नरेन्द्र फोन पर बात समाप्त करके एक गहन सोच में डूब गया। खिडकी का परदा
हटा कर देखा, हलकी बर्फबारी हो रही थी। लंदन में इस साल देर से बर्फबारी
शुरू हुई, जब हुई तो पिछले चार दिनों से लगातार हो रही थी। खिडकी पर परदा
करके ईजी चेयर पर बैठ कर सोचने लगा। नरेन्द्र ईजी चेयर को हलके हलके झूला
रहा था। सोच और उलझन लगातार बढती जा रही थी।
रविवार का दिन था। भारतीय महिला चाहे विदेश में सेटल हो, रविवार का दिन बाल
धोने के लिए रिजर्व है। नीना नहा कर बाथरूम से तौलिए से बालों को झटकाती
हुई निकली और खिडकी का परदा हटाया “आज भी बर्फबारी हो रही है, पता नही मौसम
कब साफ होगा।” कह कर नीना सोफे पर बैठ गई। गंभीर मुद्रा में नरेन्द्र को
देख कर पूछा “क्या सोच रहे हो।”
“इंडिया चलेगी?”
“इंडिया जाना है, इस बात में अति गंभीर होने की क्या बात है। कोई खास गंभीर
बात है?” नीना ने नरेन्द्र के पास आकर उसका हाथ थामा।
“कुछ समझ नही आ रहा है, लेकिन दिल कह रहा है जाने को। नीना यह बिजनस ट्रिप
नही होगा, कुछ खास, कुछ निजी, अभी मैं तुमको समझा नही सकता, कि मैं क्यों
जा रहा हूं, और तुमको क्यों साथ जाने को कह रहा हूं। बस जाना सोच लिया है।
क्यो? मत पूछना।”
नीना टुकर टुकर नरेन्द्र को ताकती रही। उसके मन में क्या उथल पुथल चल रहा
है, समझने का असफल प्रयास करती रही। नीना को परेशान देख कर नरेन्द्र ने
उसका हाथ चूम कर कहा “नीना, डरने की कोई बात नही है। न तो कोई बिजनस की
टेंशन है और न ही कोई परिवारिक। लेकिन यह तय है, कि हो सकता है कुछ जीवन
में परिवर्तन आ जाए। हां अभी मैं खुद यकीन से कुछ कह नही सकता।”
नीना को नरेन्द्र की दार्शनिक बातें समझ में नही आ रही थी। बिजनस और परिवार
में हमेशा संतुलन बना कर चलने वाला नरेन्द्र कभी कभी दार्शनिक बाते भी करते
थे, लेकिन उनकी सोच एक दम शुद्ध, निर्मल और साफ रहती थी, लेकिन आज उनके
विचारों में दुविधा नजर आ रही है। विवाह के तीस वर्ष पश्चात इंडिया जाने पर
आज पहली बार नरेन्द्र को एक दुविधा में देख रही थी। तीस वर्ष पहले नरेन्द्र
के साथ अग्नि के समक्ष सात पवित्र फेरे लेकर लंदन आई थी, मात्र बीस वर्ष की
उम्र में मां, बाप, भाई, बहिन को सात समुन्द्र पार छोड कर नरेन्द्र में समा
गई। इंडिया कभी कभी पांच, सात साल बात जाना होता। नरेन्द्र एक सफल
बिजनेसमेन, लंदन के साथ भारत में भी कई ऑफिस है। नरेन्द्र का तो इंडिया आना
जाना रहता था, लेकिन नीना अपनी गृहस्थी में रमी कभी कभार भारत जाती। अब
दोनो शादीशुदा बच्चे, एक पुत्र और एक पुत्री अपनी गृहस्थी और बिजनेस में
बिजी थे।
