यदि यह मुनि का पौत्र रहेगा चक्रवर्ती लक्षण से युक्त
तब इसको रनिवास कक्ष में सादर कर लेंगे संयुक्त,
संभवतः विपरीत हुआ ही तब तो इसे पिता के पास
प्रेषित कर देना निश्चित है, ऐसा है मेरा विश्वास’
गुरुवाणी को शिरोधार्य कर सादर तभी पुरोहित को
राजन बोले ‘जिस प्रकार से उचित लगे यह गुरुवर को’
नृप से सहमति प्राप्त पुरोहित शकुन्तला से किया कथन
‘पुत्री! मेरे पीछे आओ’ कहकर करने लगे गमन
‘हे भगवति वसुधे! मुझको अब अपने अन्दर दे स्थान’
ऐसा कहकर शकुन्तला ने रोते हुए किया प्रस्थान
चले गये गुरुदेव पुरोहित और साथ ही तपसीजन
इन लोगों के साथ निकलकर शकुन्तला ने किया गमन
शाप प्रभाव रुद्ध स्मृति में बैठे हुए वहीं राजन
शकुन्तला के सम्बन्धों का करने लगे शान्त चिन्तन
इसी समय ही निकट द्वार पर हुआ एक स्वर ‘है आश्चर्य!’
यह सुनकर नृप लगे सोचने ‘इस स्वर का है क्या तात्पर्य?’
किए प्रवेश पुरोहित तत्क्षण बोले अति आश्चर्य सहित
‘महाराज! अवगत करता हूँ अद्भुत घटना हुई घटित’
नृप पूँछे ‘कैसी?’ तदनन्तर कहा पुरोहित ने इस पर
‘महाराज! उन कण्व शिष्यों के आश्रम वापस जाने पर
वह शकुन्तला भागधेय को निन्दा में कोसती हुई
और भुजायें उत्थित करके क्रन्दन मे तब प्रवृत हुई’
ऐसा सुनकर कौतूहल में नृप ने पूँछा अक्षरशः
‘और क्या हुआ?, भगवन बोलें’ कहा पुरोहित ने क्रमशः

तभी अप्सरा तीर्थ सन्निकट नारी की आकारमयी
एक ज्योति आकर, गोदी में उसे उठाकर चली गयी’
इस अतिशय विचित्र घटना को सुनकर सभी उपस्थित जन
विस्मय बोध किए मन में, तब कहे पुरोहित से राजन
‘भगवन्! पहले ही उस धन से हूँ प्रत्यर्पण कर उपराम,
क्यों करते हैं व्यर्थ तर्क अब?, जाकर आप करें विश्राम’
तत्क्षण नृप का अवलोकन कर, करके तर्कों का अवसान
‘महाराज की जय हो कहकर’ किया पुरोहित ने प्रस्थान
वहीं उपस्थित वेत्रवती से बोले अति अधीर राजन
‘मैं व्याकुल हूँ, शयन कक्ष तक करो मार्ग का निर्देशन’
राजाज्ञा सुनकर प्रतिहारी देती हुई उन्हें सम्मान
बोली ‘देव! इधर से आयें’ तत्पश्चात् किया प्रस्थान
चिन्ताग्रस्त अशान्तमना नृप सोच रहे थे इसी समय
यद्यपि कि प्रत्यर्पित मुनि की तनया के संग का परिणय
नहीं मुझे स्मृति में आता, किन्तु हुआ है परिणय-रास
बलवत् पीड़ित हृदय हमारा दिला रहा ऐसा विश्वास’

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