दूसरे दिन सवेरे मुझे आज्ञा मिली कि आप लोग अपनी बैरक में रहें। जब आवश्यकता होगी, बुला लिये जायेंगे। हम लोग दिन-भर बैठे रहे। सन्ध्या समय मैंने एक कारपोरल से कहा कि मैं बाहर जा रहा हूँ। अब रात में तो कोई सूचना आने की सम्भावना नहीं है।

निकट के होटल से एक गाइड मैंने बुलवाया और उससे पूछा कि यहाँ कौन-कौन-सी वस्तुयें देखने योग्य हैं। मैं देखना चाहता हूँ। ठीक नहीं कब यहाँ से कानपुर लौट जाना हो। गाइड ने कहा कि यहाँ विश्वनाथजी का स्वर्णमन्दिर, बन्दरोंवाला मन्दिर, औरंगजेब की मस्जिद, घाट, विश्वविद्यालय और सारनाथ देखने के योग्य हैं।

मैंने कहा - 'अच्छा, आज नगर देख लूँ और कल जितना हो सकेगा देखूँगा।' मैं उसे लेकर कार पर बैठा, और नगर की ओर चला। राह में वह मुझे विशेष स्थानों पर बताता जाता था कि यह कौन-सा स्थान है, इसका क्या महत्व है। एक जगह बड़ा पत्थर का भवन मिला जिसके लिये उसने बताया कि यह क्वींस कॉलेज है। मैंने यह पूछा कि क्या यहाँ रानियाँ पढ़ती हैं, या रानियों ने बनवाया है? उसने कहा - 'नहीं, यह महारानी विक्टोरिया के नाम पर बना है।'

मुझे कुछ अविश्वास-सा हुआ। मैंने कहा - 'यहाँ के लोग भला किसी दूसरे देश की रानी के नाम पर क्यों भवन बनायेंगे? इंग्लैंड में तो कोई भवन जर्मनी या रूस के राजा या रानी के नाम पर नहीं है।' वह बोला - 'यहाँ का यही नियम है। बात यह है कि भारतवासी बहुत ही विनम्र तथा त्यागी होते हैं। वह सोचते हैं कि अपने देश में अपने यहाँ के लोगों की ख्याति उचित नहीं है। हम लोग सब काम दूसरों के लिये करते हैं। देखिये, एक अस्पताल मिलेगा। वह भी बादशाह सलामत के नाम पर है। यहाँ सड़कें भी आप देखेंगे कि आपके ही देशवासियों के नाम पर हैं।'

मैंने कहा कि यह भावना तो बड़ी ऊँची है और तभी शायद तुमने अपना देश भी हम लोगों को दे दिया। वह बोला - 'हाँ, है ही। देखिये, हम लोगों ने लड़ने को सिपाही भेजे। यह आप ही लोगों की सहायता के लिये। हम लोग इस प्रकार दूसरों के लिये ही जीते हैं।'

तब तक हम लोग नगर के बीच पहुँच गये, और उससे पता चला कि इसे चौक कहते हैं। मैंने कहा - 'क्यों न कार कहीं खड़ी कर दी जाये और हम लोग पैदल टहलकर देखें।' कुछ-कुछ दुकानें खुली हुई थीं। लोग शीघ्रता से इधर से उधर चले जा रहे थे। गाइड ने बताया कि भय के कारण कुछ दुकानें बन्द हैं। आज शान्ति है, इसलिये इतनी खुल गयी हैं।

एक बात और देखने में आयी जिससे पता चला कि इस देश में मनुष्यों से अधिक स्वतन्त्रता पशुओं में है। मैंने देखा कि एक बैल बड़ी निर्भीकता से मेरी पतलून का अपने सींग से चुम्बन करता हुआ चला गया। उसने इस बात की परवाह नहीं की कि मैं इकतीसवीं ब्रिटिश रेजिमेंट का लफ्टंट हूँ। मैं कुछ डर-सा गया और देखा कि उसी के पीछे एक और उससे डबल बैल चला आ रहा है, मस्ती से झूमता। गाइड ने कहा कि डर की कोई बात नहीं है। यहाँ के साँड़ किसी को हानि नहीं पहुँचाते। महात्मा बुद्ध ने पहले-पहल काशी के ही निकट सारनाथ में अहिंसा का प्रचार किया था, इसीलिये काशी के साँड़ आज तक बौद्ध धर्म का पालन करते हैं।

धर्म का यह प्रभाव देखकर मुझे बड़ी श्रद्धा हुई। हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे की खोपड़ी तोड़ते हैं और बैल अहिंसा का पालन करते हैं। भारत विचित्र देश है, इसमें सन्देह नहीं। बुद्ध भगवान का प्रभाव भारत में बैलों पर ही पड़ा, इसका दुःख हआ।