नरेन्द्र पचपन और नीना पचास की उम्र में एक नई जिन्दगी में प्रवेश करने जा
रहे हैं, यह नीना तो सोच नही सक रही थी, लेकिन नरेन्द्र कुछ कुछ इसकी आहट
सुन रहा था।
शाम तक नरेन्द्र की उधेडबुन खत्म हुई। “नीना, इस बार इंडिया हम लम्बे समय
के लिए जाएगे। हो सकता है, एक या फिर दो महीने।”
दो महीने सुन कर नीना आश्चर्यचकित हो गई।
“हैरान हो रही हो, नीना, क्योंकि आज तक मैं दो महीने लगातार इंडिया नही
रहा। हमेशा बचता हूं, लम्बे समय तक इंडिया में रहने के लिए। मैंने तुम्हे
कभी नही बताया। यह राज सिर्फ मेरे बचपन का मित्र राजेश और ननीहाल वाले
जानते हैं। पिताजी भी नही रहे। कभी कभी वो कहते थे, इंडिया जाते हो, ऊंटी
वाली आंटी से मिल लिया करो। मैं ऊंटी नही गया। पिताजी की मृत्यु के बाद
किसी ने उस आंटी से मिलने के लिए नही कहा। मामा मामी जानते थे, कि मैं
क्यों नहीं मिलना चाहता हूं। इसलिए उनहोनें कभी नही कहा। खैर छोडो, इंडिया
जाकर इस बार सबसे मिलना है, सब के गिले शिकवे दूर करने की कोशिश करूंगा।”
नीना उंटी वाली आंटी के बारे में कुछ खास नही जानती थी। बस उतना, जितना
नरेन्द्र ने कभी कभी थोडा सा बताया।
“नीना, ससुराल जाऊंगा, कुछ खातिर होगी भी या नही।" नरेन्द्र ने हंसते हुए
चुटकी ली।
“हुजूर सिर आंखों पर बिठाएगे, जनाब बरसों बाद जवाई बाबू का पदापर्ण होगा।”
“मजाक के मूड में हो।”
“शुरूआत तो जनाब आपने की थी।”
हलकी फुलकी नौंक झौंक के बाद नीना का इंडिया फोन मिलाने का सिलसिला शुरू
हुआ, कि वो नरेन्द्र के साथ आ रही है। अगले दिन सबके लिए गिफ्ट खरीदे गए।
दो दिन नरेन्द्र ने दिए। दो दिन बाद इंडिया जाना है।
इंडिया में कोम्बटूर एयरपोर्ट में राजेश ने उनको रिसीव किया। कार में बैठ
कर उंटी की ओर रवाना हुए। सडक के किनारे टेक्सटाईल्स मिलों के बीच निकल कर
आधे घंटे पश्चात अन्नूर के जयललिता रेस्टारेंट रुक कर इडली सांभर और छोले
कटलट खाए।
“रियली टेस्टी, भाई साहब, दक्षिण भारत में दक्षिण और उत्तर भारत का बेहतरीन
स्वादिष्ट खाना बहुत समय बाद खाया है।” नीना ने राजेश का शुक्रिया अदा
किया।
रेस्टारेंट के पास फल की दुकान से नरेन्द्र ने संतरे और अंगूर खरीदे।
“पहाडी रास्ता है, गोल धुमावदार रास्ते में कभी कभी दिल उकताई ले लेता है,
संतरे, अंगूर रामबाण साबित होते है।” नरेन्द्र ने नीना को कहा।
राजेश ने छोटे केलों उठाते हुए नरेन्द्र को कहा “इन केलों के साईज पर मत
जाऔ, स्वाद चख कर बताऔ, कि कितना दम है, छोटे से केले में।”
केला मुंह में रख कर नीना बोली “वाकई इतना छोटा पिद्दी सा केला आज तक नही
