रामकृष्ण की इसी लीलाभूमि पर भगवान् बुद्धदेव भी हुए हैं जिनके प्रभाव से एशिया खंड का सारा पूर्वार्द्ध भारत को इस गिरी दशा में भी प्रेम और श्रद्धा की दृष्टि से देखता चला जा रहा है। रामकृष्ण के चरितगान का मधुर स्वर भारत की सारी भाषाओं में गूँज रहा है पर बौद्ध धर्म के साथ ही गौतम बुद्ध की स्मृति तक जनता के हृदय से दूर हो गई है। 'भरथरी' और 'गोपीचन्द' के जोगी होने के गीत गाकर आज भी कुछ रमते जोगी स्त्रियों को करुणार्द्र करके अपना पेट पालते चले जाते हैं पर कुमार सिद्धार्थ के महाभिनिष्क्रमण की सुधा दिलानेवाली वाणी कहीं भी नहीं सुनाई पड़ती है। जिन बातों से हमारा गौरव था उन्हें भूलते-भूलते आज हमारी यह दशा हुई।

यह 'बुद्धचरित' अंग्रेजी के ' Light of Asia' का हिन्दी काव्य के रूप में अवतरण है। यद्यपि ढंग इसका ऐसा रखा गया है कि एक स्वतन्त्र हिन्दी काव्य के रूप में इसका ग्रहण हो पर साथ ही मूल पुस्तक के भावों को स्पष्ट करने का भी पूर्ण प्रयत्न किया गया है। दृश्य वर्णन जहाँ अयुक्त या अपर्याप्त प्रतीत हुए वहाँ बहुत कुछ फेरफार करना या बढ़ाना भी पड़ा है। अंग्रेजी अलंकार जो हिन्दी में आने वाले नहीं थे वे खोल दिए गए हैं, जैसे मूल में यह वाक्य था -

..........Where the Teacher spake

wisdom and power,

इसमें Hendiadys नामक अलंकार था जिसमें किसी संज्ञा का गुणवाचक शब्द उसके आगे एक संयोजक शब्द डालकर संज्ञा बनाकर रख दिया जाता है, जैसे- ज्ञान और ओज= ओजपूर्ण ज्ञान। उक्त वाक्य हिन्दी में इस प्रकार किया गया है- ओजपूर्ण अपूर्व भाख्यो ज्ञान श्रीभगवान्। तात्पर्य यह कि मूल के भावों का भी पूरा ध्यान रखा गया है। शब्द बौद्ध शास्त्रो में व्यवहृत रखे गए हैं। उनकी व्याख्या भी फुटनोट में कर दी गई है। यदि काव्य परंपरा के प्रेमियों का कुछ भी मनोरंजन होगा तो मैं अपना श्रम सफल समझूँगा।

जिस वाणी में कई करोड़ हिन्दी भाषी रामकृष्ण के मधुर चरित का स्मरण करते आ रहे हैं उसी वाणी में भगवान् बुद्ध को स्मरण कराने का यह लघु प्रयत्न है। यद्यपि यह वाणी ब्रजभाषा के नाम से प्रसिद्ध है पर वास्तव में अपने संस्कृत रूप में यह सारे उत्तरपथ की काव्य भाषा रही है।

- रामचन्द्र शुक्ल

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