महाराज शिवदत्त का शमला लिए हुए देवीसिंह कुंअर वीरेन्द्रसिंह के पास पहुंचे और जो कुछ हुआ था बयान किया। कुमार यह सुनकर हंसने लगे और बोले, “चलो सगुन तो अच्छा हुआ?”
तेजसिंह ने कहा, “सबसे ज्यादा अच्छा सगुन तो मेरे लिए हुआ कि शागिर्द पैदा कर लाया!” यह कह शमले में से सरपेंच खोल बटुए में दाखिल किया।
कुमार ने कहा, “भला तुम इसका क्या करोगे, तुम्हारे किस मतलब का है?”
तेजसिंह ने जवाब दिया, “इसका नाम फतह का सरपेंच है, जिस रोज आपकी बारात निकलेगी महाराज शिवदत्त की सूरत बना इसी को माथे पर बांधा मैं आगे-आगे झण्डा लेकर चलूंगा।”
यह सुनकर कुमार ने हंस दिया, पर साथ ही इसके दो बूंद आंसू आंखों से निकल पड़े जिनको जल्दी से कुमार ने रूमाल से पोंछ लिया। तेजसिंह समझ गये कि यह चंद्रकान्ता की जुदाई का असर है। इनको भी चपला का बहुत कुछ ख्याल था, देवीसिंह से बोले, “सुनो देवीसिंह, कल लड़ाई जरूर होगी इसलिए एक ऐयार का यहां रहना जरूरी है और सबसे जरूरी काम चंद्रकान्ता का पता लगाना है।”
देवीसिंह ने तेजसिंह से कहा, “आप यहां रहकर फौज की हिफाजत कीजिए। मैं चंद्रकान्ता की खोज में जाता हूं।”
तेजसिंह ने कहा, “नहीं चुनार की पहाड़ियां तुम्हारी अच्छी तरह देखी नहीं हैं और चंद्रकान्ता जरूर उसी तरफ होगी, इससे यही ठीक होगा कि तुम यहां रहो और मैं कुमारी की खोज में जाऊं।”
देवीसिंह ने कहा, “जैसी आपकी खुशी।”
तेजसिंह ने कुमार से कहा, “आपके पास देवीसिंह है। मैं जाता हूं, जरा होशियारी से रहिएगा और लड़ाई में जल्दी न कीजिएगा।”
कुमार ने कहा, “अच्छा जाओ, ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें।”
बातचीत करते शाम हो गई बल्कि कुछ रात भी चली गई, तेजसिंह उठ खड़े हुए और जरूरी चीजें ले ऐयारी के सामान से लैस हो वहां के एक घने जंगल की तरफ चले गये।
ayushi114mishra
bahut acchi book hai