आरामदूषक जातक की गाथा – [उपकार करने में अकुशल आदमी का उपकार भी सुखदायक नहीं होता। माली और मूर्ख बंदर की भाँति मूर्ख मनुष्य काम की हानि ही करता है।]

वर्तमान कथा – मूर्ख बालक का वृक्ष उखाड़ना
एक बार भगवान बुद्ध कोशल राज्य में भ्रमण कर रहे थे। एक गरीब की कुटिया पर पहुंचने पर गृहपति ने उन्हें मध्याह्न का भोजन करने का निमंत्रण दिया। गृहपति ने भिक्षुओं सहित भगवान का सत्कार किया। कुटिया के आस-पास वृक्ष लगे थे। भगवान भिक्षुओं सहित वहीं टहलने लगे।

टहलते-टहलते सहसा उनकी दृष्टि एक ऐसे स्थान पर पड़ी जहाँ न कोई वृक्ष था न किसी प्रकार की घास ही उगी थी। पूछने पर माली ने बताया कि जब वृक्ष लगाए जा रहे थे तब एक मूर्ख बालक ने वृक्षों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ें नाप-नाप कर पानी दिया था, जिससे सब वृक्ष जड़ से उखड़ कर नष्ट हो गए थे। भगवान ने हंसते हुए कहा, “मूर्ख लड़के ने प्रथम बार ही बाग नहीं उजाड़ा है। इससे पूर्व भी इसने ऐसा ही किया था। जिज्ञासा प्रगट करने पर उन्होंने पूर्व जन्म की माली और मूर्ख बंदर की कथा इस प्रकार सुनाई।

अतीत कथा – माली और मूर्ख बंदरों का मूर्खतापूर्ण उपकार
काशी के राजा ब्रह्मदत्त के राज्य में एक बार नगर में बड़ा उत्सव हो रहा था। राजा के माली की भी इच्छा हुई कि वह भी नगर में जाकर उत्सव देखे। परन्तु उस पर वृक्षों को पानी देने का उत्तरदायित्व था। वह सोचने लगा कि क्या किसीको अपना कार्य सौंपकर मैं एक दिन की छुट्टी नहीं मना सकता?

बाग में बहुत-से बन्दर भी रहते थे। वह उनके सरदार के पास गया और याचना की कि, “सरदार साहब, मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ। नगर में बड़ा भारी उत्सव हो रहा है। मेरी इच्छा है कि मैं भी आज उत्सव देख आऊँ। क्या आप कृपा करके आज वृक्षों में पानी देने की व्यवस्था करा देंगे? बड़ा उपकार मानूंगा।” विनम्र-वाणी सुनकर बंदरों का सरदार द्रवित हुआ और बोला, “तुम प्रसन्नता पूर्वक जा सकते हो। मैं सब व्यवस्था करा दूंगा।”

माली चला गया। इधर बंदरों के सरदार ने सब बंदरों को बुलाकर समझाया, “देखो, आज हमें एक परोपकार का काम करना है। बिचारे माली को छुट्टी नहीं मिलती थी। हमने आज उसका काम करने की जिम्मेदारी ली है। हमें बहुत सावधानी पूर्वक सब वृक्षों में पानी देना है। कोई वृक्ष प्यासा न रहे। जिस वृक्ष को जितनी आवश्यकता हो, उतना पानी दिया जाय। परंतु पानी व्यर्थ नष्ट न किया जाय।”

बंदरों की समझ में न आया कि वृक्षों की प्यास कैसे नापी जायगी? उन्होंने अपने सरदार से पूछा। तब उस अति-बुद्धिमान बंदर ने कहा, “वृक्ष जड़ों से पानी पीते हैं। किसी वृक्ष की जड़ें छोटी होती हैं और किसी की बड़ी। जड़ों की नाप से उनके पानी पीने का अनुमान लगा सकते हो।”

सरदार का आदेश पाकर बंदरों ने काम आरम्भ किया। उन्होंने प्रत्येक वृक्ष को पहले उखाड़ कर उसकी जड़ें नापीं और फिर उसे लगाकर उसी अन्दाज़ से पानी पिलाया। इस प्रकार सारे बाग को पानी देने में बहुत समय लग गया और बन्दर भी बिलकुल थक गये। उन्हें संतोष था कि उन्होंने अपने सरदार के आदेश का भी पालन किया है और एक परोपकार का काम करके पुण्य भी कमाया है।

दूसरे दिन जब माली वृक्षों को देखने गया तो उसे सब वृक्ष उखड़े हुए मिले। इस प्रकार सारा बाग ही उजड़ गया। दुःखी होकर उसने जो कुछ कहा उसी का वर्णन उपरोक्त गाथा में किया गया है – उपकार करने में अकुशल आदमी का उपकार भी सुखदायक नहीं होता। यही “माली और मूर्ख बंदर” नामक इस जातक कथा की सीख भी है।

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