“गुड मॉर्निग सर।“ केबिन में प्रवेश करते हुए विपुल ने कहा और मुझे अपना
अपाइंटमेंट लैटर दिया। मैं अकाउन्टस डिपार्टमेंट का हैड और विपुल ने आज
ऑफिस ज्वाइन किया। कुर्सी पर बैठने का संकेत विपुल कोकिया और इंटरकॉम पर
अपने सहायक महेश कोकेबिन में आने कोकहा।
महेश ने केबिन में आते ही नमस्ते कहा और कुर्सी पर बैठ कर कहा।“सर आज
दोघंटे जल्दी जाना है। वाईफ शाम की ट्रेन मे माएके से वापिस आ रही है।“
“चले जाना, इनसे मिलो, विपुल तुम्हारे सहायक रहेगें। काफी दिनों से शिकायत
कर रहे थे, कि काम अधिक है, एक आदमी की जरुरत है। विपुल अब तुम्हारे अधीन
काम करेगा। विपुल के अतिरिक्त सुरेश ने भी अगले सप्ताह ज्वाइन करना है।
ऑफिस मे स्टाफ पूरा होजाएगा, जिसके बाद पेंडिग काम पूरा होजाएगा। अच्छा
विपुल तुम अब से महेश के साथ काम करोगे। अब तुम अपनी सीट पर जा कर काम शुरू
कर दो।“
विपुल बीस साल का बी.कॉम करने के बाद पिछले सप्ताह जब इंटरव्यू देने आया
था, उसकोकाम का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन एक गजब का आत्मविश्वास जरूर था,
जिसकोदेख कर मैंने उसे नौकरी पर रखा। मझले कद का गोरा चिट्टा हंसमुख नौजवान
विपुल नवगांव मे रहता था। नवगांव नवयुग सिटी से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक
छोटा सा कस्बा है। बस से एक तरफ का सफर लगभग दोढ़ाई घन्टे मे पूरा होता
है।ऑफिस का समय सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे है। आठ घन्टे की डयूटी के बाद बस
पक़ड़ने के लिए आधा घन्टा और लगभग पांच घन्टे बस मे, लगभग चैदह घन्टे की
डयूटी जब इंटरव्यू में विपुल कोबताई कि किस तरह वह समय कोमैनेंज कर पायेगा,
कहीं कुछ दिन काम करने के बाद नौकरी छोड़ दे और हमे नया आदमी ढूढ़ने के लिए
प्रयत्न करने पढ़े, तोबहुत मुश्किल होजाएगी। अगर गांरन्टी दे सकोगे, तब
नौकरी पक्की समझना। लेकिन उसके आत्म विश्वास और जवाब देने के ढंग ने मुझे
निरुत्तर कर दिया कि हर हालत और मौसम में सुबह 10 बजने से 10 मिनट पहले ही
ऑफिस पहुंच जायेगा, और यही हुआ, बिना नागा ऑफिस खुलने से पहले विपुल पहुंच
जाता और दोमहीने के छोटे से समय के अंदर सभी कार्योंमें निपुण होगया।ऑफिस
का पेंडिग काम समाप्त होगया और काम रुटीन पर आ गया। विपुल काम में तेज,
स्वभाव में विन्रम, लेकिन एक बात मुझे पसन्द नहीं थी। वह बात उसके अधिक
बोलने की थी। वह चुप नहीं रह सकता था। कई बार मुझे लगता था, कि वह बात
कोबढा़ चढ़़ा कर करता था और ऑफिस स्टाफ पर अपने अमीर होने का। धीरे धीरे
उसने पूरे ऑफिस में सभी कोयकीन दिला दिया कि वह एक अमीर घर से ताल्लुक रखता
है। कपडे, जूते अच्छे और मंहगे अपने आप उसके कुछ अमीर होने का अहसास कराते
थे।ऑफिस में सहयोगियों कोअक्सर दावत देना उसका नियम बन गया था।ऑफिस में
कमप्यूटर ऑपरेटर श्वेता और टेलीफोन ऑपरेटर सुषमा के आस पास मंडराते देख ऐसा
लगता था कि ऑफिस मे लडकियों में उसकी कुछ खास रुचि थी। लंच वह सुषमा और
श्वेता के साथ करता था। उन दोनों कोइम्प्रेस करने में उसका खाली समय व्यतीत
होता था। इन सब बातो कोदेख कर मेंने विपुल कोकभी टोका नहीक्योंकि ऑफिस का
