सुबह को खुशी - खुशी महाराज ने दरबार किया। तेजसिंह और बद्रीनाथ भी बड़ी इज्जत से बैठाये गए। महाराज के हुक्म से जालिमखां और उसके चारों साथी दरबार में लाये गये जो हथकड़ी - बेड़ी से जकड़े हुए थे। हुक्म पा तेजसिंह जालिमखां से पूछने लगे :
तेजसिंह - क्यों जी, तुम्हारा नाम ठीक - ठीक जालिमखां है या और कुछ?
जालिम - इसका जवाब मैं पीछे दूंगा, पहले यह बताइये कि आप लोगों के यहां ऐयारों को मार डालने का कायदा है या नहीं?
तेज - हमारे यहां क्या हिंदुस्तान भर में कोई धार्मिष्ठ हिंदू राजा ऐयार को कभी जान से न मारेगा। हां वह ऐयार जो अपने कायदे के बाहर काम करेगा जरूर मारा जायगा।
जालिम - तो क्या हम लोग मारे जायेंगे?
तेज - यह खुशी महाराज की मगर क्या तुम लोग ऐयार हो जो ऐसी बातें पूछते हो?
जालिम - हां हम लोग ऐयार हैं।
तेज - राम - राम, क्यों ऐयारी का नाम बदनाम करते हो। तुम तो पूरे डाकू हो, ऐयारी से तुम लोगों का क्या वास्ता?
जालिम - हम लोग कई पुश्त से ऐयार होते आ रहे हैं कुछ आज नये ऐयार नहीं बने।
तेज - तुम्हारे बाप - दादा शायद ऐयार हुए हों, मगर तुम लोग तो खासे दुष्ट डाकुओं में से हो।
जालिम - जब आपने हमारा नाम डाकू ही रखा है, तो बचने की कौन उम्मीद हो सकती है!
तेज - जो हो खैर यह बताओ कि तुम हो कौन?
जालिम - जब मारे ही जाना है तो नाम बताकर बदनामी क्यों लें और अपना पूरा हाल भी किसलिए कहें? हां इसका वादा करो कि जान से न मारोगे तो कहें।
तेज - यह वादा कभी नहीं हो सकता और अपना ठीक - ठीक हाल भी तुमको झख मार के कहना होगा।
जालिम - कभी नहीं कहेंगे।
तेज - फिर जूते से तुम्हारे सिर की खबर खूब ली जायेगी।
जालिम - चाहे जो हो।
बद्री - वाह रे जूतीखोर।
जालिम - (बद्रीनाथ से) ओस्ताद, तुमने बड़ा धोखा दिया, मानता हूं तुमको!
बद्री - तुम्हारे मानने से होता ही क्या है, आज नहीं तो कल तुम लोगों के सिर धाड़ से अलग दिखाई देंगे।
जालिम - अफसोस कुछ करने न पाए!
तेजसिंह ने सोचा कि इस बकवाद से कोई मतलब न निकलेगा। हजार सिर पटकेंगे पर जालिमखां अपना ठीक - ठीक हाल कभी न कहेगा, इससे बेहतर है कि कोई तरकीब की जाय, अस्तु कुछ सोचकर महाराज से अर्ज किया, “इन लोगों को कैदखाने में भेजा जाय फिर जैसा होगा देखा जायगा, और इनमें से वह एक आदमी (हाथ से इशारा करके) इसी जगह रखा जाय।” महाराज के हुक्म से ऐसा ही किया गया।
तेजसिंह के कहे मुताबिक उन डाकुओं में से एक को उसी जगह छोड़ बाकी सबों को कैदखाने की तरफ रवाना किया। जाती दफे जालिमखां ने तेजसिंह की तरफ देख के कहा, “ओस्ताद, तुम बड़े चालाक हो। इसमें कोई शक नहीं कि चेहरे से आदमी के दिल का हाल खूब पहचानते हो, अच्छे डरपोक को चुन के रख लिया, अब तुम्हारा काम निकल जायगा।”
तेजसिंह ने मुस्कराकर जवाब दिया, “पहले इसकी दुर्दशा कर ली जाय फिर तुम लोग भी एक - एक करके इसी जगह लाए जाओगे।”
जालिमखां और उसके तीन साथी तो कैदखाने की तरफ भेज दिए गए, एक उसी जगह रह गया। हकीकत में वह बहुत डरपोक था। अपने को उसी जगह रहते और साथियों को दूसरी जगह जाते देख घबरा उठा। उसके चेहरे से उस वक्त और भी बदहवासी बरसने लगी जब तेजसिंह ने एक चोबदार को हुक्म दिया कि ”अंगीठी में कोयला भरकर तथा दो - तीन लोहे की सींखें जल्दी से लाओ, जिनके पीछे लकड़ी की मूठ लगी हो।”
दरबार में जितने थे सब हैरान थे कि तेजसिंह ने लोहे की सलाख और अंगीठी क्यों मंगाई और उस डाकू की तो जो कुछ हालत थी लिखना मुश्किल है।
