यह युगों की साधना थी ,

जो मिला परिचय तुम्हारा ।

यह ह्रदय की कामना थी ,

जो झुका अन्तर तुम्हारा ।

*

आज कारगार मन के

खुल गए हैं ।

हो गए स्वच्छन्द पँछी भावना के ।

आज लगता जलप्रपातों ने ,

नई धुन छेड़ दी है ।

यह अकथ आराधना थी ,

जो मिला प्रिय कर तुम्हारा ।

*

तुम मिले तो स्वप्न कितने ,

साथ मेरे हो गए हैं ।

मधुर सुन्दर कल्पना के ,

बीज कितने बो गए हैं ।

यह स्वतः परिकल्पना थी ,

जो मिला प्रिय उर तुम्हारा ।।

*

यह युगों साधना थी ,

जो मिला परिचय तुम्हारा ।।

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