काम उसने कभी पेंड़िग नही किया। बाकी सब हरकतों कोउसका निजी मामला समझ कर
नजरअंदाज करता रहा क्योंकि कम्पनी के काम में सदा अग्रणी रहता था।
एक दिन मैं ऑफिस में रिपोर्ट देख रहा था। शाम के चार बजे चाय के साथ चपरासी
समोसा, गुलाबजामुन और पनीर पकोड़ा टेबल पर रखता हुआ बोला, “सर समोसा पार्टी
विपुल की तरफ से है।“
“किस खुशी में दावत होरही है।“मैं चपरासी से पूछ रहा था, तभी महेश केबिन
में आता हुआ बोला, “सर विपुल तोछुपा रुस्तम निकला। मोटी असामी हैं। यह दावत
तोकुछ नही, बड़ी पार्टी लेनी पडेगी, विपुल से। ऐसे नही छूट सकता हैं। आज
दोट्रक खरीदे हैं, उसने। सोलह ट्रक पहले चल रहे हैं, नवगांव की दाल मिल
में। टोटल अठारह ट्रकों का मालिक है। समोसा पार्टी तोशुरुआत है, फाइव स्टार
दावत पेंडिग है, सर जी।“
“महेश एक बात समझ नही आती, अठारह ट्रकों के मालिक कोएक क्लर्क की नौकरी
करने की क्या जरुरत है।“
“सर जी मुझे लगता है कि अनुभव लेने के लिए नौकरी कर रहा है। साल दोसाल के
बाद नौकरी छोड़ कर अपने व्यापार में पिता जी का हाथ बटाएगा।“
“मेरा अनुभव यह कहता है, कि अमीर घराने के बच्चे कभी नौकरी नही करते हैं,
पढाई के बाद अपने घर के व्यापार में जुट जाते हैं। आईएएस की नौकरी या
मैनेंजमेंट ड्रिग्री के बाद किसी मैनेंजर के पद पर नौकरी समझ आती है, लेकिन
एक क्लर्क की नौकरी कोई बिजिनेस मैंन अपने बच्चों से नही करवाता है।“
“आपके कहने में वजन है, सर जी, लेकिन हमें इससे क्या मतलब, अपन तोदावत का
मजा लेते हैं।“कहते हुए महेश ने एक घंटा पहले जाने की छुट्टी मांगी।
महेश के जाने के बाद मेरी नजर रिसेप्शन पर गई, विपुल श्वेता और सुषमा के
साथ हंस हंस कर अपनी दी हुई पार्टी के मजे ले रहा थी। मैं सोचने लगा कि
कहीं यह दावत लड़कियों कोइम्प्रेस करने के लिए तोनही कर रहा। एक दिन ऑफिस से
घर जाते हुए सामान खरीदने के लिए बाजार रूका। शाम के समय बाजार में बहुत
भीड़ रहती है, बाजार में समान खरीदते समय मुझे अहसास हुआ, कि विपुल श्वेता
के साथ हंसता हुआ हाथ में हाथ डाले हुए टहल रहा था।एक दूसरे से चिपके हुए
अपने में मस्त दुनिया से बेखबर मुझे भी नहीं देख सके। दोहंसों का जोड़ा
प्रेम की गहराई में उतर चुका था। युवा प्रेमी युगल कोडिस्टर्ब करना मैंने
उचित नही समझा। मैं समान खरीद कर घर कोकूच कर गया। मैं सोचने पर मजबूर
होगया, कि विपुल कब नवगांव जाता होगा और कैसे टाइम मैंनेंज करता होगा।ऑफिस
में विपुल और श्वेता की नजदीकियां अधिक बढ़ने लगी। चाय ब्रेक में दोनों एक
साथ चाय के सिप लगाते नजर आते और लंच टाइम में एक साथ खाना खाते नजर आते।
काम के बीच दोमिन्ट के ब्रेक में विपुल झट से किसी न किसी बहाने श्वेता से
बतियाता नजर आता। धीरे धीरे विपुल और श्वेता का प्रेम परवान होगया।ऑफिस में
सबकी जुबान पर सिर्फ विपुल और श्वेता के प्रेम प्रसंग के चर्चे थे।
एक दिन लंच समय में मैं आराम कर रहा था।महेश केबिन में आ कर सामने कुर्सी
खींच कर बैठ गया।
“सर आपने नयी खबर सुनी।“
“मुझे पुरानी की खबर नहीं, तुम नई की बात कर रहे हौ। तुम्हारी शक्ल से लगता
है, कि कोई सनसनी है क्या?”
