उसकी सेविका ने उसे भरसक सान्त्वना देने का प्रयत्न किया। वह बोली, “चित्रांगदा, कृपा करके रोना बन्द करो। आखिर तुम्हें यह बात समझ आ ही गई कि तुम एक स्त्री हो। तब यह स्वाभाविक ही है कि तुम चाहो कि पुरुष तुम्हें स्त्री समझकर तुम्हारे साथ व्यवहार करें। हताश मत हो। जहां चाह होती है वहां राह भी मिल जाती है। तुम्हें याद होगा कि यहां प्रेम के देवता कामदेव का एक मन्दिर है। वहां जाओ और हार्दिक श्रद्धा तथा भक्ति के साथ उसकी पूजा करो। उससे विनती करो कि वह तुम्हें सुन्दर और लावण्यमयी बना दें। यदि पूरी आयु के लिए नहीं तो कुछ समय के लिए अवश्य बना दें। मुझे विश्वास है वह तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे। जब एक बार तुम सुन्दर बन जाओ, तब अर्जुन के पास जाना और फिर देखो कि वह तुम्हारी उपेक्षा कैसे करता है...!!"

चित्रांगदा को इन बातों से बहुत सान्त्वना मिली। उसने स्नान कर के साधारण कपड़े पहने और मन्दिर चली गयी। वहां पहुंचकर वह बैठ गई और तन्मय होकर प्रार्थना करने लगी। कामदेव ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसकी भक्ति से वह बहुत प्रसन्न हुए। जल्दी ही चित्रांगदा समाधि में लीन हो गई।

उसी अवस्था में जैसे सपने में कामदेव ने उसे दर्शन दिये और आशीर्वाद दिया कि वह एक वर्ष के लिए दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री बन जाएगी। जब चित्रांगदा का सपना टूटा तो उसने अनुभव किया कि वह बदल गई है। वह बहुत ही सुन्दर और लावण्यमयी हो गई थी।

जब उसने देखा कि कामदेव ने उसकी इच्छा पूरी कर दी है तो उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही। उसका मन नाचने गाने को करने लगा। उसके तुरन्त बाद उसने अर्जुन के पास जाने के लिए जंगल का रास्ता पकड़ा।

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