चार - पांच लोहे के सींखचे और कोयले से भरी हुई अंगीठी लाई गई। तेजसिंह ने एक आदमी से कहा, “आग सुलगाओ और इन लोहे की सींखों को उसमें गरम करो।” अब उस डाकू से न रहा गया। उसने डरते हुए पूछा, “क्यों तेजसिंह, इन सींखों को तपाकर क्या करोगे?”
तेज - इनको लाल करके दो तुम्हारी दोनों आंखों में, दो दोनों कानों में और एक सलाख मुंह खोलकर पेट के अंदर पहुंचाया जायगा।
डाकू - आप लोग तो रहमदिल कहलाते हैं, फिर इस तरह तकलीफ देकर किसी को मारना क्या आप लोगों की रहमदिली में बट्टा न लगावेगा?
तेज - (हंसकर) तुम लोगों को छोड़ना बड़े संगदिल का काम है, जब तक तुम जीते रहोगे हजारों की जानें लोगे, इससे बेहतर है कि तुम्हारी छुट्टी कर दी जाय। जितनी तकलीफ देकर तुम लोगों की जान ली जायगी उतना ही डर तुम्हारे शैतान भाइयों को होगा।
डाकू - तो क्या अब किसी तरह हमारी जान नहीं बच सकती?
तेज - सिर्फ एक तरह से बच सकती है।
डाकू - कैसे?
तेज - अगर अपने साथियों का हाल ठीक - ठीक कह दो तो अभी छोड़ दिए जाओगे।
डाकू - मैं ठीक - ठीक हाल कह दूंगा।
तेज - हम लोग कैसे जानेंगे कि तुम सच्चे हो?
डाकू - साबित कर दूंगा कि मैं सच्चा हूं।
तेज - अच्छा कहो।
डाकू - सुनो कहता हूं।
इस वक्त दरबार में भीड़ लगी हुई थी। तेजसिंह ने आग की अंगीठी क्यों मंगाई? ये लोहे की सलाइयें किस काम आवेंगी? यह डाकू अपना ठीक - ठीक हाल कहेगा या नहीं? यह कौन है? इत्यादि बातों को जानने के लिए सबों की तबीयत घबड़ा रही थी। सभी की निगाहें उस डाकू के ऊपर थीं। जब उसने कहा कि 'मैं ठीक - ठीक हाल कह दूंगा' तब और भी लोगों का ख्याल उसी की तरफ जम गया और बहुत से आदमी उस डाकू की तरफ कुछ आगे बढ़ आये।
उस डाकू ने अपने साथियों का हाल कहने के लिए मुस्तैद होकर मुंह खोला ही था कि दरबारी भीड़ में से एक जवान आदमी म्यान से तलवार खींचकर उस डाकू की तरफ झपटा और इस जोर से एक हाथ तलवार का लगाया कि उस डाकू का सिर धाड़ से अलग होकर दूर जा गिरा, तब उसी खून भरी तलवार को घुमाता और लोगों को जख्मी करता वह बाहर निकल गया।
उस घबड़ाहट में किसी ने भी उसे पकड़ने का हौसला न किया, मगर बद्रीनाथ कब रुकने वाले थे, साथ ही वह भी उसके पीछे दौड़े।
बद्रीनाथ के जाने के बाद सैकड़ों आदमी उस तरफ दौड़े, लेकिन तेजसिंह ने उसका पीछा न किया। वे उठकर सीधो उस कैदखाने की तरफ दौड़ गए जिसमें जालिमखां वगैरह कैद किये गये थे। उनको इस बात का शक हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि उन लोगों को किसी ने ऐयारी करके छुड़ा दिया हो। मगर नहीं, वे लोग उसी तरह कैद थे। तेजसिंह ने कुछ और पहरे का इंतजाम कर दिया और फिर तुरंत लौटकर दरबार में चले आये।
पहले दरबार में जितनी भीड़ लगी हुई थी अब उससे चौथाई रह गई। कुछ तो अपनी मर्जी से बद्रीनाथ के साथ दौड़ गए, कितनों ने महाराज का इशारा पाकर उसका पीछा किया था। तेजसिंह के वापस आने पर महाराज ने पूछा, “तुम कहां गए थे?”
तेज - मुझे यह फिक्र पड़ गई थी कि कहीं जालिमखां वगैरह तो नहीं छूट गए, इसलिए कैदखाने की तरफ दौड़ा गया था। मगर वे लोग कैदखाने में ही पाए गए।
महा - देखें बद्रीनाथ कब तक लौटते हैं और क्या करके लौटते हैं?
तेज - बद्रीनाथ बहुत जल्द आवेंगे क्योंकि दौड़ने में वे बहुत ही तेज हैं।
आज महाराज जयसिंह मामूली वक्त से ज्यादा देर तक दरबार में बैठे रहे। तेजसिंह ने कहा भी - ”आज दरबार में महाराज को बहुत देर हुई?” जिसका जवाब महाराज ने यह दिया कि ”जब तक बद्रीनाथ लौटकर नहीं आते या उनका कुछ हाल मालूम न हो ले हम इसी तरह बैठे रहेंगे।”

 

 


 

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