रविवार सुबह चाय की चुस्कियों के बीच महेश सक्सेना ने पत्नी मीना से
पूछा “क्या तुमने कभी प्यार किया है।“
यह सुन कर मीना सन्न रह गई, कि क्या हो गया है पतिदेव को। इससे पहले वह कुछ
बोल पाती, महेश ने दूसरा प्रश्न पूछा “क्या तुमने कभी किसी लडके का चुम्बन
लिया है।“ मीना परेशान हो गई दूसरा प्रश्न सुन कर। तभी महेश ने तीसरा
प्रश्न किया “क्या तुम कभी किसी लडके के साथ बाइक पर चिपक कर बैठी हो।“
इतना सुन कर मीना से नही रहा गया। झट से महेश के हाथों से चाय का प्याला
छीन कर गुस्से से कहा “ तबीयत तो ठीक है न, पागलों की तरह क्या अंट शंट बक
रहे हो।“
पत्नी मीना को गर्म और भडका देख कर कहा “ऐसी कोई बात नही है। तबीयत ठीक है,
आज कल की युवा पीढी को देख कर जो प्रश्न मस्तिष्क में उथल पुथल घमासान
युद्ध कर रहे है, सोचा कि तुम्से बात करके यदि कुछ समाधान मिलता है तो चित
शान्त हो जाएगा। अरे चाय की प्याली तो दो, छीन ली तुमने, दो घूंट पीने दो,
फिर बात करते है।“
बात करके महेश का चित कुछ शान्त हुआ, तो मीना का अशान्त हो गया। “मुझसे ढंग
से बात करो, पहेलियां न बुझाऔ। रसोई अस्त-व्यस्त है, ऊपर से मन भी अशान्त
कर दिया।“
“मीनातुम्हे मालूम है मेरे आधीन एक युवा जोडा रोहन और राइमा काम करते हैं।“
“जो अटपटे प्रश्न आपने मुझसे पूछे, उनका आपके स्टाफ से क्या मतलब। अब मुझे
उनकी उम्र से क्या मतलब।“
“मीना बात लगभग एक महीना पहले की है।“
शनिवार का दिन था। तुम्हे मालूम है, हाफडे होता है। तुमने घर के सामान की लिस्ट थमा दी थी, कि ऑफिस के पीछे मॉल से ले आना। दो बजे मैं मॉल में खरीदारी कर रहा था, वहां मेरे स्टाफ का रोहन और राइमा हाथों में हाथ डाले घूम रहे थे। दोनों अपनी दुनिया में मस्त थे, अत: उन्होनेमुझे नही देखा। मैंने देखा, मुस्कुरा दिया और घर की और रवाना हुआ। सोमवार को लंच के बाद रोहन का काम से केबिन में बुलाया, परन्तु महाशय अपनी सीट से नदारत थे। घडी देखी, पौने तीन बज रहे है, लंच तो दो बजे खत्म हो जाता है। रोहन सीट पर नही था, राइमा को बुलाया, तो वह भी सीट से नदारत। मुखर्जी बाबू से पूछा, तो पता चला, कि लंच के बाद से आए ही नही हैं। कमाल हो गया, इतना लंबा लंच।मुझे मीटिंग में जाना था, अत: मुखर्जी बाबू को काम समझा कर चला गया। मंगलवार दोपहर लंच के बाद मुझे फिर मीटिंग में जाना था। लिफ्ट खराब थी, सीडियों से ही मैं नीचे उतरने लगा। ऑफिस पांचवी मंजिल पर है। तीसरी मंजिल पर पहुंचा, तो देख कर दंग रह गया। रोहन और राइमा एक कोने में एक दूसरे के साथ आलिंगन में थे और दोनों के होंठ सटे हुए थे। दो मिन्ट तक मैं रूक गया, परन्तु दोनों प्रेम पाश में बंधे थे। पास कौन है, पता नही। जब दोनों प्रेम पाश में गिरफ्त दूसरी दुनिया में खोए हुए थे, दीन दुनिया से दूर। उन दोनों को उन की दुनिया में वही छोड कर मैं नीचे उतरा।
“क्या कहते हो, भरी दोपहर में सार्वजनिक स्थान पर बेशर्मी।“ दांतों तले
ऊंगली दबाते मीना हैरानी के साथ बोली।
“ठीक सुना तुम ने। मैं कभी सोच भी नही सकता, कि दिन में ऑफिस की सीडियों
में आलिंगन में बधें युवा जोडा बेशर्मी की सभी हदे पार कर देगें।“
“फिर क्या किया आपने।“
अगले दिन सुबह ऑफिस में जा कर मैंने सरकुलर निकाला कि कोई भी अपनी सीट से
