यह युगों की साधना थी ,
जो मिला परिचय तुम्हारा ।
यह ह्रदय की कामना थी ,
जो झुका अन्तर तुम्हारा ।
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आज कारगार मन के
खुल गए हैं ।
हो गए स्वच्छन्द पँछी भावना के ।
आज लगता जलप्रपातों ने ,
नई धुन छेड़ दी है ।
यह अकथ आराधना थी ,
जो मिला प्रिय कर तुम्हारा ।
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तुम मिले तो स्वप्न कितने ,
साथ मेरे हो गए हैं ।
मधुर सुन्दर कल्पना के ,
बीज कितने बो गए हैं ।
यह स्वतः परिकल्पना थी ,
जो मिला प्रिय उर तुम्हारा ।।
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यह युगों साधना थी ,
जो मिला परिचय तुम्हारा ।।