मालवा अभियान

अक्टूबर १७२८ में बाजीराव और उनकी सेना ने मालवा पर धावा बोला | उनकी सेना में शामिल थे उनके भाई चिमाजी अप्पा , तनोजी शिंदे , मल्हारराव होलकर और उदाजी पवार जिन्होनें बाद में मराठा राज्य के सेनापति और राजाओं बन खूब ख्याति हासिल की | मराठा सेना ने मुग़ल सेना को हरा मालवा पर कब्ज़ा कर लिया | मुग़लों ने मराठों को हटाने के लिए पहले अम्बेर के सवाई जय सिंह और फिर मुहम्मद खान बंगाश को नियुक्त किया | पर मालवा से मराठों को हटाने की उनकी कोशिश नाकामयाब रही |

 

बुंदेलखंड

मुग़लों ने अपने  राज्यपाल  मुहम्मद खान बंगाश के नेतृत्व में १७२७ से बुंदेलखंड की घेराबंदी कर ली  | उसके राजा छत्रसाल ( शिवाजी के समय से उनकी मराठो से दोस्ती के चलते) ने मराठों से मदद माँगी लेकिन क्यूंकि मराठा सेना कही और व्यस्त थीं शाहू समय से उन्हें मदद नहीं भेज पाए |

छत्रसाल ने मुघलों को तगड़ी टक्कर दी लेकिन अंत में घायल अवस्था में मुहम्मद खान बंगाश द्वारा जैतपुर में बंदी बना लिए गए | छत्रसाल ने फिर एक ख़त के माध्यम से पेशवा बाजीराव (१७२९ में ) से मदद माँगी कुछ इस तरह |

"जोगतभईगजेन्द्रकीवहीगतहमरीआज,

बाजजातबुन्देलकीबाजीराखियोलाज"

उस समय पेशवा बुंदेलखंड के नज़दीक (गढ़ , मालवा ) थे और वह अपनी सेना के साथ छत्रसाल की मदद के लिए पहुंचे | मुग़ल सेनापति मुहम्मद बंगाश को जैतपुर में घेर लिया गया ( उसकी मदद के लिए आने वाली उसकी बेटे की सेना को भी रोंद दिया गया ) जिससे अंत में बंगाश को हार स्वीकार करनी पडी | उस ने बाजीराव से दिल्ली सुरक्षित पहुँचने की गुहार की जो बाजीराव ने इस शर्त पर कबूली की वह दुबारा छत्रसाल को परेशान नहीं करेगा |  बाजीराव का एहसान मान राजा छत्रसाल ने खुली सभा में उन्हें अपना गोद लिया बेटा करार दिया और उन्हें  एक निजी जागीर दी (अपने राज्य का एक तिहाई हिस्सा ) जिसमें शामिल थे सागर ,बाँदा और झाँसी ( बाजीराव ने उसकी बागडोर गोविन्द पन्त – जो बाद में गोविन्द पन्त बुंदेले भी कहे जाते थे को दी)| छत्रसाल ने अपनी बेटी मस्तानी ( उसकी फ़ारसी मुस्लिम पत्नी से ) को बाजीराव की दूसरी पत्नी बनने के लिए सौंप दिया | मस्तानी ने बाद में बाजीराव को एक बेटा दिया जिसका नाम था शमशेर बहादुर |

सिद्दिस से हाथी युद्ध 
मराठा और सिद्दी(मुस्लमान) की लड़ाई तब बड़ी जब एक सिद्दी फौजदार सिद्दी सत् ने कोंकण के परशुराम इलाके में एक हिन्दू मंदिर को खंडित किया और ब्रम्हेंद्र स्वामी नाम के संत की अवहेलना की | यह १७२९ में हुआ जब ब्रह्म्नेंद्र स्वामी के शिष्य जंजीर के सिद्दी को सव्नुर के नवाब द्वारा तौफे में दिए  हुए हाथी को रास्ते में लेजा रहे थे और मराठा सरखेल कान्होजी अंगरे की सेना की टुकड़ी ने उसे रास्ते में कब्ज़ा कर लिया | इसे स्वामी की साज़िश समझ फौजदार ने स्वामी और उसके शिष्यों को चोट पहुंचा परशुराम मंदिर को नष्ट कर दिया |ब्रह्म्नेंद्र स्वामी बहुत पूजनीय थे इसलिए इससे मराठा और सिद्दियों की पुरानी दोस्ती में दरार आ गयी | इसी बीच सिद्दी नवाब रसूल याकूत की १७३३ में मौत हो गयी और उनके बेटों में गद्दी के लिए लडाई होने लगी | कान्होजी अंगरे की भी ४ जुलाई १७२९ को मौत हो गयी और उनके बाद उनके पुत्र अगले मराठा सरखेल बने | बाजीराव ने सही वक़्त देख अपनी सेना भेज जंजिरा पर कब्ज़ा कर लिया | किला कब्ज़े में आने ही वाला था लेकिन तब तक सेखोजी की १७३३ में असमिय मौत हो गयी | सेखोजी के भाई संभाजी ने मराठो के आदेश मानने से मना कर दिया और उनके असहयोग की वजह से यह घेराबंदी  हटानी  पडी | किस्मत से सिद्दी के बेटे अब्दुल रहमान ने बाजीराव से अपने भाइयों और चाचाओं के साथ समझौते के लिए बात की जिसमें मराठो ने उसकी यथसंभव मदद की |  इसके बदले में सिद्दी के पुराने इलाके जैसे रायगड , रेवास ,चौल और थल को मराठा क्षेत्र की पहचान दी गयी (१७३६)| बाकी भाई भी मराठा से लड़ाई को निरर्थक समझ बाजीराव के शरण में आ गए | सिद्दी फिर सिर्फ जंजिरा , अन्जन्वेल और गोवाल्कोट के इलाक्नों में सिमट कर रह गया और उसकी ताक़त बहुत कम हो गयी  | मुखिया सिद्धि सैट भी चिमाजी अप्पा के साथ लड़ाई में मारा गया | इस तरह से ख़तम हुआ हाथी युद्ध |

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