गाइड ने बताया कि साधारण स्थिति में यहाँ बड़ी चहल-पहल रहती है, परन्तु दंगे के कारण कुछ है नहीं। फिर एक गली में जाकर उसने बताया कि यहाँ पहले विश्वनाथजी का मन्दिर था। मुसलमानों ने आक्रमण किया तो यहाँ के देवता कुएँ में कूद पड़े। वह जो बैल लाल पत्थर का आप देखते हैं, पहले अस्ली बैल था। एक मुसलमान सिपाही का अँगरखा छू गया, तभी यह पत्थर हो गया। हर एकादशी को यह रोता है। मैंने पूछा कि तुम्हारे देवता तो बड़े डरपोक हैं जो कुएँ में कूद पड़े। उसने बताया कि यह बात नहीं है। देवता स्वयं नहीं कूदे। पुजारी उन्हें लेकर स्वयं कूद पड़ा क्योंकि उसे डर था कि यदि कहीं इनकी दृष्टि मुसलमानों पर गयी और इन्हें क्रोध आ गया तो सारा संसार भस्म हो जायेगा। तब क्या होगा? पुजारी देवताओं को लेकर फिर निकल आया। फिर नये मन्दिर को बाहर से उसने दिखाया। मैं भीतर जाना चाहता था, परन्तु पता लगा कि इसमें केवल हिन्दू ही जा सकते हैं और वह भी सब हिन्दू नहीं। मैंने पूछा - 'ऐसा क्यों?' गाइड ने कहा कि बात यह है कि भगवान का दर्शन सबको नहीं मिलता। जब बहुत तप करके हिन्दू जाति में मनुष्य जन्म लेता है, तभी वह भगवान शंकर का दर्शन कर सकता है।

मैंने पूछा कि यह कैसे हो सकता है कि मनुष्यों में सबसे श्रेष्ठ हिन्दू है। उसने कहा - 'सबसे श्रेष्ठ वही है जिसे न दुःख में दुःख है न सुख में सुख है।

'देखिये, हिन्दू जाति को किसी प्रकार का दुःख नहीं है। इसका मान करो तो भी, अपमान करो तो भी, यह बुरा नहीं मानती। आप चाहें तो इसका उदाहरण अभी देख सकते हैं। किसी हिन्दू को एक लात मारिये। वह आपको देखकर सलाम करके हट जायेगा। तपस्या की चरम सीमा पर पहुँचने पर मनुष्य की ऐसी मनोवृत्ति हो जाती है।'

फिर आगे चले तो सुनसान-सा दिखायी दे रहा था। कुछ दूर आगे चले तो एक नदी दिखायी दी। उसने कहा कि यह गंगाजी हैं जिसे हिन्दू लोग माता कहते हैं।

दस बज रहे होंगे। रात का समय था। सन्नाटा छा रहा था। पानी धीरे-धीरे बह रहा था। हम लोग किनारे पहुँचे। देखता हूँ कि किनारे एक हट्टा-कट्टा आदमी रात में बिलकुल नंगा, केवल कमर में एक कपड़ा लपेटे पत्थर पर लगातार उछल-कूद कर रहा है। कई मिनट तक मैं देखता रहा। उसका कूदना बन्द नहीं हुआ। मैंने गाइड से पूछा कि यह यहाँ रात में क्या कर रहा है। वह बोला - 'यह कसरत कर रहा है।'

मैंने कहा - 'बहुत गरीब होगा। शायद इसका घर नहीं है।' गाइड ने समझाया कि ऐसी बात नहीं है। गंगा के सामने कसरत करने से दूना बल होता है। एक-दो नहीं, ऐसे अनेक कसरत करनेवाले आप इसी घाट पर देखेंगे। इतनी खुली जगह है तो इसका उपयोग करना चाहिये। यह भी गाइड ने बताया कि यहाँ सवेरे चहल-पहल रहती है। इसलिये कल सवेरे आप आइये। मैं रात में ग्यारह बजे बैरक लौटा। चारों ओर सन्नाटा था। कहीं कोई दिखायी नहीं देता था।

गाइड ने बताया कि देखिये, चारों ओर सन्नाटा है। सब लोग घरों में सोये हैं। इसीलिये दंगे जाड़े में ही होते हैं। गर्मी में यहाँ बहुत से लोग सड़क पर सोते हैं, इसलिये दंगे नहीं होते। नहीं तो कितने आदमियों के सिर उड़ जायेंगे। दंगेवाले भी समझ-बूझकर सब काम करते हैं।

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