दैत्यों और दानवों को एक ही माना जाता रहा है जबकि ये सभी अलग अलग थे। हालांकि दोनों एक दूसरे के सहयोगी थे। दानव विशालकाय होते थे। इतने विशालकाय की वे मानव को अपने पैरों से आसानी से कुचल सकते थे।
ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई। इन सभी ने दानव कुल और साम्राज्य का विस्तार किया।
 
ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।

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