मुझ से पूछे बिना कहीं भी नही जाएगा। जाहे वाशरूम जाना हो, मुझ से पूछना
होगा, जैसे स्कूल में मास्टर जी से पूछा जाता है। लंच आधे घंटे का है,
रजिस्टर में समय लिख कर जाएगा और वापिस आ कर फिर से समय लिखा जाएगा। मेरे
आदेश पर सभी ने विरोध जताया, परन्तु मैं टस से मस नही हुआ। मुखर्जी बाबू जो
उम्र में मेरे से बडे है, उन्होने एकन्त में मेरे से इस विषय पर चर्चा की।
“मुखर्जी बाबू मैं तीन साल से इस कंपनी में काम कर रहा हूं, आप ने देखा
होगा, कि मैंने कभी किसी को छुट्टी के लिए मना नही किया। किसी के देरी से
आने पर कभी कोई एक्शन नही लिया। यह आदेश सिर्फ रोहन और राइमा के लिए है,
जिस की लपेट में सारा स्टाफ आ गया है। आप उनके पिता समान है। आप उन पर नजर
रखे।“कह कर मैंने सारी बात समझाई।
“सक्सेना सर, उन दोनों की नजदीकियां तो सब जानते है, लेकिन जो आपने बताया,
वह तो अनुचित है। इतना आगे नही बढना चाहिए। कुछ हो गया, तो फिर दोनों को
खामिजाना भुगतना पढ सकता है।“
“आप ने दुनिया देखी है, इसीलिए आपसे बात कर रहा हूं। यदि वे प्रेम में है,
तो विवाह करना है या नही, सोचे, अपने परिवार से बात करें। प्रेम करना कोई
अपराध नही है। परन्तु जिस्मानी संबंध विवाह से पहले मैं तो अनुचित मानता
हूं।“
उस दिन के बाद ऑफिस में मुखर्जी बाबू ने दोनों पर नजर रखनी शुरू की। ऑफिस में दोनों सतर्क हो गए। एक महीना बीत गया। यह संजोग समझे या दोनों का सक्सेना को जताना, कि उन पर सेंसर बोर्ड का सक्सेना काम सिर्फ ऑफिस तक ही कर सकता है। ऑफिस के बाद हाथ में हाथ डाले. शरीर चिपके हुए कभी सीडियों में, कभी मॉल में, कभी ऑफिस से पार्किंग में जाते रास्ते में दोनों दिख जाते। सक्सेना देखते और दोनों सक्सेना सर को जानबूझ कर दिखाते।सक्सेना अनदेखा कर आंखें नीची कर अपने रास्ते चले जाते। देखते देखते एक महीना बीत गया।
“अबबताऔ मीना, क्या मेरे प्रश्न अर्थहीन हैं?“
“आपकी बात सुन कर प्रश्नों का महत्व जान गई। उत्तर आसान नही हैं।“
“आसन नही हैं, इसीलिए कुछ अपने विचार व्यक्त करो।“
“कुछ जेनेरेशन गैप और कुछ आधुनिकता का तकाजा है।“
“विस्तार में कहो।“
पहला प्रश्न क्या था?”
“क्या तुमने कभी प्यार किया है।“
“प्यार तो सभी करते हैं। परिवार के हर सदस्य से प्यार होता है। जीवन के
किसी न किसी मोड पर अलग अलग जनों से प्यर होता है। मां, बाप से, फिर भाई,
बहन, सहेली, मित्र, फिर पति और बच्चे।“
“मैं इस प्यार की बात नही कर रहा हूं। प्यार एक युवक, युवती के बीच, शादी
से पहले।“
“हांलाकि आज से बाईस साल पहले भी प्रेम विवाह होते थे। परन्तु मैंने तो नही
किया। अपनी बताऔ, कितनों के साथ अफेअर थे?“
“यदि ऐसी कोई बात होती तो क्या आज तक छुपती?मतलब ही नही। कॉलेज से निकले।
दो साल नौकरी की फिर शादी हो गई। प्यार व्यार का समय ही नही था।“
“लेकिन अब मिल जाता है। कॉलेज के बाद बरसों तक तो लडके, लडकियां कैरियर
बनाने पर ध्यान देते हैं। कुदरत ने हर काम का नियत समय तय किया है, हम भूल
जाते है। उम्र आने पर जिस्म की मांग होती है। रोहन और राइमा भी इसी दौर से
गुजर रहे है। मेरा तो यह मत है।“
“प्रकृत्या ही मुख्य कारण है, जिस कारण दोनों इतने समीप हैं।बाकी दो
प्रश्नों का भी यही उत्तर है न?“
“बिल्कुल ठीक, फिर इतना परेशान क्यों हो?”