देखा। स्वाद बेमिसाल। एक मिठास और बेहतरीन खुशबु के साथ, चख कर देखो,
नरेन्द्र।”
“वाकई, बेमिसाल स्वाद। राजेश लाल केले भी खरीद लो। बचपन में लाल केले मेरी
पहली पसंद थे।”
फल खरीदने के बाद कार केले, नारियल, सुपारी के खलियानों के बीच गुजरती कार
मेट्टुपलायम पहुंची। मेट्टुपलायम से उंटी की ट्रेन चलती है।। “राजेश ट्रेन
में चले, एक रोमांस है, छुक छुक ट्रेन, जब प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच
गुजरती है।”
“ट्रेन का समय नही है, उंटी से कन्नूर का सफर करेंगे, कल।”
मेट्टुपलायम से उंटी का पहाडी रास्ता शूरू हुआ। घुमावदार रास्ता, एक तरफ
पहाड, बीच में कहीं कहीं झरने और दूसरी तरफ पेडों पर बंदरों के झुंड
अठखेलियां करते हुए, कहीं कहीं सडक के बीच में वार्तालाप करते हुए, गाडी
आता देख किनारे पर बैठ जाते। नीना मंत्रमुग्ध प्रकृतिक सौन्दर्य निहारती
रही। नरेन्द्र भी पूरे रास्ते कार के बाहर प्रकृतिक सौन्दर्य देखता रहा।
“राजेश, आज मैं करीब तीस वर्ष बाद उंटी जा रहा हूं, पुरानी यादे ताजा हो गई
है। ट्रेन का सफर प्रफुल्लित करता था। नीना तुम पहले उंटी आई हो।“
“नही, आज पहली बार आ रही हूं।“
कार कन्नूर पार करते हुए उंटी जा रही थी। “भाभीजी नीचे आपको घाटी में रेल
नजर आ रही है, इसी जगह मशहूर फिल्मी गीत छैय्या छैय्या की शूटिंग उंटी
ट्रेन में हुई थी।“
“बिल्कुल टॉय जैसी ट्रेन लग रही है।“
“टॉय ट्रेन ही कहते हैं।“
बातों बातों में उंटी आ गया। कमर्शियल रोड से कुछ दूरी पर हेवलॉक रोड में
123 नंबर बंगला मारबोरोह हाउस पर कार रूकी। केयरटेकर शशीकुमार ने स्वागत
किया।
“आंटी कहां हैं।“
शशीकुमार ने आखरी कमरे की ओर ईशारा किया। कमरे की ठीक बीच एक लकडी का बडा
सा पलंग, जो एक से बडा और दो से छोटा था। रजाई ओढ कर एक वृद्धा लेटी थी।
नरेन्द्र चुपचाप वृद्धा के पैरो के पास बैठ गया। नीना नरेन्द्र के समीप खडी
हो गई। कुछ देर की शांती के बाद राजेश वृद्धा के समीप जाकर बोला “आंटी,
देखो, नरेन्द्र आया है।“
तुरन्त वृद्धा ने आंखे खोली। वृद्द आंखों में गजब की चमक आ गई। बहुत ही
धीमे स्वर में कह पाई “बेटा...। इधर आ।“
नरेन्द्र वृद्धा के पैर छूकर उसके मुख के पास आ गया। नीना के ओर ईशारा करके
कहा “मां, तुम्हारी बहू।“
मां शब्द सुन कर नीना आश्चर्यचकित हो गई। एकाएक धबराहट में वृद्धा के पैर
छुए। वृद्धा ने नीना को आर्शीवाद दिया और नरेन्द्र के समीप बैठने को कहा।
नीना पास आ गई। वृद्धा ने नीना का हाथ अपने हाथों में लिया। हाथों को चूमा।
वृद्धा की आंखों में आंसू थे। वृद्धा की उम्र नब्बे वर्ष के आसपास थी.
