बौद्ध-परम्परा में मार मृत्यु, कुकृत बल और प्रलोभक के रुप में जाना जाता है जिसे आधुनिक भाषा में शैतान का रुप समझा जा सकता हैं।
जब यह कहा जाता है कि 'मार एक है' तो वह क्लेश अथवा मृत्यु का द्योतक है। मार के पाँच रुप माने जाते हैं जब उसे पाँच संघों के संदर्भ में समझा जाता है। पुन: मार को अभिसड्खार मार तथा यम के चार देव पुत्रों के रुप में भी स्वीकार किया गया है।
मार को नमुचि का नाम दिया गया है क्योंकि कोई भी उससे नहीं बच सकता। उसे वसवत्ती भी कहा जाता हैं क्योंकि वह हर कोई को अपने वश में करता हैं। जब भी वह किसी को शील के मार्ग पर अग्रसर देखता है तो उसे पथ-भ्रष्ट करने के लिए अनेकों अवरोध उत्पन्न करता हैं। उदाहरण के लिए श्रेष्ठी-जातक में जब एक राजा किसी पच्चेक बुद्ध को दान देने के लिए उन्मुख होता है तो मार उसके मामने एक विशालकाय खाई उत्पन्न करता है जिससे अग्नि की प्रचण्ड लपटें भयंकर गर्ज़ना के साथ उठती हैं।
मार की कहानियों का प्रथम परिचय पधान-सुत्त में होता है जहाँ मार बुद्ध को संबोधि-प्राप्त करने से रोकने का यत्न करता है।
मार की दस सेनाएँ होती हैं, यथा राग (लिप्सा), असंतोष या घृणा, भूख, प्यास, तृष्णा, आलस्य, भय, शंका, दम्भ तथा घमण्ड। उपर्युक्त सेनाओं में उसकी तीन पुत्रियाँ भी है जो तृष्णा, अरति (असंतोष) तथा राग के नाम से जानी जाती हैं।