“मीना, वो दोनों मेरे स्टाफ मेंबर हैं, अत: उनके लिए चिंता रखता हूं।“
“आप उन दोनों से बात करो। उन के दिल की बात जानों।“
“ठीक है मीना, मैं उन से बात करता हूं।“
अगले दिन शाम को साढे पांच बजे रोहन और राइमा से रूकने को कहा, कि बिना उस
से मिले ऑफिस से जाना नही है। साढे छ: बजे सारा स्टाफ चला गया, तब सक्सेना
ने राइमा को बुलाया और बिना किसी औपचारिकता के सीधे मुद्दे पर बात करने
लगे।
सक्सेना –“राइमा क्या तुम रोहन से प्यार करती हो?”
राइमा –“जी, सर।“
सक्सेना –“तुम ने उसके साथ जीवन भर साथ निभाने के लिए क्या कुछ सोचा है?”
राइमा –“सर, मैं कुछ समझी नही।“
सक्सेना –“मेरा मतलब शादी से है।“
राइमा –“शादी के बारे में अभी कुछ सोचा नही है।“
सक्सेना –“यदि तुम रोहन से प्रेम करती हो, तब विवाह बंधन में बंध कर
सामाजिक स्वीकृति लेकर शारीरिक संबंधों में जा सकती हो।“
राइमा –“शादी वो भी रोहन से, कभी नही।“
सक्सेना –“जब तुम प्रेम करती हो, जहां तक मैंने देखा है, सीडीयों में,
शारीरिक नजदीकियां अधिक हैं, इसीलिए मैं तुम से बात कर रहा हूं।“
राइमा –“शादी मैं उस से करूंगी, जिसकी सैलरी फाइव फिगर में हो, क्या है,
रोहन की सैलरी, सिर्फ बीस हजार, उस में होता क्या है, आज के जमाने में।“
सक्सेना –“प्यार को पैसों के साथ नही तोलते हैं। प्यार अनमोल है। उस को
पैसों से खरीदा नही जा सकता।“
राइमा –“सर, आप फिल्मी बातें कर रहे है। ये सब सिर्फ फिल्मों में ही अच्छा
लगता है। जीवन में सब कुछ रूपया, पैसा ही है। सारी जरूरतें रूपया ही पूरा
करता है।“
सक्सेना –“गृहस्थी में पैसों से अधिक प्रेम की जरूरत होती है। यदि प्रेम
हो, तो पैसों का अभाव भी नही खलता। हंसते, खेलते जीवन की गाडी चलती है।“
राइमा –“सर, आप ये बाते मेरे से न करे। मैंने अभी शादी का नही सोचा है।
पहले कैरियर है, फिर शादी। कोई ऑफिस की बात हो तो कीजिए। निजी बातों को मत
करे।“ कह कर राइमा कुर्सी छोड कर खडी हो गई।
सक्सेना चुप हो गया। उस ने राइमा को ऊपर से नीचे तक ध्यान से शायद पहली बार देखा।कद पांच फुट एक इंच, पतला शरीर, सांवला रंग, चेहरा आकर्षक, फिगर सेक्सी। कोई भी उस पर फिदा हो सकता है। देख कर राइमा को जाने दिया और रोहन को बुलाआ।
सक्सेना –“रोहन, बैठो।“
रोहन कुर्सी पर बैठ गया –“जी, सर।“
जो प्रश्न सक्सेना ने राइमा से पूछे, वोही प्रश्न रोहन से पूछे।
सक्सेना –“रोहन क्या तुम राइमा से प्यार करते हो?”
रोहन –“जी, सर।“
सक्सेना –“तुम ने उसके साथ जीवन भर साथ निभाने के लिए क्या कुछ सोचा है?”