छुरियों से भरपूर खूबसूरत गोरा चेहरा। कुछ असपष्ट से शब्दो में कुछ कह रही
थी, लेकिन समझ में नही आया। आंखें मूंद कर नीना के हाथ को चूमती रही। प्यार
से विभोर सब कुछ न्यौछावर करने को आतुर थी वृद्धा। नम आंखों को बंद करके
आर्शीवाद देती रही। नरेन्द्र शशीकुनार से आंटी की तबीयत के बारे में पूछता
रहा। आंटी पिछले सात आठ महानों से बीमार चल रही थी. बिस्तर तक सीमित थी।
डाक्टर घर में आकर देख जाता था। डाक्टर अस्पताल में दाखिल कराने को कहता
है, वहां अच्छे से तीमारदारी हो सकती है। नरेन्द्र ने डाक्टर को बुला कर
आंटी को अस्पताल में दाखिल करवाया। रात को नरेन्द्र थक कर सो गया, लेकिन
नीना की आंखों में नींद गायब थी।
सुबह लॉन में हल्की गुनगुनी धूप छा रही थी। नरेन्द्र और नीना कुर्सियां
डाल कर चाय की चुस्कियां ले रहे थे।
“आपने कभी मां के बारे में बताया नही। अपने दिल में दफन करके रखी थी।“
“बचपन में ही दफन कर दी थी। पर कुछ रिश्ते ऐसे होते है, कि वो जिन्दा भी
रहते है और दफन भी। मां का रिश्ता भी कुछ ऐसा था। नीना मै मां को ऊंटी वाली
आंटी कहता था। बहुत कम बताया, तुम्हे, मैंने तुमहे कभी नही बताया कि आंटी
मेरी मां है, वास्तविक नाम देविका रानी है। अपने समय की मशहूर फिल्म
अभिनेत्री।“
अभिनेत्री शब्द सुन कर नीना चौंक गई।
“हां, फिल्म अभिनेत्री आभा, पचास के दशक की मशहूर अभिनेत्री। ब्लेक एँड
वहाइट जमाने की अभिनेत्री। तुम्हे फिन्मों का शौंक है। आभा की भी फिन्में
देखी होगी।“
"हां, कुछ देखी हैं, कभी सोचा नही, कि वो तुम्हारी मां है।“
तभी शशीकुमार ने संदेश दिया कि होस्पीटल से फोन आया है। आपको बुलाया है।
चलो नीना, अस्पताल चलते हैं। अस्पताल में डाक्टरो से मुलाकात की। सब
डाक्टरों और नर्सों से मां का पूरा ख्याल रखने को कहा। हर संभव उपचार की
हिदायात थी और एडवांस पेमेंन्ट जमा की। नीना मां को देख रही थी। मां आज भी
सुन्दर है। नब्बे वर्ष की उम्र में पतला, दुबला, झुरियों वाला शरीर अपनी
बीती सुन्दरता का ब्खान कर रहा था। आज मां को देख कर कोई भी यौवन में
सुन्दरता सोच सकता है। बहुत ही सुन्दर रही होगी मां। नीना मां की पुरानी
फिल्मों की याद ताजा करके सौन्दर्य का विष्लेणन कर रही थी।
अस्पताल से बाहर आकर नरेन्द्र नीना को रोज गार्डन ले गया। “नीना यह रोज
गार्डन भारत का सबसे बडा रोज गार्डन है। गुलाब के फूलों से लदा बगीचा हर
फूल को निहारने का आमंत्रण दे रहा है। गुलाब के फूलों की खुशबू आत्मविभोर
कर रही है। हर वैरेयटी का फूल आकर्षित कर रहा है। मां की सुन्दरता और
व्यक्तित्व गुलाब की खुशबू की तरह खींचती थी। गुलाब की हर समानता मां में
थी। गुलाब में कांटा जरूर होता है। कांटा फिल्म अभिनेत्री होना।“
सीडीयां उतरते रोज गार्डन और ऊंटी शहर की सौन्दर्य निहारते हुए बातें करते
रहै। नीना नरेन्द्र की दार्शनिक बातों को अब कुछ कुछ समझ रही थी। मां के
बारे में नरेन्द्र नीना को थोडा थोडा बता रहा था। रोज गार्डन के बाद दोनों
बोटेनिकल गार्डन पहुंचे। जहां रोज गार्डन सीडीयां नीचे उतरता जाता था, वहीं
बोटेनिकल गार्डन ऊंचाई पर जा रहा थआ, नीचे देख कर बाग की खूबसूरती अनोखी लग
रही थी।
“नीना रोज गार्डन, बोटेनिकल गार्डन की गहराई, ऊंचाई की छटा, सौन्दर्य अलग
है, वैसे मां का सौन्दर्य भी देखने वाला था। बचपन की यादें मस्तिषक के किसी
कोने से निकल आती हैं। दफन करने के बाद भी जिन्दा रहते हैं। कभी दिल में,
कभी मन में। यादें फिर से दस्तक देती हैं। मां के साथ मेरी भी खूबसूरती की
तारीफें की जाती थी। मेरी तरफ देखो, नीना, मां की खूबसूरती मेरे में नजर
क्या आ रही है?”
