"चित्रांगदा...! हमारी चित्रांगदा..! चित्रांगदा कुशल से है..! राजकुमारी चित्रांगदा की जय हो !" किसान चिल्ला रहे थे। वे अपनी खोई हुई राजकुमारी को पाकर बहुत खुश थे

"चित्रांगदा ?" अर्जुन ने पूछा।

“क्या तुम वही हो जिसने मेरी नींद में बाधा डाली थी और मैं उससे अशिष्टता से पेश आया था। तुम कहां से आ गई हो? यहां तो मेरी प्यारी जया के सिवाय और कोई नहीं था।"

"मैं जया हूँ|” लड़की बोली। “मैं चित्रांगदा भी हूँ।"

किसान अब बेचैन होने लगे थे। वे चिल्लाये, “राजकुमारी चित्रांगदा हमारी रक्षक, हमारी रक्षा कीजिए, जैसे कि आप पहले किया करती थीं। शत्रु हमारे सिर पर हैं।"

"आप कोई भी हों,” अर्जुन बोला, “यह समय प्रश्न और उत्तरों का नहीं है। किसान लोग बहुत खतरे में हैं। इनकी रक्षा करनी चाहिए और शत्रु को भगाना चाहिए। मैं उनकी सहायता के लिए तैयार हूँ।"

"मैं भी तैयार हूँ,” चित्रांगदा बोली

"जैसी तुम्हारी इच्छा,” अर्जुन ने कहा।

अर्जुन और चित्रांगदा दोनों दो घोड़ों पर सवार हुए और लुटेरों तथा डाकुओं से लड़ने चल दिये। यह लुटेरे और डाकू किसानों को तंग कर रहे थे।

"इस रास्ते से,” चित्रांगदा ने अर्जुन से कहा, “इस से पहले कि हम शत्रुओं से लड़ने जाएं हमें कुछ सिपाही इकट्ठे कर लेने चाहिएं।"

"जैसा तुम कहो, चित्रांगदा,” अर्जुन बोला। 

उन्होंने बहुत जल्दी बड़ी संख्या में सिपाही इकट्ठे कर लिये और गांवों की ओर बढ़ गये। वहां घमासान युद्ध हुआ और लुटेरे डाकू बुरी तरह हार गये। उनमें से बहुत से तो युद्ध में मारे गये और जो बाकी बच गये थे वे भाग गये।

किसान बहुत खुश हुये और आनन्द में भरकर नारे लगाने लगे

“चित्रांगदा की जय ! अर्जुन की जय !"

इस विजय के बाद जब चित्रांगदा और अर्जुन लौट रहे थे तो अर्जुन अपना घोड़ा चित्रांगदा के नजदीक लाये और बोले, “इसमें सन्देह नहीं कि तुम एक कुशल योद्धा हो। अब लड़ाई समाप्त हो गई है सो कृपा करके यह बताओ कि तुम वास्तव में कौन हो। तुमने जंगल में बताया था कि तुम चित्रांगदा और जया दोनों हो। यह कैसे हो सकता है? अब जल्दी से बताओ...! मैं और प्रतीक्षा नहीं कर सकता।"

"आर्य," चित्रांगदा ने उत्तर दिया, “मैं चित्रांगदा हूँ। जब तुम पहली बार मिले थे और तुमने मेरा अपमान किया था तो मुझे बहुत बुरा लगा था। मेरे भीतर की नारी जाग उठी थी। मैं जिस अर्जुन को बचपन से ही चाहती रही थी उसी ने मेरा अपमान किया। मैं वापस जाकर बहुत देर तक रोती रही। यहां तक कि मैं अपने जीवन का अन्त करने की बात सोचने लगी। लेकिन मेरी चहेती सेविका ने मुझे बचा लिया। उसकी सलाह पर मैं कामदेव के मन्दिर में गई और उसकी पूजा की। मैंने इतनी निष्ठा से प्रार्थना की कि देवता को भी मुझ पर दया आ गई। उन्होंने अपने आशीर्वाद द्वारा मुझे एक सुन्दर लड़की बना दिया। जिससे मैं तुम्हें अपने सुन्दर रूप से लुभा सकू। उसी सुन्दर लड़की को तुम जया के नाम से जानते हो। लेकिन यह वरदान केवल एक वर्ष के लिए था। जिस समय किसान आये ठीक उसी समय वह एक वर्ष भी समाप्त हुआ और उसी क्षण मैं फिर चित्रांगदा बन गई।”

“मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ आर्य,” चित्रांगदा कहती रही, “मैं भीतर से जया हूँ और बाहर से योद्धा राजकुमारी चित्रांगदा। मैं राजकुमारी बनकर मंच पर खड़ा होना नहीं चाहती जैसा कि मेरे पिता की प्रजा ने चाहा है। मैं चाहती हूँ कि लोग मुझे स्त्री समझें और मैं किसी योग्य पुरुष की योग्य सहचरी बनूं। मैं उसके बराबर होकर भी उससे भिन्न रहूं क्योंकि मैं स्त्री हूँ। आर्य, जो कुछ मैंने इस समय कहा है वह चित्रांगदा के हृदय के उद्गार हैं।"

उसकी इस स्पष्टवादिता और सच्चाई ने अर्जुन के हृदय को छू लिया। वह बोले, “जो कुछ तुमने कहा है, चित्रांगदा, उसके लिए मैं तुम्हारा आभारी हूँ। हो सकता है जया जैसी कई और भी नारियां हों, लेकिन मेरी योद्धा राजकुमारी तुम अपने जैसी अकेली हो। तुम वैसी हो जैसी स्त्रियां भविष्य में होंगी, पुरुष की बराबर की भागीदार । जितनी स्त्रियों को मैं जानता हूँ उनमें से केवल तुम्हीं हो जिसने मेरा प्रेम और सम्मान दोनों पाये हैं । यदि तुम मुझे स्वीकार करो तो मैं जानता हूँ कि मेरे लिए तुम से अच्छा साथी और कोई नहीं होगा। चित्रांगदा मेरी बन जाओ !” उसने विनती की।

चित्रांगदा ने प्रसन्नता से सिर हिलाकर सहमति दे दी। उसके बचपन का सपना आज सच हो गया था।

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