असुरों को दैत्य भी  कहा जाता है। दैत्यों की कश्‍यप पत्नी दिति से उत्पत्ति हुई थी । कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। इन्हीं से असुरों के कुल और साम्राज्य का विस्तार हुआ।

प्राचीन काल में हिमालय से इतर जो भी भाग था उसे धरती और हिमालय के भाग को स्वर्ग माना जाता था। कुछ लोग मानते हैं कि ब्रह्मा और उनके कुल के लोग धरती के तो नहीं थे। उन्होंने धरती पर आक्रमण करके मधु और कैटभ नाम के दैत्यों का वध कर धरती पर अपने कुल का विस्तार किया था। बस, यहीं से धरती के दैत्यों और स्वर्ग के देवताओं के बीच लड़ाई शुरू हो गई।
 
एक ओर जहां देवताओं के भवन, अस्त्र आदि के निर्माणकर्ता विश्‍वकर्मा थे तो दूसरी ओर असुरों के मयदानव।इंद्र का युद्ध सबसे पहले वृत्तासुर से हुआ था जो पारस्य देश में रहता था। माना जाता है कि ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ क्षे‍त्रों में भी असुरों का ही राज था। इंद्र का अंतिम युद्द शम्बासुर के साथ हुआ था। महाबली बलि का राज्य दक्षिणभारत के महाबलीपुरम में था । असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।
 

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