तेरहवाँ अध्याय

गृहके आकारमें परिवर्तन

( १ ) घरके किसी अंशको आगे नहीं बढा़ना चाहिये । यदि बढा़ना हो तो सभी दिशाओंमें समानरुपसे बढ़ाना चाहिये ।

घरको पूर्व दिशामें बढ़ानेपर मित्रोंसे वैर होता है ।

दक्षिण

दिशामें बढ़ानेपर मृत्युका तथा शत्रुका भय होता है ।

पश्चिम

दिशामें बढ़ानेपर धनका नाश होता है ।

उत्तर

दिशामें बढ़ानेपर मानसिक सन्तापकी वृद्धि होती है ।

आग्नेय

दिशामें बढ़ानेपर अग्निसे भय होता है ।

नैऋत्य

दिशामें बढ़ानेपर शिशुओंका नाश होता है ।

वायव्य

दिशामें बढ़ानेपर वात - व्याधि उत्पन्न होती है ।

ईशान्य

दिशामें बढ़ानेपर अन्नकी हानि होती है ।

( २ ) यदि घरके किसी अंशको आगे बढ़ाना अनिवार्य हो तो पुर्व या उत्तरकी तरफ बढ़ा सकते हैं; क्योंकि इसमें थोड़ा दोष है ।

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