राजगृह का राजा दुर्योधन एक नागराज से उपदेश ग्रहण कर मरणोपरान्त संखपाल नामक एक संन्यासी वृत्ति का नाग बना ; और परम-सील की सिद्धि प्राप्त करने हेतु दीमक-पर्वत-पर कठिन तप करने लगा। उसी समय सोलह व्यक्तियों ने उस जैसे विशालकाय सपं को लेटे देखा तो उन्होंने उसे भालों से बींध कर उसके शरीर में कई छेद बनाये और उन छेदों में रस्सी घुसा कर उसे बाँध दिया। फिर वे उसे सड़कों पर घसीटते हुए ले जाने लगे।

मार्ग में एक आलाट नामक एक समृद्ध श्रेष्ठी पाँच सौ बैलगाडियों में माल भर कर कहीं जा रहा था। उसने जब संखपाल की दुर्दशा देखी तो उसे उस पर दया आई। उसने उन सोलह व्यक्तियों को पर्याप्त मूल्य देकर संखपाल को मुक्त कराया। संखपाल तब ऊलार के नागलोक ले जाकर एक वर्ष तक अपने यहाँ अतिथि के रुप में रखा और अपने महान् उपदेशों से लाभान्वित किया।

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