बोटेनिकल गार्डन की खूबसूरती निहारने के बाद पति के मुख को निहारने लगी।
पति तो सुन्दर थे। विवाह के समय भी की खूब छेडा गया था, पत्नी से अधिक
सुन्दर पति है। सुन्दर, खूबसूरत पति पर नीना को शुरू से नाज था। कभी तुलना
नही की, लेकिन मां और नरेन्द्र की शक्ल और सौन्दर्य में समानता है।
रात को ठंड अधिक थी। बोनफायर के पास बैठ कर नरेन्द्र ने पुराना पिटारा खोला। मां अपने फिल्मी नाम आभा के नाम से जानी जाती थी। मेरे पिता एक सफल उद्योगपति। पार्टियों में मिलते रहे, प्यार हुआ, फिर पवित्र विवाह के बंधन में बंध गए। विवाह के पश्चात मां ने फिल्मों में काम करना छोड दिया। मेरे जन्म के बाद मां में फिल्मों में काम करने की इच्छा व्यक्त की। पापा और परिवार मां के फिल्मों में फिर से काम करने के खिलाफ थे। पापा चाहते थे, कि मां उसके साथ बिजीनेस में हाथ बटाए, लेकिन गलैमर की चकाचौंध और फिल्म इंडस्ट्री से ऑफर ने मां को फिल्मों की तरफ दुबारा मोड दिया। मैं मात्र तीन साल का था, कि मां और पापा का तलाक हो गया। पापा ने दूसरी शादी कर ली, लेकिन दस साल बाद कैंसर की बीमारी से दूसरी मां का देहान्त हो गया। मेरा बचपन ननीहाल में बीता। कभी कभी मां से मिलना होता, मैं मां से दूर दूर रहता, क्योंकि मैंने मां को पापा से झगडते देखा। मां की कमी खलती थी। समाचारपत्रों या फिल्मी मैगजीनों से मां के बारे में गौसिप ही सुनने को मिलते थे। इसी कारण किसी को मां के बारे में नही बताता था। मैंने मां को मृत्य घोषित कर दिया था, सभी को कहता था, कि मां का देहान्त मेरे बचपन में ही हो गया और मेरी परवरिश ननिहाल में हुई। पांचवी कक्षा तक मुम्बई में पढा, फिर उंटी के स्कूल में होस्टल से पढाई की। पापा बिजीनेस में डूबे रहते, लेकिन हर साल गर्मियों की छुट्टी में पापा मुझे लंदन ले जाते। मेरा बचपन उंटी के इसी बंगले में हुआ था। पापा ने मां को शादी में यह बंगला गिफ्ट किया था। यह बंगला पहले एक अंग्रेज वॉटमेन का था। वॉटमेन का पापा से बिजीनेस संबंध थे। देश आजादी के कुछ साल बाद जब वॉटमेन वापिस इंगलैड चले गए तब पापा ने यह बंगला खरीदा था और शादी में मां को गिफ्ट किया था, लेकिन जब दुबारा मां फिल्मों में चली गई, तब इस बंगले को छोड दिया था, लेकिन बंगला मां के नाम था। स्कूल की पढाई के बाद पापा मुझे लंदन ले गए। कॉलेज इंगलैड में और फिर पापा के साथ बिजीनेस में आ गया। उधर मां ने भी दूसरी शादी कर ली। लगभग बीस साल पहले दूसरे पति का देहान्त हो गया और तब से मां इसी बंगले में रह रही है। पापा चाहते थे, कि मेरी शादी किसी अच्छे रईस परिवार में हो, लेकिन फिल्मी बैकग्राउंड की मां को देख कर मैं किसी साधारण परिवार की लडकी से विवाह चाहता था, ताकि उसकी महत्वकांक्षा से विवाहिक जीवन पर