“सर आपके लिए सनसनी होगी।ऑफिस आते हैं, काम करके चले जाते हैं आप कोदीन
दुनिया की कोई खबर नही होती है। हम तोपर्दा उठने की फिराक में कब से टकटकी
लगाये बैठे हैं।“
“लेखकों की तरह भूमिका मत बांधोमहेश। सीधे बात पर आऔ।“
“सीधी बात यह है कि विपुल और श्वेता का प्रेम एक दम परवान होचुका है। बस अब
तोशहनाई बजने की देरी है।“
“शापिंग मॉल में मैं कई बार दोनों कोएक साथ प्रेम के मूड में देख चुका
हूं।“
“आपने तोशापिंग मॉल में देखा हैं। सर आपकोमालूम नही, विपुल आजकल नंवगांव
जाता ही नहीं है। आजकल श्वेता के घर रहा है। हफ्ते में एक या दोदिन ही
नंवगांव जाता है। अंदर की खबर बताता हूं। शादी अनाउन्स होते ही श्वेता
नौकरी छोड़ देगी। सर इतने अमीर घर जा रही है। नौकरी की क्या जरुरत है सर
जी।“
“क्या श्वेता के घर वाले ऐतराज नहीं करते, शादी से पहले विपुल का घर आना
जाना तोआज कल आम बात है, लेकिन रात कोसोना क्या वाकई होसकता है? कहीं तुम
लम्बी बात तोनहीं छोड़ रहे हो?”
“कसम लंगोट वाले की, एकदम सच बोल रहा हूं।“
कसम लंगोट वाले की, यह महेश का तकिया कलाम था, मैं समझ गया कि बात में कुछ
सच्चाई तोअवश्य हैं।“आफिस में लगता है महेश आजकल हम लोग काम कम और इधर उधर
की बातों में अधिक ध्यान दे रहे हैं।“ मैंनें बात पलटते हुए कहा।
“सर आप ऐसी बातें मुझसे नहीं कर सकते हैं। आपकोमालूम है कि सारा काम समाप्त
करने के बाद ही आपसे गपशप करता हूं।“ महेश मेरी बात का बुरा मान गया।
“महेश मैं तुम्हारी बात नहीं कर रहा हूं। मैं विपुल की सोच रहा हूं, कि
आजकल जब देखो, वह श्वेता और सुषमा के ईर्द गिर्द मंड़राते नजर आता है। अपना
काम कब करता है।“ मैंनें कुछ हैरान होकर पूछा।
महेश हंसते हुए बोला, “सर आप इस बात की फ्रिक मत किजिये। उसका काम जब तक
समाप्त नहीं होजाता, शाम कोऑफिस से घर जाने नही देता हूं। श्वेता के प्यार
से उसकी रफतार गोली की तरह होगयी हैं। शाम तक सारा काम अपटूडेट रहता हैं।“
“रफ्तार के चक्कर में कहीं काम में गलती न होजाए। इस बात का ध्यान रखना
हैं।“ मैंनें महेश कोखास हिदायत दी।
“सर जी। आप बिलकुल निश्चिंत रहें। काम में कोई शिकायत अगर मिल जाए, तोविपुल
की सजा भी में भुगतने कोतैयार हूं।“
ऑफिस के काम में मुझे कोई शिकायत नहीं मिली, इसलिए विपुल और श्वेता के आपसी
रिश्तों में मैनें विशेष महत्व देना छोड़ दिया। दिन बीतते गये, विपुल और
श्वेता के प्रेम प्रसंग के किस्से कुछ अधिक सुनाई देनें लगे। एक दिन लंच
टाईम में काफी पी रहा था, तभी विपुल और महेश ने केबिन में प्रवेश किया।
“सर बधाई हो, विपुल की बहिन की शादी है। आप का निमंत्रण प्रत्र। महेश ने
शादी का कार्ड मुझे दिया।“
“विपुल बहुत बहुत बधाई हो।“ मैंनें विपुल से हाथ मिलाते हुए कहा।
“सर जी, सूखी बधाई से काम नहीं चलेगा। शादी में आपकोअवश्य आ कर रौनक करनी
है।“ विपुल ने आग्रह किया।
“जरुर शादी में रौनक करेगें।“ मैंने मुस्कराते हुए कहा।
शादी से एक दिन पहले महेश ने लंच समय में कहा, “सर जी, कल विपुल की बहिन की
शादी है, पूरा स्टाफ शादी में जाएगा, कल लंच के बाद ऑफिस की छुट्टी, आप ने
भी चलना है, कोई बहाना नही चलेगा।“
“देखोमहेश शादी नवगांव में है, रात कोवापिस आने में देर होसकती है, वापिस
आने के लिए कोई सवारी नहीं मिलेगी।“ मैनें आशंका जताई।
“सर जी इसकी चिन्ता आप मत किजिये, वापिसी का प्रबंध विपुल ने कर दिया है।
नवगांव के सबसे अमीर परिवार में विवाह बहुत ही भव्य तरीके से होरहा है,
इसीलिए तोसारा स्टाफ जा रहा है। वहां पहुंचते ही एक चमचमाती कार हमारे और
