शतरंज के आविष्कार का श्रेय भी भारत को ही जाता है, क्योंकि प्राचीनकाल से ही इसे भारत में खेला जाता रहा है। इसका धर्मग्रंथों और प्राचीन भारतीय संस्कृत साहित्य में उल्लेख मिलता है। इस खेल की उत्पत्ति भारत में कब और कैसे हुई, यह निश्चित रूप से तो नहीं कहा जा सकता है । ऐसा कहा जाता है कि इस खेल का आविष्कार लंका के राजा रावण की रानी मंदोदरी ने इस उद्देश्य से किया था कि उसका पति रावण अपना सारा समय युद्ध में व्यतीत न कर सके। एक पौराणिक कहानी यह भी है कि रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी ने इस खेल का प्रारंभ किया था।
7वीं शती के सुबंधु रचित 'वासवदत्ता' नामक संस्कृत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख मिलता है। बाणभट्ट रचित हर्षचरित्र में भी चतुरंग नाम से इस खेल का उल्लेख किया गया है। इससे स्पष्ट है कि यह एक राजसी खेल था|
'अमरकोश’ के अनुसार इसका प्राचीन नाम ‘चतुरंगिनी’ था जिसका अर्थ 4 अंगों वाली सेना था। गुप्त काल में इस खेल का बहुत प्रचलन था। पहले इस खेल का नाम चतुरंग था लेकिन 6ठी शताब्दी में फारसियों के प्रभाव के चलते इसे शतरंग कहा जाने लगा। यह खेल ईरानियों के माध्यम से यूरोप में पहुंचा तो इसे चैस कहा जाने लगा।
छठी शताब्दी में यह खेल महाराज अन्नुश्रिवण के समय भारत से ईरान में लोकप्रिय हुआ तब इसे ‘चतुरआंग’, ‘चतरांग’ और फिर कालांतर में अरबी भाषा में ‘शतरंज’ कहा जाने लगा।