रोहन –“सर, मैं कुछ समझा नही।“
सक्सेना –“मेरा मतलब शादी से है।“
रोहन –“शादी के बारे में अभी कुछ सोचा नही है।“
सक्सेना –“यदि तुम राइमा से प्रेम करते हो, तब विवाह बंधन में बंध कर
सामाजिक स्वीकृति लेकर शारीरिक संबंधों में जा सकते हो।“
रोहन–“शादी वो भी राइमा से, कभी नही।“
सक्सेना –“जब तुम प्रेम करते हो, जहां तक मैंने देखा है, सीडीयों में,
शारीरिक नजदीकियां अधिक हैं, इसीलिए मैं तुम से बात कर रहा हूं।“
रोहन–“जब खुद वो मेरे से फ्लर्ट कर रही है, मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाने
में कोई आपति नही है, तो मुझे क्या एतराज है। बहती गंगा में तो सभी हाथ
धोते है। मेरे साथ संबंध है, क्या पता, किसी और के साथ भी हो, या फिर कर
सकती है, शादी मैं उस से नही करूंगा।शादी तो मैं घर वालों की मर्जी से
करूंगा।“
सक्सेना –“यदि कुछ अनुचित हो गया, तब उसकी आंच तुम पर भी आ सकती है।“
रोहन–“सर, जब लडकी कुछ सोचने को तैयार नही है। बिना शादी के शादी के मजे
लेना चाहती है, तब आपको भी इस विषय में कुछ सोचना नही चाहिए।सर, आप ये बाते
मेरे से न करे। मैंने अभी शादी का नही सोचा है। पहले कैरियर है, फिर शादी।
कोई ऑफिस की बात हो तो कीजिए। निजी बातों को मत करे।“ कह कर रोहन कुर्सी
छोड कर खडा हो गया।
सक्सेना चुप हो गया। उस ने रोहन को ऊपर से नीचे तक ध्यान से शायद पहली बार देखा।कद पांच फुट सात इंच, गठीला शरीर, गोरा रंग, चेहरा आकर्षक। कोई भी लडकी उस पर फिदा हो सकती है। देख कर रोहन को जाने दिया।
रात में महेश की मीना से बात हुई। मीना भी आश्चर्यचकित हो गई।
मीना –“प्रेम तो हमारे समय में भी करते थे। कॉलेज में कुछ फ्रैंडस,
रिश्तेदार भी, प्रेम किया, विवाह भी किया, परन्तु दोनों तो आधुनिकता को
कहीं पीछे तो नही छोड रहे है।“
महेश –“आधुनिकता यही है। लिव इन रिलेशन सुना है, ये तो बिना लिव इन के
रिलेशन बना कर रह रहे है। कोई बंधंन नही। आजाद ही आजाद।“
मीना –“एक उम्र के बाद जीवन साथी की जरूरत पढती है। जब जवानी ढलती है, तब
ये बाते काम नही आती है।“
महेश –“ठीक कहती हो, तुम, लेकिन दोनों समझ नही रहे है। स्वत्रंत रहना चाहते
है। विवाह के बाद बंधंन होता है। अपनी मर्जी कम और परिवार की खातिर त्याग
अधिक करना पढता है।“
मीना –“अब मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देती हूं।“
महेश - “क्या तुमने कभी प्यार किया है।“
मीना –“हां, किया है, शादी के बाद।“
महेश –“क्या तुमने कभी किसी लडके का चुम्बन लिया है।
मीना –"हां, लिया है, तुम्हारा, विवाह के बाद।“
महेश - “क्या तुम कभी किसी लडके के साथ बाईक पर चिपक कर बैठी हो।“
मीना –“इसका जवाब है, नहीं। क्योंकि आपके पास बाईक नही थी। खटारा सा स्कूटर
था, जिसमें दो अलग अलग सीट थी। चिपकने का मतलब ही नही था। झूमता हुआ बस
चलता था। मुझे तो डर लगता था, कहीं मैं गिर न जाऊं।“
महेश –“कभी गिराया तो नही न?”
मीना –“डर तो लगता था।“
महेश और मीना दोनों एक साथ मुस्कुराए। जीवन मौज मस्ती नही, बल्कि समर्पण
है। आपने से अधिक अपने जीवन साथी का ध्यान रखना है। थोडे में ज्यादा गुजारा
समर्पण से ही होता है।
रात काफी हो गई है, चलो सौ जाए। कह कर बत्ती बंद कर दी।
मनमोहन भाटिया