सिर्फ हमारे लिए होगी, हम उसी कार में वापिस आएगें। इसलिए आप बिलकुल कोई
चिन्ता नहीं कीजिये।“ महेश ने बहुत ही आराम से कहा।“ऐसी शादी देखने का मौका
जीवन में केवल एक बार मिलता है, पूरे नवगांव में कारपेट बिछे होगें, एक
पुरानी हवेली में शादी का भव्य समारोह होगा। जिस तरह 26 जनवरी के
दिनराष्ट्रपति भवन कोसजाया जाता है, उसी तरह हवेली सजेगी। जहां बस हमें
उतारेगी, यानी दाल मिल के गेट से हवेली और विपुल के घर तक सड़क पर कालीन और
खूबसूरत कनातें होंगी। सर जी आप यह शादी कैसे मिस कर सकते है।“ इतना विवरण
सुन कर मैंने हामी भर दी। मना किस तरह करता, आखिर इतनी भव्य शादी हम जैसे
मिडिल क्लास लोगों कोनसीब से ही देखने का मौका मिलता है।
आखिर वह शुभ घड़ी आ गई। विपुल की बहिन की शादी के दिन पूरे ऑफिस का स्टाफ
नये शानदार चमकते कपड़े पहन कर ऑफिस कोएक तरह से बारात घर बना दिया।
महेश कोसंमबोधित करते हुए मैनें पूछा, “क्या बात है, श्वेता नजर नहीं आ
रही।“
“सर जी आप भी क्या मजाक करते है, शादी से पहले अपनी ससुराल कैसे जा सकती
है, बस आज बहिन की शादी होजाए, बस अगले महीने विपुल का भी बैंड़ बजा समझो।“
लंच के बाद सभी बस अड्डे पहुंच गये। थोडी देर इन्तजार करने के बाद नवगांव
की बस मिली। दोहपर के लगभग चार बजे बस चली। बस चलते ही महेश और सुषमा शादी
की बातें करने लगे, खासतौर से शादी के इन्तजाम के बारे में और मैं उनकी
पिछली सीट पर बैठा मन्द मन्द मुस्काने लगा। तभी मेरे साथ सीट पर बैठे सज्जन
ने बीडी सुलगाई और मेरे से पूछा
“बाई साब, क्या आप भी नवगांव जा रहे है, इन लोगों के साथ, बिहारी की छोरी
की शादी में।“
“आपकी बात मैं समझा नही।“ मैनें बीड़ी वाले सज्जन से पूछा।
बीड़ी का कश लगाते हुए उसने कहा, “मेरा नाम बांके है, मैं और बिहारी अनाज
मंडी में दलाली करते हैं, बिहारी का छोरा नवयुग सिटी में किसी बडे ऑफीस में
काम करता है, ऐसे लगे कि तुम लोग उसी ऑफिस में काम करते होऔर उसकी बैन की
शादी में जा रहे हो।मैं तुम लोगों की बातों से समझ गया कि तुम वहीं जा रहे
हो।इती लम्बी बातें पूरे नवगांव में बिहारी का खानदान ही कर सके। इगर इता
अमीर होता तोउसका छोरा हजार दोकी नौकरी करता, ठाट से अठारह ट्रक चलाता।
बिहारी के मुहल्ले में रहता हूं, हम इक्ट्ठे नवयुग सिटी की अनाज मंडी में
दलाली करते हैं, जिस दाल मिल की बात कर रहे हो, उसे बंद हुए दस साल होगए।
मैं और बिहारी उस दाल मिल में नौकरी करते थे, जब मिल बंद हुई तब से अनाज
मंडी में दलाली कर रहे हैं।“ बीड़ी का कश लगाते हुए बांके ने कहा। उस की
अवाज में व्यंग्य और चिडाने की मुद्रा थी। बांके की बाते सुन कर हम सब सकते
मे आ गए, मानोकि किसी बिच्छु ने डंक मार दिया हो, सबकी बोलती बंद होगई और
भौच्चके से एक दूसरे की शक्ले देखने लगे। साहस जुटा कर बड़ी मुश्किल से अवाज
निकाल कर सुषमा बोली, “अंकल आप सच कह रहोहो, कहीं मजाक तोनहीं कर रहे हो।“
बांके ने एक और बीड़ी सुल्गाई, कश लगाते हुए बोला, “नवगांव पहुंच कर देख
लेना, मेरी कोई दुश्मनी थोड़े है। इता गपोड़ी निकलेगा, पता नही था, पूरा
नवगांव बिहारी कोएक नम्बर का गपोड़ी मानता है, बेटा तोदस कदम आगे निकला।“
अब बाकी का रास्ता काटना दूभर होगया, सभी उधेडभुन में थे, कि जल्दी से
नवगांव आ जाये और हकीकत से सामना करें, तभी बस एक पुरानी बिल्ड़िग के सामने
रूकी। तब बांके ने कहा, “नवगांव आ गया, यह खंडर ही दाल मिल है, जहां बिहारी
का छोरा अठारह ट्रक चला रहा है।“ हम टूटे से मन से बस से उतरे, अब करते भी