कोई आंच न आए, इसी कारण एक मध्यमवर्गीय परिवार की युवती नीना को अपना जीनवसाथी बनाया, जिस का मुझे गर्व है, कि मेरा निर्णय गलत नही रहा। हांलाकि पापा ने पहले इसका विरोध किया था, लेकिन मेरी बात और बचपन का अनुभव सुन कर स्वीकृति दे दी। मां के फिल्मी बैकग्राउंड ने मां को काफी समय तक सुर्खियों में रखा। दूसरे पति के देहान्त के बाद मां ने पाप से संपर्क बनाया। मुझे कुछ कुछ ऐसा लगता है, कि पापा मां से इंडिया मिलने भी गए और मां लंदन आई। दोनों काफी समय तक एक साथ रहे। मैं इस गहराई में कभी नही गया। पापा ने एक बार मुझसे कहा, कि मां से एक बार मिल ले, मैंरे इन्कार करने के पश्चात फिर जिक्र नही किया। पापा की मृत्यु के पश्चात राजेश ने मां के बारे में बात की, लेकिन मैंने मना कर दिया। मां ने राजेश से संपर्क बनाये रखा। कभी कभी राजेश मां के बारे में बताता, मैं सिर्फ सुनता रहता। समय बीतता गया, मां के बारे में मेरी राय बदली नही।
ऊंटी आए तीन दिन हो गए थे। मां के मेडिकल टेस्ट हो चुके थे। मां के चेहरे पर रौनक थी। उम्र की वजह से डाक्टरों ने कोई उम्मीद नही दिलाई, लेकिन नरेन्द्र को संतुष्टि थी, मां से मिल कर और मां को चैन था, पुत्र से मिल कर।
शशीकुमार ने समाचार पत्र नरेन्द्र को दिए। मुख्य पृष्ठ पर मां की फोटो के साथ लेख छपा था। बीते जमाने की मशहूर अभिनेत्री आभा का पुत्र मिलन। नरेन्द्र मुसकुरा दिया। नीना के आगे अखबार सरका दिया। नीना पढने लगी। मां की पुरानी फोटो के साथ अस्पताल के बेड पर लेटी मां की फोटो। मीडिया नरेन्द्र के बारे में कुछ जानती नही, जो अस्पताल के सुत्रो से पता चला, छाप दिया कि लंदन से पुत्र ईलाज करवाने आया। बरसों बाद मां बेटे का मिलन हुआ है।
ऊंटी के आसपास प्राकृतिक सौन्दर्य बहुत है। ऊंटी से पाइकारा लेक जाते हुए नीना सोचती रही। विवाह से पहले घर, स्कूल और कॉलिज तक नीना का जीवन सीमित रहा। इंडिया घूमी नही, विवाह के बाद घर, बच्चों तक सीमित नीना ने अधिक भ्रमण नही किया। यूरोप, अमेरिका भ्रमण किया, पर इंडिया की बात कुछ और है. इंटरनेट के जमाने में इंडिया यूरोप से आगे लग रहा है।
“नीना पाइकारा लेक की सुन्दरता प्राकृतिक है। दोनों छोर को देखो, कभी नही मिलते। लोग आनन्द लेते है, भ्रमण करके चले जाते हैं। वैसे मां और पिता सुन्दर, अपने अपने फील्ड में अव्वल, मां अभिनेत्री, पिता उद्योगपति, मिलन हुआ, लेकिन दो अलग छोर की तरह सदा मिलकर रह नही सके। दूर से दो छोर मिलते नजर आते है। नजदीक जाते है, मिलते छोर और अधिक दूर होते जाते हैं। सामने देखो, दो छोर नही मिल रहे है। तमिलनाडु की सीमा समाप्त हो कर केरल की सीमा आरम्भ हो रही है। कुछ ऐसा ही मां, पिता के साथ हुआ। मिले, बिछडे, सुना फिर मिलते रहे, पर एक नही हुए। एक सीमा समाप्त होती है, दूसरी आरम्भ हो जाती है।“
