आरती लक्ष्मण बाल जती की। असुर संहारन प्राणपति की॥
जगमग ज्योति अवधपुरी राजे। शेषाचल पर आप विराजे॥
घंटाताल पखावज बाजै। कोटि देव आरती साजै॥
क्रीटमुकुट कर धनुष विराजै। तीन लोक जाकि शोभा राजै॥
कंचन थार कपूर सुहाई। आरती करत सुमित्रा माई॥
प्रेम मगन होय आरती गावैं। बसि बैकुण्ठ बहुरि नहीं आवैं॥
भक्ति हेतु हरि लाड़ लड़ावै। जब घनश्याम परम पद पावैं॥

Comments
हमारे टेलिग्राम ग्रुप से जुड़े। यहाँ आप अन्य रचनाकरों से मिल सकते है। telegram channel