बुतान-ए-माहवश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैं
के जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं

हज़ारों हसरतें वो हैं कि रोके से नहीं रुकतीं
बहोत अर्मान ऐसे हैं कि दिल के दिल में रहते हैं

ख़ुदा रक्खे मुहब्बत के लिये आबाद दोनों घर्
मैं उन के दिल में रहता हूँ वो मेरे दिल में रहते हैं

ज़मीं पर पाँव नख्वत से नहीं रखते परी-पैकर
ये गोया इस मकाँ की दूसरी मंज़िल में रहते हैं

कोई नाम-ओ-निशाँ पूछे तो ऐ क़ासिद बता देना
तख़ल्लुस "दाग़" है और आशिक़ों के दिल में रहते हैं

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel