आरती साईबाबा।
सौख्यदातारा जीवा।
चरणरजतळीं निज दासां विसावां।
भक्तां विसावा॥धृ॥
जाळुनियां अनंग।
स्वस्वरुपी राहे दंग।
मुमुक्षुजना दावी।
निजडोळां श्रीरंग॥१॥
जया मनीं जैसा भाव।
तया तैसा अनुभव।
दाविसी दयाघना।
ऐसी ही तुझी माव॥२॥
तुमचें नाम ध्यातां।
हरे संसृतिव्यथा।
अगाध तव करणी।
मार्ग दाविसी अनाथा॥३॥
कलियुगीं अवतार।
सगुणब्रह्म साचार।
अवतीर्ण झालासे।
स्वामी दत्त दिगंबर॥४॥
आठा दिवसां गुरुवारी।
भक्त करिती वारी।
प्रभुपद पहावया।
भवभय निवारी॥५॥
माझा निजद्रव्य ठेवा।
तव चरणसेवा।
मागणें हेंचि आता।
तुम्हा देवाधिदेवा॥६॥
इच्छित दीन चातक।
निर्मळ तोय निजसुख।
पाजावें माधवा या।
सांभाळ आपुली भाक॥७॥

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