ओ मेरे देश की मिट्टी, तुझपर सिर टेकता मैं। तुझी पर विश्वमयी का, तुझी पर विश्व-माँ का आँचल बिछा देखता मैं।।

कि तू घुली है मेरे तम-बदन में, कि तू मिली है मुझे प्राण-मन में, कि तेरी वही साँवली सुकुमार मूर्ति ने्म-गुँथी, एकता में।।

कि जन्म तेरी कोख और मरण तेरी गोद का मेरा, तुझी पर खेल दुख कि सुखामोद का मेरा! तुझी ने मेरे मुँह में कौर दिया, तुझी ने जल दिया शीतल, जुड़ाया, तृप्त किया, तुझी में पा रहा सर्वसहा सर्वंवहा माँ की जननी का पता मैं।।

बहुत-बहुत भोगा तेरा दिया माँ, तुझसे बहुत लिया- फिर भी यह न पता कौन-सा प्रतिदान किया। मेरे तो दिन गये सब व्यर्थ काम में, मेरे तो दिन गये सब बंद धाम में - ओ मेरे शक्ति-दाता, शक्ति मुझे व्यर्थ मिली, लेखता मैं।
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