वाहुक खाना पका रहा था। उसने बर्तन में पानी नहीं लिया। बर्तन में पानी अपने आप आ गया। उसने आग भी नहीं जलाई। वह स्वयं ही जैसे जादू से जलने लगी हो। केशनि ने वापस जाकर इन अद्भुत बातों के बारे में दमयन्ती को बताया।

दमयन्ती को अग्नि और वरुण के दिये हुए वरदान याद आ गये।

केवल नल को ही अग्नि और पानी पर अधिकार था। अब उसे करीब करीब विश्वास हो गया था कि बदसूरत और ठिगना दिखाई देनेवाला सारथी नल ही है। पर समझ नहीं आ रहा था कि नल ने अपने आप को ऐसे कैसे बदल लिया है। उसने एक और परीक्षा लेने की सोची।

उसने केशनि से कहा कि वह वाहुक का बनाया हुआ थोड़ा-सा खाना ले आये। जब उसने खाने को चखा तो उसका विश्वास निश्चय में बदल गया कि यह आदमी नल ही है। तब उसने केशनि के साथ अपने दोनों बच्चों को उस के पास भेजा। बच्चों को देखकर उसने उन्हें गोद में ले कर गले से लगा लिया। उसकी आँखों में आँसू आ गये।दमयन्ती उसे देख रही थी। जब उसने उसे बच्चों को प्यार करते देखा|

वह उसके सामने आ खड़ी हुई और बोली, "मैंने अपने पति के साथ ऐसी कौन सी बुराई की थी कि उसने मुझे घने जंगल में अकेली छोड़ दिया? वह विवाह के समय दिए हुए वचनों को कैसे भूल गया?"

"वह नल नहीं था," वाहुक ने उत्तर दिया, “जिसने अपनी पत्नी को छोड़ा और पागलों जैसा काम किया। वह उसके भीतर का कलि था। अब कलि ने उसे छोड़ दिया है। मैं ही निषध का अभागा राजा नल हूँ। लेकिन मेरी सुशीला पत्नी ने अपने पति के जीवित रहते दूसरा स्वयंवर रचाने का कैसे विचार किया?”

"मुझे यह सब जाल रचना पड़ा,” दमयन्ती ने कहा, “तुम्हारे उत्तर से जो तुमने मेरे दूत को दिया था मुझे पता लगा कि तुम अयोध्या में हो। मैं निश्चित होना चाहती थी और यदि तुम नल हो तो, तुम्हें यहाँ लाना चाहती थी।

मुझे पता था कि तुम सारथी हो। यदि तुम वास्तव में नल हो तो तुम ही राजा ऋतुपर्ण के रथ को स्वयंवर के समय तक हाँक कर यहाँ ला सकते थे। किसी दूसरे के बस की बात यह नहीं थी। इसलिए मैंने राजा ऋतुपर्ण के पास दूत भेजा और स्वयंवर का समय निमन्त्रण पहुँचने के अगले ही दिन रखा।

कोई दूसरा राजा या राजकुमार यहाँ नहीं है, इसलिए तुम्हें विश्वास हो जाना चाहिए कि जो मैं कह रही हूँ वह सत्य है।"

नल को विश्वास हो गया कि दमयन्ती ने जो कुछ कहा है, सत्य है और वह उसके प्रति वफादार है। तब उसने कार्कोटक का ध्यान किया और उसका दिया हुआ वस्त्र पहन लिया। तत्काल वाहुक निषध के सुन्दर राजा नल में बदल गया। दमयन्ती नल की बाहों में गिर पड़ी।

इस प्रकार नल और दमयन्ती फिर इकट्ठे हो गये। राजा भीम और रानी बहुत प्रसन्न थे। लोगों में भी प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। राजा नल के लौट आने की खुशी में खूब उत्सव हुए।

राजा ऋतुपर्ण दूसरे सारथी के साथ अयोध्या लौट गये । नल कुछ दिन विदर्भ में रहा फिर निषध जाकर पुष्कर को जुआ खेलने के लिए ललकारा। पुष्कर जानना चाहता था कि 'दाँव' क्या होगा। वह उत्सुक था कि नल दमयन्ती को 'दाँव' पर लगाये। लेकिन नल ने स्वयं अपने को ही दाँव पर लगाया। खेल प्रारम्भ हुआ।

इस बार कलि और द्वापर पुष्कर की सहायता के लिए वहाँ नहीं थे और नल खेल में दक्ष हो चुका था। आरम्भ से ही पुष्कर हारने लगा। पहले ही दिन वह सब कुछ हार गया। यहाँ तक कि पुष्कर का जीवन भी नल की दया पर निर्भर था। नल उसे मार सकता था किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि एक नगर उसे भेंट में दिया जिससे वह शान्तिपूर्वक रह सके।

इस के पश्चात नल और दमयन्ती अपने बच्चों के साथ और उन लाखों प्रजाजनो के साथ जिन्हें वे प्यार करते थे आनदन्पूर्वक रहने लगे।

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel