की आँखों में पड़ा तो दोनों की दृष्टि चली गयी।
देर शाम तक जब साम के माता-पिता वापिस घर नहीं लौटे तो वह उन्हें ढूँढता हुआ उसी वन में पहुँचा। थोड़ी देर ढूँढने के बाद उसने उन्हें वन में भटकता पाया। फिर वह उन्हें घर ले आया और तभी से उनकी सेवा-शुश्रुषा करने लगा।
एक बार पिलियक्ख नामक वाराणसी का एक राजा शिकार खेलता उसी वन में पहुँचा, जहाँ साम और उसके माता-पिता रहते थे। उस समय साम पास के जलाशय में अपने वृद्ध माता-पिता के लिए एक घड़े में जल भर रहा था जिसकी आवाज सुन राजा ने सोचा शायद कोई जानवर पानी पी रहा था। शब्द की दिशा में राजा ने एक बाण चलाया जो साम के हृदय को बींध गया। राजा जब घटना-स्थल पर पहुँचा तो साम को दम तोड़ता पाया।
उसी समय राजा के सामने एक यक्षिणी प्रकट हुई जो किसी जन्म में साम की माता थी। उसने राजा को डराते हुए साम के माता पिता को साम की मृत्यु की सूचना देने का आदेश दिया।
राजा ने जब साम के माता-पिता को पुत्र की मृत्यु का समाचार दिया तो उन्होंने बिना विचलित हुए राजा से उन्हें साम के शव के पास ले जाने को कहा। जब माता-पिता साम के मृत शरीर के पास पहुँचे तो यक्षिणी ने सच्चकिरिया द्वारा साम को पुनर्जीवित कर दिया। तत: उसने साम के माता-पिता की आँखों में भी रोशनी लौटा दी।