भुवनेश्वरी मंदिर का पत्थर का घाट गोमती नदी में जाकर मिल गया है। एक दिन ग्रीष्म-काल की सुबह त्रिपुरा के महाराजा गोविन्दमाणिक्य स्नान करने आए हैं, उनके भाई नक्षत्रराय भी साथ हैं। ऐसे समय एक छोटी लडकी अपने छोटे भाई को साथ लेकर उसी घाट पर आई। राजा का वस्त्र खींचते हुए पूछा, "तुम कौन हो?"

राजा मुस्कराते हुए बोले, "माँ, मैं तुम्हारी संतान हूँ।"

लडकी बोली, "मुझे पूजा के लिए फूल तोड़ दो ना!"

राजा बोले, "अच्छा, चलो।"

अनुचर बेचैन हो उठे। उन्होंने कहा, "महाराज, आप क्यों जाएँगे, हम तोड़े दे रहे हैं।"

राजा बोले, "नहीं, जब मुझे कहा है, तो मैं ही तोड़ कर दूँगा।"

राजा ने उस लडकी के चेहरे की ओर ताका। उस दिन की निर्मल उषा के साथ उसके चेहरे का सादृश्य था। जब वह राजा का हाथ पकड़े मंदिर से सटे फूलों के बगीचे में घूम रही थी, तो चारों ओर के लता-पुष्पों के समान उसके लावण्य भरे चेहरे से निर्मल सौरभ का भाव प्रस्फुटित होकर प्रभात-कानन में व्याप्त हो रहा था। छोटा भाई दीदी का कपड़ा पकड़े दीदी के संग-संग घूम रहा था। वह एकमात्र दीदी को ही जानता है, राजा के साथ उसकी कोई बड़ी घनिष्ठता नहीं हुई।

राजा ने लडकी से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है बेटी?"

लडकी बोली, "हासी।"

राजा ने लड़के से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

लडका बड़ी-बड़ी आँखें फाड़े दीदी का मुँह ताकता रहा, कोई उत्तर नहीं दिया।

हासी ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, "बोल-ना भैया, मेरा नाम ताता है।"

लडका अपने छोटे-से होंठ जरा-सा खोल कर गंभीर भाव से दीदी की बात की प्रतिध्वनि के समान बोला, "मेरा नाम ताता है।"

बोल कर दीदी का कपड़ा और कस कर पकड़ लिया।

हासी राजा को समझाते हुए बोली, "वो लडका है-ना, इसीलिए सब उसे ताता बुलाते हैं।"

छोटे भाई की ओर मुँह घुमा कर कहा, "अच्छा, बोल-तो मंदिर।"

लडके ने दीदी के मुँह पर ताक कर कहा, "लदन्द।"

हासी ने हँस कर कहा, "ताता मंदिर नहीं बोल पाता, बोलता है, लदन्द। - अच्छा, बोल-तो कढ़ाई।"

लडका गंभीर होकर बोला, "बलाई।"

हासी फिर हँस पड़ी, बोली, "हमारा ताता कढ़ाई नहीं बोल पाता, बोलता है, बलाई।"

कह कर चूमते-चूमते उसे परेशान कर डाला।

ताता दीदी की अचानक इतनी हँसी और इतने लाड-प्यार का कोई कारण नहीं खोज पाया, वह केवल बड़ी-बड़ी आँखें फाड़े देखता रहा। वास्तव में ही मंदिर और कढ़ाई शब्द के उच्चारण में उसकी पूरी-पूरी गलती थी, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता; ताता की आयु में हासी कभी भी मंदिर को लदन्द नहीं बोलती थी, वह मंदिर को बोलती थी, पालु और पता नहीं कढ़ाई को बलाई बोलती थी या नहीं, लेकिन कड़ी (घोंघे की प्रजाति के समुद्री प्राणी का ऊपरी आवरण) को बोलती थी, घयि, अतएव ताता के ऐसे विचित्र उच्चारण को सुन कर उसे बहुत हँसी आ जाएगी, इसमें आश्चर्य कैसा! ताता से जुडी अनेक घटनाएँ वह राजा को बताने लगी। एक बार एक बूढा आदमी कम्बल ओढ़ कर आया था, ताता ने उसे बताया था, भालू; ताता की ऐसी मंद बुद्धि है। और एक बार पेड़ पर लगे शरीफे के फलों को पक्षी समझ कर ताता ने अपने मोटे-मोटे छोटे-छोटे हाथों से ताली बजा कर उन्हें उड़ाने की चेष्टा की थी। ताता की दीदी ने विस्तृत उदाहरणों द्वारा पूरी तरह प्रमाणित कर दिया कि ताता हासी से बहुत छोटा है। ताता अपनी बुद्धि के परिचय की कथा नितांत अविचलित भाव से सुन रहा था, जितना समझ पाया, उसमें क्षोभ का तनिक भी कारण नहीं देख पाया। इस प्रकार उस दिन सुबह फूल चुनना समाप्त हुआ। जब छोटी लडकी को आँचल भर कर फूल दिए, तब राजा को लगा कि उनकी पूजा संपन्न हुई; इन दो सरल प्राणों के स्नेह का दृश्य देख कर, इस पवित्र हृदय की आशा को पूर्ण करते हुए फूल चुन कर देकर, मानो उनकी देवा-पूजा का काज संपन्न हुआ।

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