गौतम
बुद्ध के पिता शाक्यवंसी सुद्धोदन, राजा सीहहनु के पुत्र कपिवस्तु के
राजा थे। उनकी माता का नाम कच्चाना था, जो देवदत के
राजा देवदत सक्क की राजकुमारी था।
सुद्धोदन के चार सहोदर भाई द्योतदन,
सक्कोदन, सुक्कोदन तथा अमितोदन थे।
उनकी दो बहनें थी- अमिता और पमिता।
सुद्धोदन की पटरानी गौतम बुद्ध की
माता महामाया थी, जिनकी मृत्यु के पश्चात् महाप्रजापति गौतमी की छोटी बहन जो महामाया के
साथ ही उनसे ब्याही गयी थी, उनकी नयी पटरानी
बनी।
जब उनके कुल-गुरु असित बुद्ध के जन्म पर कपिलवस्तु पधारे और
शिशु में बुद्धत्व के सारे लक्षणों का अवलोकन कर
उनके पैरों को अपने शीश से सटा प्रणाम किया तो
सुद्धोदन ने भी बुद्ध का पूजन किया।
सुद्धोदन ने बुद्ध का पूजन दूसरी बार तब किया जब
बुद्ध हल-जोतने की रीति निभाते हुए एक जम्बु-वृक्ष के नीचे
बैठ ध्यानमग्न थे।
सुद्धोदन ने जब विशिष्ट ज्योतिषियों के द्वारा गौतम के
बुद्ध बनने की संभावना को सुना तो उन्होंने हर सम्भव प्रयत्न किया कि
संयासोन्मुखी कोई भी बात या घटना
या दृश्य सिद्धार्थ के सामने न आये और हर प्रकार के
राजकीय जीवन में उन्हें लिप्त रखने की चेष्टा की। किन्तु
उनकी हर चेष्टा निर्रथक सिद्ध हुई और सिद्धार्थ
बुद्ध बनने के लिए गृह-त्याग कर ही गये।
सुद्धोदन को जैसे ही बुद्ध की सम्बोधि प्राप्ति की
सूचना मिली और उनके गौरव पता चला तो उन्होंने तत्काल दस हज़ार सिपाहियों के
साथ एक दूत बुद्ध को बुलाने के लिए
भेजा। किन्तु उनके सारे अनुचर वापिस न
लौट बुद्ध के अनुयायी बन उनके संघ
में प्रविष्ट हो गये। उक्त घटना के पश्चात्
भी उन्होंने नौ बार दूत भेजे। किन्तु हर
बार उनके दूत और उनके साथी बुद्ध के
अनुयायी बन संघ में प्रविष्ट हो जाते। अंतत:
सुद्धोदन ने बुद्ध के बचपन के सखा कालुदायी को
बुद्ध को दूत के रुप में बुद्ध के पास
भेजा। कालुदायी भी बुद्ध से प्रभावित हो
संघ में प्रविष्ट हो गये। किन्तु कालुदायी ने जो
वचन सुद्धोदन को दिया था उसके पालन करते हुए
बुद्ध को अपने पिता से मिलने का आग्रह करते रहे। अंतत: कालुदायी के दो महीनों के आग्रह के
बाद बुद्ध ने कपिलवस्तु जाने को तैयार हुए और अपने
साथ भिक्षुओं का एक महासंघ भी लेते गये।
कपिलवत्थु पहुँच कर बुद्ध अपने साथियों के
साथ निग्रोधाराम में रुके। तत: वे दैनिक भिक्षाटन के
लिए निकले।
राजा सुद्धोदन को जब यह सूचना
मिली कि बुद्ध कपिलवस्तु का उत्तराधिकारी,
उनके ही राज्य की गलियों में भिक्षाटन कर रहे थे तो बहुत खिन्न हुए। किन्तु
बुद्ध ने उन्हें जब यह कही कि भिक्षुओं के
लिए भिक्षाटन कोई असंगत कार्य नहीं है तो
राजा उनके उत्तर से संतुष्ट हुए। उनकी संतुष्ति ने तत्काल उन्हें
सोतापन्न (अर्थात् जिसका अधिकतम जन्म
सात बार तक हो सकता है) बना दिया।
बुद्ध और उनके साथी भिक्षुओं को जब अपने प्रासाद
में भोजन कराने के बाद उन्होंने जब
बुद्ध की
देशना सुनी तो वे सकिदागामी बने
(अर्थात् जिसका अधिकतम जन्म सिर्फ एक
बार और होता है)। फिर बुद्ध द्वारा महाधम्मपाल जातक
सुनने के बाद अनागामी बने (अर्थात् जिसका जन्म पृथ्वी पर दुबारा नहीं होता)।
सुद्धोदन जब मृत्यु-शय्या पर पड़े थे तब
बुद्ध ने उनके अंतकाल को अपनी दिव्य-चक्षु
से देखा। और उड़ते हुए उनके पास पहुँच उन्हें धम्म देशना दी जिसे
सुन सुद्धोदन की प्राप्ति की सांसारिक
बंधनों से मुक्त प्राणी जो निर्वाण पद को पाते है अर्हत कहलाते हैं।