ब्रह्माजी ने ऋषि कश्यप के असुर पुत्र हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु को अजर-अमर होने के वरदान दिया था जिसके चलते दोनों भाइयों ने संपूर्ण धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित कर जल्दी ही खुद को ईश्वर घोषित कर दिया । चारों ओर हाहाकार मच गया । देवी-देवता, मानव-वानर आदि सभी परेशान  हो गए  थे।
 
तब भगवान विष्णु को इनका वध करने के लिए अवतार लेना पड़ा। हिरण्याक्ष को मारने के लिए वराह अवतार और हिरण्यकशिपु को मारने के लिए नृसिंह अवतार लेना पड़ा। 
तारकासुर : तारकासुर असुरों में सबसे शक्तिशाली असुर था। उसके अत्याचारों से सभी देवी-देवता परेशान  हो गए थे। सभी ने ब्रह्माजी की शरण ली। ब्रह्माजी ने कहा कि शिवजी से प्रार्थना करो, क्योंकि शिव-पार्वती का पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है।
 
लेकिन उस वक्त शिवजी गहन समाधि में थे। उनकी समाधि तोड़ने की कौन हिम्मत कर सकता था। उनकी समाधि तोड़ना भी जरूरी थी, क्योंकि उनकी समाधि टूटने के बाद ही शिव-पार्वती का मिलन हो पता  और फिर उनसे जो पुत्र उत्पन्न होता, वह देवताओं का सेनापति बनता।
 
तब देवताओं ने युक्ति अनुसार कामदेव को समाधि भंग करने के लिए राजी कर लिया। देवताओं के कहने पर कामदेव ने उनकी समाधि भंग कर दी, लेकिन उसे शिव के क्रोध कर सामना करना पड़ा और अपना शरीर गंवाना पड़ा। क्रोध शांत होने के बाद सभी देवता शिवजी के पास गए। उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि तारकासुर हमें परेशान कर रहा है। आपका पुत्र ही इस समस्या का समाधान कर सकता है, ऐसा ब्रह्माजी का वरदान है। 
 
देवताओं की प्रार्थना का असर शिवजी पर हुआ। देवताओं की प्रार्थना से ही शिव दूल्हा ने पार्वती से विवाह किया। शिव-पार्वती के पुत्र हुए कार्तिकेय। कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने। उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं को असुरों के भय से मुक्त कर दिया।

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