क्या, कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था, जोदाल मिल दस साल से बंद है, उसकी हालत
खंडर से कम क्या और ज्यादा क्या? कच्ची टूटी सड़क पर हम कारपेट ढूढते रह
गये। अब स्टाफ का सब्र टूट गया, सब विपुल कोगालियां निकालने लगे, अपनी झूठी
शान के लिए विपुल इतना झूठ बोलेगा, इसकी उम्मीद किसी कोनहीं थी। इतने
बड़बोलेपन का क्या फायदा? झूठ एक दिन सामने आ जाता है, उस कोकब तक छुपाया जा
सकता है। तभी सामने से एक तांगे में कुछ कारपेट और कुर्सियों के साथ आता
विपुल दिखाई दिया। उसे देख कर सुषमा जोर से चिल्लाई, “विपुल के बच्चे नीचे
उतर, हमें बेवकूफ बना कर कहां जा रहा है। इन टूटी खड्डे वाली सड़कोपर टांगे
टूट गई हैं, तू मजे में तांगे की सवारी कर रहा हैं।“
हमें देख कर विपुल तांगे से नीचे आया, “आईये सर जी, कारपेट बिछने के लिये
गली में जा रहे हैं, बांके अंकल तांगे का सामान घर पहुंचवा दो, मैं सर जी
के साथ हवेली जाता हूं।“
महेश ने विपुल का कालर पकड़ कर पूछा, “बेटे इतना झूठ बोलने ही क्या जरूरत
थी, इतने महंगे कपड़े पहन कर आए, खराब करवा दिये, अगर सच बता देता तब भी
शादी में आते, और ज्यादा खुशी होती। पागल बना के रख दिया, अब राष्ट्रपति
भवन नुमा हवेली के दर्शन भी करवा दे, उस कोभी देख कर तृप्त होजाएं।“
शायद विपुल कोहमारे शादी में आने की उम्मीद नहीं थी, एक पल के लिये वह हमें
देख कर वह सन्न रह गया, लेकिन हर बड़बोले की तरह चतुराई से बातें बनाने लगा।
ऐसे व्यक्ति आदत से मजबूर हार नहीं मानते, बात कोपलटते हुए बोला, “आइए सर
जी, हवेली चलते हैं, आप सफर में थक गये होंगे, कुछ जलपान कर लेते हैं।“ तीन
चार मिन्ट पैदल चलने के बाद हवेली में हम सब पहुंच गये। हवेली एक पुरानी
इमारत निकली। हवेली कोदेखकर प्रतीक होता था कि किसी समय जमींदार या रईसजादे
की रिहाइश रही होगी, जोअब एक धर्मशाला बन के रह गई है, जिसके दोतरफ कमरे
बने हुए थे, और बाकी दोतरफ खाली मैदान। रोशनी के नाम पर तीन चार खंम्भों पर
बल्ब लटक रहे थे। दो तीन कमरो में कुछ हलचल होरही थी, जहां वर पक्ष के
पुरूष तैयार होरहे थे, कुछ महिलाए तैयार होकर एक तांगे पर बैठ कर जा रही
थी। तभी विपुल ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा, “हमारे यहां औरतें बारात में
नही जाती, इसीलिए पहले हमारे घर वधु के पास जा रही हैं।“
एक कोने में हलवाई बस अंगीठी कोबस बुझाने ही वाला था। विपुल के आग्रह पर
बडे बुझे मन से कुछ पकौडे तल दिये और चाय बना दी। जली भुनी सुषमा ने जली
कटी सुनाने लगी।‘विपुल यह काम अच्छा नही किया, इतना झूठ तोकोई अपने दुश्मन
से भी नही बोलता। सारा मेकअप खराब होगया, इतनी मंहगी साड़ी धूल से सन गई,
ड्राईक्लीनिंग के पैसे तेरे से लूंगी।“
“हां हां क्योनही, बिलकुल बिलकुल।“झेपती हंसी के साथ विपुल बोला।
“इतनी भूख लग रही है, और खिलाने कोतूने ये सड़े हुए बैंगन और सीताफल के
पकौडे़ ही मिले थे तुझको।नहीं चाहिए तेरी दावत। इससे तोउपवास अच्छा।“कहते
हुए सुषमा ने पकौड़ोकी प्लेट विपुल कोही पकड़ा दी। विपुल ने एक पकोडा़ मुंह
मे डालटे हुए कहा, “सुषमा नाराज नही होते, फाइवस्टार होटल से अच्छे पकोडे़
हैं।“
“तेरे घर का एक बूंद पानी भी नही पीना।“ सुषमा तमतमाती हुई बोली।
“सर जी इस में नाराजगी की क्या बात हैं, आप इतनी दूर से आए हैं, कुछ
तोलीजिए।“पकोड़ों की प्लेट मेरे आगे करते हुए विपुल ने कहा।
एक पकोड़ा खाते हुए मैं सुषमा से बोला, “छोड़ोनाराजगी, भूखे पेट रहना ठीक
नही, कुछ खालो।“लेकिन सुषमा टस से मस नही हुई। उसने कुछ नही खाया। सुषमा और
महेश ने अपनी नाराजगी विपुल कोजाहिर कर दी, बाकी स्टाफ चुप रहा, लेकिन मेरे
समेत सभी दुखी थे, जिस बात की कल्पना की थी, उसका एक प्रतिशत भी नहीं देख
कर आसमान से पाताल में समा गये। पूरे सोलह आने झूठ की उम्मीद तोहमने सपने
में भी नही की थी। पकोड़े
खाने के बाद हम विपुल के घर गये, वहां भी वोही हालात थे। गली में कनात,
साधारण कुर्सियां और दरियां। घर के साथ वाला प्लाट खाली था, जहां खाने का
प्रबंध था। शहरी वातावरण से बिलकुल उलट दरियों पर बैठ कर खाने का प्रबन्ध
था। शादी का माहौल देख कर पूरा स्टाफ दंग रह गया। तभी बारात आ गई। आतिशबाजी
के नाम पर बन्दूक के दोचार फायर देखने कोमिले। भूख से बुरा हाल हुआ जा रहा
था, इसलिए चुपचाप दरियों पर बैठ गये। लेकिन सुषमा ने तोजैसे प्रण कर लिया
था, वह अपने इरादे से नही पलटी। उसने खाना तोदूर, पानी की एक बूंद भी नही
ली।, विपुल ने काफी आग्रह किया, लेकिन सब बेकार। शहर में पले बड़े हम लोगों
के लिये यह एक बहुत खट्टा अनुभव था, क्यों कि मैं उम्र मे सबसे बड़ा था और
मेरे एक दोस्त की शादी गांव मे हुई थी, मुझे इसका अनुभव था, एक पुरानी शादी
याद आ गई, रीति रिवाज बिलकुल वैसे, कुछ भी नही बदला। तभी यादे टूट गई, जब
पत्तल सामने रख दी गई और भोजन परोसा जाने लगा। महेश का मन खाने से अधिक
वापिस जाने के जुगाड़ मे लगा था। उस वक्त मोबाइल का जमाना नहीं था, घर फोन
कर के बता भी नही सकते थे, कि वापिस कब पहुंच पाएगें। विपुल के घर फोन भी
नही था। मालूम करने पर पता चला कि टेलिफोन एक्सचेंच में खराबी के कारण पूरे
नवगांव के फोन खराब हैं। ऐसी हालत में महेश बहुत गुस्से में था।
“कसम लंगोट वाले की, ऐसी बेइज्जती कभी नही हुई, विपुल से ऐसी उम्मीद नही
थी। सर जी मुझे चिन्ता वापिस जाने की है। यहां रहने का कोई इन्तजाम नही है,
रात कोकोई बस भी नही जाती है। सुबह ऑफिस कैसे पहुचेगें। स्टाफ की लड़कियां
परेशान हैं, उनके घर कैसे सूचना दें, कि हम यहां फंस गये हैं।“ हमारी बाते
सुन कर साथ में बैठे वर पक्ष के एक सज्जन ने कहा, “आप कितने व्यक्ति हैं,
हमारी एक बस खाना समाप्त होने के बाद वापिस मेरठ जाएगी, हम आपकोनवयुग सिटी
के बाईपास पर छोड़ देगें। शहर के अन्दर बस नही जाएगी, क्योंकि वहां जाने से
हमें देर होजाएगी।“ यह बात सुन कर पूरा स्टाफ खुशी से झूम उठा। जहां दोपल
पहले खाने का एक निवाला गले के नीचे जा रहा था, अब भूख से ज्यादा खाने लगे।
एैसा केवल खुशी मे ही होसकता है। वर पक्ष कोधन्यवाद देते हुए बस मे बैठे।
यह उनका बडप्पन ही था, कि बस में जगह न होते हुए हम आठ लोगों कोबस में जगह
दी। स्टाफ की लड़कियों कोसीट दी और खुद ड्राईवर के केबिन में बोनट पर बैठ
गये। रात के एक बजे नवयुग सिटी के बाईपास पर बस ने हमे उतारा। चारों तरफ
सन्नाटा, सबसे बड़ी समस्या बस अड्डे जाने की थी, जहां हमारे स्कूटर खड़े थे।
मन ही मन सब विपुल कोकोस रहे थे, कहां फंसा दिया, कोई आटोरिक्शा भी नहीं
मिला। आधे घंटे इन्तजार के बाद एक रोडवेज की बस रूकी, तब जान मे जान आई,
हांलाकि बस ने पीछे से किराया वसूल किया। हम तोकोई भी किराया देने कोतैयार
थे, हमारा लक्ष्य केवल अपने घरोकोपहुंचने का था। बस अड्डे पहुंच कर अपने
अपने स्कूटर उठाये और स्टाफ की लड़कियों कोउनके घर छोडते हुए सुबह के चार
बजे घर पहुंचे। उसके बाद न तोनींद आई न ही चैन आया। सारा बदन टूट रहा था,
आंखों मे नींद, लेकिन ऑफिस भी जाना था, क्योंकि स्टाफ की लड़कियों ने ऑफिस
आने से मना कर दिया और लड़कों की भी तबीयत पतली लग रही थी। गिरता पड़ता ऑफिस