अगली सुबह नरेन्द्र देर से उठे। लेकिन मीडिया ने उठने से पहले दस्तक दी। मीडिया से दूर रहने वाले नीना, नरेन्द्र ने दो टूक बात की, वे सिर्फ बेटे का फर्ज निभा रहे है। मां के बारे में कुछ नही छुपा, सब जानते है, मैं मां से दूर रहा, लेकिन भारत से दूर रह कर भी वह कभी भारतीय सभ्यता, संस्कृति नही भूला है। जैसे ही मां की तबीयत के बारे में मालूम हुआ, फौरन इंडिया आ गया।
एक सप्ताह बाद बूडी मां की आंखों की चमक कई गुणा बढ गई थी।
“नीना, मां की तबीयत अब ठीक है। हो सकता है, कि दीपक बुझने से पहले की ज्योती हो, फिर भी दिल को तसल्ली है, मैं मां से मिला, मां ने मुझसे, तुमसे मिल कर अंतिम खुशी हासिल कर ली है। कुछ दिन भारत भ्रमण पर चलते है। ससुराल पहुंच कर खातिर करवाने की प्रबल इच्छा है।“
पहला पडाव कन्याकुमारी डाला। विवेकानंद मैमोरियल से तीन सागरों के मिलन
के अदभुत नजारे में खो गए. “नीना, तीन सागरों का पानी अलग रंग का है, तीनों
का संगम स्पष्ट दिखता है, फिर अपना रंग खो देते है, एक रंग में आ जाते है।“
“क्या अब भी मां से घृणा करते हो।“
“नही, नीना, अगर करता, तो मां से मिलने नही आता। मेरी घृणा, नफरत, मां के
प्रति नजरिया, तीन सागरों के पानी की तरह आपस में मिल गया है, एक नए रंग
में। वह रंग है, प्यार, श्रद्धा का। मानव जीवन विभिन्न अवस्थाऔ से गुजरता
है। बचपन में जो देखा, उस की छाप पढी। एक छोटे बच्चे के दिल में मां बाप के
झगडे और मां की दूरी ने जो नफरत दी। सच तो यह है, कि यह छाप कुछ दिन पहले
ही हटी है। बच्चे के कोमल दिल पर छाप पक्की होती है। शायद विवेकानंद
मैमोरियल की खासियत है, कि मैं नये रंगों में रंग गया हूं। जब मां ने दिल
से बुलाया, तब घृणा, नफरत समाप्त हो गई है। आज एक छोटे बच्चे की तरह हूं,
मां की बात मान लेता हूं। जो हुआ, तीनों सागर के एक दूसरे में मिलते पानी
में बहा कर सिर्फ एक रंग में रंगा गया हूं, वह रंग है, सिर्फ प्रेम का।“
कन्याकुमारी के बाद मायके, ससुराल में कुछ दिन ठहर कर भारत भ्रमण के बाद ऊंटी वापिस पहुंचे। राजेश से मां की तबीयत की खबर मिलती रही। मां से मिलने अस्पताल पहुंचे। बहू, बेटे को समीप देख बूडी आंखों की चमक कई गुणा बढ गई। डाक्टरों ने अस्पताल से छुट्टी दे दी। नरेन्द्र , नीना मां के पास ही रूक गए। नरेन्द्र ने सदा के लिए भारत में बसने का निर्णय लिया। नरेन्द्र को आभास था, कि उम्र के इस पढाव में तबीयत में सुधार ठीक वैसे है, जैसे दीया की लौ बुझने से पहले तेजी से जलती है। अस्पताल से लौट कर मां से बंगला नरेन्द्र के नाम कर दिया। बहू नीना के गुण गाती नही थकती थी। नीना ने तीमारदारी में कोई कसर नही छोडी।
एक माह पश्चात मां ने देह छोड दिया।
मनमोहन भाटिया