एक दिन दुर्वासा ऋषि जिन्हें अपने गुस्से के लिए जाना जाता है द्वारका आये और कृष्ण से अपने दल के लिए खाना बनवाने को कहा | कृष्ण ने “ छप्पन भोग” बनवाए | इन सब स्वादिष्ट पकवानों में शामिल थी कामधेनु गाय के दूध से बनी “केसर खीर” | कृष्ण ने दुर्वासा ऋषि से खीर चखने को कहा | खीर तभी चूल्हे से उतरी थी , कृषि को उसकी गर्माहट का एहसास नहीं था और उनकी जीभ जल गयी | गुस्से में आ दुर्वासा ऋषि ने कृष्ण को श्राप देने के लिए कमंडल उठाया | कृष्ण तुरंत अपनी जगह से उठे पूरी खीर ली और नाचते हुए उसे पाने पूरे शरीर पर मलने लगे | ऋषि कृष्ण की कोशिश देख हैरान रह गए | 

अंत में उनका गुस्सा शांत हो गया | वह हँसे और उन्होनें कृष्ण से रुकने को कहा | कृष्ण ने कृषि के पैर छुए और कहा की वह किसी भी सजा को भोगने के लिए तैयार हैं | 

दुर्वासा ने कहा “ तुम बहुत ही महान मेज़बान हो | तुम अभी तक मिले मेरे भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हो | मैं आशीर्वाद देता हूँ की तुम्हारा पूरा शरीर जहाँ भी इस खीर के स्पर्श में आया है वह वज्र के समान हो जाये और तुम्हें कोई हथियार कभी नुक्सान न पहुंचा सके”| 

इस तरह कृष्ण को सभी हथियारों से बचने का आशीर्वाद मिल गया | उनकी मौत हुई एडी- जहाँ खीर नहीं मली गयी थी - में लगे एक तीर के कारण |


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