देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकला जहर भगवान शंकर ने अपने कंठ में धारण किया था। विष पीने  से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। समुद्र मंथन का अर्थ है अपने मन और  विचारों का मंथन करना। मन में असंख्य विचार और भावनाएं होती हैं उन्हें मथ कर निकालना और सिर्फ अच्छे विचारों को अपनाना। हम जब भी अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही निकलेंगे। यही विष हैं, वो विष जो हमारे अन्दर की बुराइयों का प्रतीक है। शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया था । उसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया था । शिव का विष पीना हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए। शिव द्वारा विष पीना यह भी सबक देता है कि यदि कोई बुराई पैदा हो रही हो तो हम उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने दें।
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