पहुंचा। पूरे ऑफिस में सन्नाटा, सिर्फ कमप्यूटर ऑपरेटर श्वेता ही आफिस में
थी। मैं कुर्सी पर निठाल बैठे बैठे कब सोगया, पता ही नही चला। दोहपर के
दोबजे महेश ने आकर जगाया। बाकी समय हम दोनोसिर्फ शादी की बातें करते रहे।
श्वेता के कान हमारी तरफ थे। हमने तोअपनी भड़ास कह कर निकाल दी, लेकिन
वज्रपात श्वेता पर गिरा, बेचारी के सारे सपने टूट गए। कहां तोउसने एक
राजकुमार से शादी का सपना संजोया था, और वह राजकुमार फक्कड निकला। बात
कोबडा चढा कर कहने की आदत तोबहुतों की होती है,
लेकिन एक रुपये का पांच सौ रुपये विपुल बना गया। श्वेता इस आडम्बर कोसह नही
सकी और उसने तीन चार दिन बाद त्यागपत्र दे दिया।ऑफिस में सब विपुल के
व्यवहार से नाराज थे, लेकिन हम कर भी कुछ नही सकते थे। जोजैसा करेगा, वैसा
भरेगा वाली कहावत आखिर चरितार्थ होगई। एक दिन शाम कोजब विपुल ऑफिस से निकला
तोश्वेता के भाई ने अपने तीन दोस्तोके साथ उसे घेर लिया और उसकी जमकर पिटाई
करने लगे। हॉकी ,क्रिकेट बैट से जम कर धुनाई हुई। विपुल जोर से चिल्लाने
लगा, बचाऔ, बचाऔ, लेकिन ऐसे मौके पर लोग केवल तमाशबीन बन कर रह जाते है,
कोई बचाने नही आया, तभी हम वहीं से गुजरे और महेश भीड़ कोदेख कर रुक गया,
विपुल की आवाज सुन कर मुझे आवाज लगाई, “सर जी यह तोअपना विपुल है।“ विपुल
कोपिटता देख कर हम दोनों उसे बचाने की कोशिश करने लगे। उसके बचाव में हम भी
पिट गए, हमारे कपड़े भी फट गए। हमे देख कर भीड़ मे से दोचार आदमी बचाव करने
आगे आए, भीड़ कोदेख कर हमलावर भाग गए। विपुल की बहुत पिटाई हुई थी। आंखे सूज
गई, शरीर पर जगह जगह नील पड़ गए थे। उसे पास के नर्सिगहोम में ईलाज के लिए
ले गये, जहां उसे दोदिन रहना पड़ा। नर्सिगहोम में महेश ने जमकर विपुल कोभाषण
पिलाया।
“देख लिया अपने बडबोलेपन का नतीजा, इतनी सुन्दर सुशील कन्या का दिल तोड़
दिया, क्या क्या सपने संजोकर रखे थे, उसने?सब बर्बाद कर दिया, शुक्र कर हम
वहां पहुंच गये समय पर, वरना तेरा तोक्रियाकर्म आज होजाता। इतना झूठ बोलने
की क्या जरुरत थी, इन चीजों की कोई वैल्यू नही है, ठकोसला है सिर्फ और कुछ
नहीं। सच एक दिन सबके सामने आ जाता है। संभल जा अब तो, सबक ले आज की पिटाई
से।“
विपुल चुपचाप सुनता रहा। दर्द से कराह रहा था, महेश का भाषण जले पर नमक का
काम कर रहा था, लेकिन कड़वी दवाई तोपीनी ही पड़ती है। लेकिन आदमी अपनी आदत से
मजबूर होता है, फिर उसी रास्ते पर चल पड़ता है। कुछ दिन खामोश रहने के बाद
विपुल की बोलने की आदत फिर शुरु होगई। लेकिन अब स्टाफ उसकी बातों कोगंभीरता
से नही लेता था। एक दिन विपुल मेरे केबिन में आया।
“सर जी आपकी हेल्प की जरुरत है।“
“बोलोविपुल, अगर मेरे बस में होगा, तोजरुर करुंगा।“
“हमने नवगांव का मकान बेच दिया है, यहां नवयुग सिटी में सेक्टर बीस में
सरकार ने प्लाट काटे है, एक प्लाट खरीदा है, कोठी बनवानी है, आपकोमालूम है,
कि ठेकेदार, मजदूरों के सर बैठना पड़ता है, नही तोवे काम नहीं करते। सुबह
कुछ देर से आने की इ़जाजत मांगनी है, शाम कोदेर तक बैठ कर ऑफिस का काम पूरा
कर लूंगा, कोई काम पेंडिग नही होगा सर जी। हमनें यहां किराये पर मकान ले
लिया है, शाम कोडैडी कोठी की कंस्ट्रेकशन का काम देख लेंगें। सर जी बस एक
महीने की बात है।“
मैंने उसकोइजाजत दे दी और सोचने लगा कि एक महीने में कौन सी कोठी बन कर
तैयार होती है।, तभी महेश केबिन में आया।
“विपुल अंग्रेजों के जमाने का बड़बोला है, जिन्दगी में कभी नहीं सुधरेगा।“
“अब क्या होगया?”
