भी भयभीत हो जाते हैं !" सुतसोम ने तब उसे बताया कि वह मृत्यु से भयभीत नहीं था ; बल्कि एक श्रेष्ठ ॠषि के वचनों से वंचित रहने के कारण दु:खी था। सुतसोम ने तब कलमसपदास से दो दिनों मांगा ताकि वह ॠषि नन्द के पूर्ण उपदेश ग्रहण कर सके। सिंह-पुरुष ने उसे दो दिन का समय दे दिया।
ॠषि के उपदेश सुनने के बाद सुतसोम जब कलमसपदास के पास वापिस लौट आया तो कलमसपदास चकित रह गया और उसपर प्रसन्नता प्रकट करते हुए उसे वर मांगने को कहा। सुतसोम ने तब उससे कहा कि जो व्यक्ति स्वयं अपनी आकांक्षाओं और तृष्णा का दास हो, वह दूसरों को कैसी मुक्ति और कैसा वरदान दे सकता है ?"
सुतसोम के वचन सुनकर सिंह-पुरुष की आँखें खुल गयी और उसका सोया हुआ मनुष्यत्व भी जाग गया। उसने सुतसोम को छोड़ दिया और उसके साथ मिलकर अपने पिता सुदास का राज्य भी फिर से वापिस प्राप्त कर लिया। उसने फिर कभी मानव-मांस का भक्षण नहीं किया।