राजा भीम की राजधानी में स्वयंवर का दिन एक महत्वपूर्ण दिन था। सैकड़ों, राजा, राजकुमार और कुलीन लोग अपने-अपने सेवकों के साथ आ पहुंचे थे। सुबह वे सब उत्सव में उपस्थित होने को तैयार थे।

एक बहुत बड़ा हाल इसीलिए बनाया गया था और उसे खूब सजाया गया था। प्रत्येक अतिथि के लिए वहाँ एक सिंहासन था। राजाओं और कुमारों ने बहुत सुन्दर-सुन्दर वस्त्र धारण किये थे। वे सब सुनहरी सिंहासनों पर बैठ कर तारों के समान चमक रहे थे।

सब यही आशा लगाये बैठे थे कि वे दमयन्ती को अच्छे लगें और वह उन्हें वरे। नल और चारों देवता भी वहाँ उपस्थित थे।

निश्चित समय पर दमयन्ती अपनी सखियों के साथ वहाँ आई। उसका चन्द्रमुख देखकर राजाओं और कुमारों के हृदय तेज़ी से धड़कने लगे। दमयन्ती को अतिथियों के पास ले जाया गया। प्रत्येक का नाम, गुण, स्थिति और विशेषतायें उसे बताई गई।

किन्तु दमयन्ती बिना किसी में रुचि दिखाये चलती चली गई। जब बह नल के पास पहुंची तो उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया।

उसके सामने एक नल नहीं, बल्कि पाँच नल थे। वह तत्काल समझ गई कि चारों देवता उसे धोखा देना चाहते हैं। उसे भुलावा देने के लिए ही उन चारों ने नल का रूप बनाया है। उसने बहुत यत्न किया कि वास्तविक नल को पहचान सके लेकिन असफल रही।

"अब मुझे कैसे पता चले कि वास्तविक नल कौन है??” वह स्वयं से बोली, “यदि मैं गलती करती हूँ तो नल से हाथ धो दुंगी, जो मेरे हृदय का स्वामी है। अब देवताओं से ही प्रार्थना करूँ कि वह मेरी सहायता करें। जो सच्चे हृदय से देवताओं की सहायता माँगते हैं उन्हें उनका आशीर्वाद अवश्य मिलता है।"

तब उसने देवताओं से प्रार्थना की कि वास्तविक नल को पहचानने में वे उसकी सहायता करें। देवताओं ने उसकी प्रार्थना सुनी और उन्हें उस पर दया आ गई। उन्होंने उसकी सहायता करने का यत्न किया। उन्होंने उन विशेषताओं की ओर संकेत किया जिन के द्वारा पता चल सकता था कि वे मनुष्य नहीं हैं। 

अब दमयन्ती ने देखा कि चार नल पृथ्वी को नहीं छू रहे, केवल एक छू रहा है। चारों नलों की परछाई भी नहीं पड़ रही केवल एक की पड़ रही है। फिर चार नलों की फूल मालायें बिल्कुल ताज़ी थीं जैसे कि फूल अभी तोड़े गये हों जब कि पाँचवें की फूल माला कुछ मुरझासी गई थी।

अब दमयन्ती को विश्वास हो गया कि असली नल कौन है।वह उसकी ओर बढ़ी और अपनी सेविका के हाथों से माला लेकर उसके गले में डाल दी। बहुत से राजाओं और कुमारों का दिल टूट गया।

लेकिन कुछ का विचार था कि दमयन्ती का चुनाव ठीक ही है। नल बहुत प्रसन्न था। 

उसने दमयन्ती से कहा, “तुमने मुझे देवताओं और उपस्थित राजाओं और कुमारों के सामने वरा हैं, मैं जीवन-भर तुम्हारा रहूँगा।" नल और दमयन्ती अब आशीर्वाद के लिए देवताओं की ओर मुड़े।

देवता दमयन्ती के चुनाव से ज़रा भी क्रुद्ध या निराश नहीं थे। प्रत्येक ने नल और दमयन्ती को आशीर्वाद दिया। उन्होंने नल को कुछ वरदान भी दिये। इन्द्र ने नल को कुछ दिव्य शक्तियाँ दीं। अग्नि ने उसे आग पर नियन्त्रण की तथा वरुण ने जल पर नियन्त्रण की शक्ति दी। यम ने भोजन बनाने और चखने में कुशलता का वर दिया। इसके बाद देवता लोग स्वर्ग को लौट गये।

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