क्या कुछ न किया और हैं क्या कुछ नहीं करते
कुछ करते हैं ऐसा ब-ख़ुदा कुछ नहीं करते.

अपने मर्ज़-ए-ग़म का हकीम और कोई है
हम और तबीबों की दवा कुछ नहीं करते.

मालूम नहीं हम से हिजाब उन को है कैसा
औरों से तो वो शर्म ओ हया कुछ नहीं करते.

गो करते हैं ज़ाहिर को सफ़ा अहल-ए-कुदूरत
पर दिल को नहीं करते सफ़ा कुछ नहीं करते.

वो दिल-बरी अब तक मेरी कुछ करते हैं लेकिन
तासीर तेरे नाले दिला कुछ नहीं करते.

दिल हम ने दिया था तुझे उम्मीद-ए-वफ़ा पर
तुम हम से नहीं करते वफ़ा कुछ नहीं करते.

करते हैं वो इस तरह ‘ज़फ़र’ दिल पे जफ़ाएँ
ज़ाहिर में ये जानो के जफ़ा कुछ नहीं करते.

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