एक बार बोधिसत्व अमीर परिवार में जन्मा लेकिन कुछ गलत कर्मो की वजह से जुवारी बना | शाम होते ही जुवा खेलने केलिए कुछ जुवारियों के अड्डे पर जाता था और अपना कमाया हुवा पैसा दाव पर लगाता था | लेकिन उसके दोस्त और वो एक दिन के बाद से हर दिन हारने लगे और हमेशा एक ही आदमी जितने लगा | इस तरह वह और उसके दोस्त कंगाल होने लगे और परेशान रहने लगे | लेकिन बोधिसत्व समझदार और बुद्धिमानी था | वह जनता था के जुवे में एक ही व्यक्ति के जितने की संभावना नहीं होती | जरूर वह आदमी कुछ चालाकी करता होगा जिससे वही हमेशा जितता है | तब उस जुवारी ने अपने दूसरे जुवारी से इसके बारे में बात की | एक दिन वे सारे उसी जुवारी के साथ जुवा खेलने बैठ गए | बोधिसत्व सिर्फ उस आदमी को ही देखता और उसकी चाल समजने की कोशिश करता | तब उसे पता चला के वह चालाख
आदमी कुछ पासे अपने कपडे में चुपके से छुपाके रखता था जिसपे एक की आंकड़े लिखे हुवे रहते | जब भी वो पासा फेकता जल्द से बिजली के गति से मन चाहे पासे निकालता और असली वाले पासे मुँह में छुपा लेता था | अब बोधिसत्व जान गया था | दूसरे दिन बोधिसत्व ने यह बात अपने दोस्तों से कही | उन सबने पासो पर कड़वा सा औषदी का लेप लगवाकर फिर से उस आदमी के साथ जुवा खेलने बैठ गए | जैसे ही उस आदमी पासा फेकते वक्त असली वाले पासे मुँह में डाले वह कड़वे स्वाद से बेहाल हो गया और जमीन पे लेटकर रोने पे आ गया | लेकिन बोधिसत्व का मन बुरा नहीं था उसने जल्दी से उस आदमी से उसके जुठ को कबुलवाकर उसे गरम पानी से ठीक करवाया और वह आदमी ठीक हो गया | बाद में उस आदमी को सारे पैसे लौटने पड़े |