“सर जी सेक्टर बीस में तोपच्चीस और पचास गज के प्लाट कट रहे है, वहां कौन
सी कोठी बनवाएगा? मकान कहते शर्म आती है, इसलिए कोठी कह रहा है, यदि उसकी
पचास गज में कोठी है, तोसर जी मेरा सौ गज का मकान तोमहल की कैटीगरी में
आएगा और आपका दोसौ गज का मकान तोलाल किले की कैटीगरी में आएगा।“
मैं महेश की बातें सुन कर हंस दिया और जलभुन कर महेश विपुल कोजली कटी
सुनाने लगा।
खैर विपुल ने एक महीना कहा था, लेकिन लगभग चार महीने बाद मकान बन कर तैयार
होगया। मकान के महुर्त, गृहप्रवेश पर विपुल ने पूरे स्टाफ कोआंमत्रित किया,
लेकिन स्टाफ ने कोई रुचि नही दिखलाई। सब बड़े आराम से ऑफिस के काम में जुट
गये। मेरे कहने पर सबने एकजुट होकर विपुल के यहां जाने से मना कर दिया।
“महेश विपुल जैसा भी है, हमारा सहपाठी है, बड़े प्रेम से गृहप्रवेश पर
बुलाया है, हमे वहां जाना चाहिए।“
“सर जी प्रेम आपकोमुबारक हो, मुझे चलने कोमत कहिए, उसकी कोठी मैं बर्दास्त
नही कर सकूंगा। मैं अपने झोपड़े में खुश हूं।“
“महेश ऑफिस से दोघंटे जल्दी चल कर बधाई दे देंगें, उसकी कोठी होया झोपड़ा,
हमे इस से कुछ नही मतलब। वह अपनी कोठी में खुश और हम अपने झोपड़े में खुश।“
यह बात सुन कर महेश खुशी से उछल पड़ा।“कसम लंगोट वाले की, आपकी इस बात नें
दिल बाग बाग कर दिया। अब आपका साथ खुशी खुशी।“
शाम कोचार बजे हम ऑफिस से चल कर विपुल की कोठी पहुंचे। पचास गज के प्लाट पर
दुमंजिला मकान था, विपुल का। महेश ने चुटकी ली, “यार कोठी के दर्शन करवा,
बड़ी तमन्ना है, दीदार करने की।“
“हां हां देखोयह ड्राईग रुम, रसोई, बाथरुम, बैडरुम, अपनी आदत से मजबूर
साधारण काम कोभी बड़ाचढा कर बताने लगा कि कोठी के निर्माण में पचास लाख
रुपये लग गये।“
“सुधर जा विपुल पांच लाख कोपचास मत कर।“
“नही नही, आपकोपता नही है कि हर चीज बहुत महंगी है, जिस चीज कोहाथ लगाऔ,
लाखों से कम आती नही है।“विपुल आदत से मजबूर सफाई देने लगा।
महेश शाईरी करने लगा, “इतनी भी ज्यादा सफाई न दे, गुनहगार समझेगी दुनिया
तुझे।“
विपुल खीं खीं कर के हंसने लगा।
“विपुल समय बड़ा बलवान है, इतना झूठ बोलना छोड़ दे, एक दिन तेरा सच भी हम झूठ
मानेंगें। सुधर जा, सुधर जा।“
“बाई गॉड की कसम, झूठ की बात नही है, बिलकुल सच है।“विपुल सफाई पर सफाई दे
रहा था, हमनें वहां से खिसकने की अपनी बेहतरी सोची, कि विपुल से बहस करना
बेकार है, हमने उसे शगुन का लिफाफा पकड़ाया और विदा ली।
मकान से बाहर आ कर हम दोनों के मुख से एक साथ बात निकली।
“विपुल कभी नही सुधरेगा। बड़बोला था, बड़बोला है और बड़बोला रहेगा।“
मनमोहन भाटिया